सूना-सूना सा लगता है तेरे बिना
दिन पहाड़ सा लगता है तेरे बिना
कड़कती है बिजलियाँ बड़ी जोर से
बड़ा डर लगता है मुझे तेरे बिना
रात काली भयानक हो जाती है
घर-घर सा नहीं लगता तेरे बिना
बिस्तर पर रेंगती है हजारों चीटियाँ
खा जाएँगी मुझे लगता है तेरे बिना
मेरा सूरज तो अब उगता ही नहीं
उजियारा नही लगता है तेरे बिना
रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना
आपका
शिल्पकार
रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना
komal bhav ki sundar kavita ...badhaai
orkut ब्लॉग की sidebar में
रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना
komal bhav ki sundar kavita ...badhaai
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भाउक अभिव्यक्ति ललित जी ,
वैसे एक सलाह दूंगा, बिस्तर झाड़ के सोया करे :)
मजाक कर रहा हूँ, बुरा न माने !
अंतिम वाला बहुत खूबसूरत बन पडा है । सुंदर अभिव्यक्ती ।
सुन्दर भाव बधाई !!
एक कसक सी उभरती नजर आती है आपकी इस रचना मे।सुन्दर रचना है।बधाई।
रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना
बेहतरीन -- बहुत खूब
सुन्दर कविता ’
मेरा सूरज तो अब उगता ही नहीं
उजियारा नही लगता है तेरे बिना
रात चाँद की कोशिशें नाकाम हुई
अमावश सा अंधियार है तेरे बिना
-छा गये महाराज दिलो दिमाग पर...बिना चाय पिये. जय हो!!