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गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई

सूना-सूना सा लगता है तेरे बिना 
दिन पहाड़ सा लगता है तेरे बिना
कड़कती है बिजलियाँ बड़ी जोर से
बड़ा  डर  लगता  है मुझे तेरे बिना


रात   काली   भयानक  हो  जाती है
घर-घर  सा  नहीं लगता  तेरे  बिना
बिस्तर पर रेंगती है हजारों चीटियाँ
खा  जाएँगी मुझे लगता है तेरे बिना


मेरा  सूरज  तो  अब  उगता ही नहीं
उजियारा  नही  लगता  है  तेरे बिना
रात  चाँद  की  कोशिशें  नाकाम हुई
अमावश  सा  अंधियार  है  तेरे बिना

आपका 
शिल्पकार

Comments :

9 टिप्पणियाँ to “रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई”
Deepak Tiruwa ने कहा…
on 

रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना

komal bhav ki sundar kavita ...badhaai
orkut ब्लॉग की sidebar में

Deepak Tiruwa ने कहा…
on 

रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना

komal bhav ki sundar kavita ...badhaai
orkut ब्लॉग की sidebar में

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

भाउक अभिव्यक्ति ललित जी ,
वैसे एक सलाह दूंगा, बिस्तर झाड़ के सोया करे :)
मजाक कर रहा हूँ, बुरा न माने !

Asha Joglekar ने कहा…
on 

अंतिम वाला बहुत खूबसूरत बन पडा है । सुंदर अभिव्यक्ती ।

Kusum Thakur ने कहा…
on 

सुन्दर भाव बधाई !!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…
on 

एक कसक सी उभरती नजर आती है आपकी इस रचना मे।सुन्दर रचना है।बधाई।

M VERMA ने कहा…
on 

रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना
बेहतरीन -- बहुत खूब

Mishra Pankaj ने कहा…
on 

सुन्दर कविता ’

Udan Tashtari ने कहा…
on 

मेरा सूरज तो अब उगता ही नहीं
उजियारा नही लगता है तेरे बिना
रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना

-छा गये महाराज दिलो दिमाग पर...बिना चाय पिये. जय हो!!

 

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