फिर यादों के सुमन खिले
सपनों का खुला आगार
मेरा मन विकल हुआ है
अब तुम आओ एक बार
पास नहीं हो दूर हो तुम
मैं कैसे पास आऊं तुम्हारे
आज बहारों घेर लिया था
पुराने जख्म हरे हुए सारे
आज बसंत आया है दुवारे
मन में एक कसक है प्यारे
बसंत पुरवाई बन के लू
झुलसा रही है जख्म सारे
तुम्हारे बिन वीरान हुआ है
जाने जैसे सुनसान हुआ है
ये चमन, चमन कैसे रहेगा
जब माली ही शैतान हुआ है
फिर भी लिए आस बैठा हूँ
कोई चुपके से आज आएगा
भर कर झोली में खुशियाँ
मुझ पर खूब लुटायेगा
आपका
शिल्पकार
बहुत अच्छी रचना है , आभार ।
"तुम्हारे बिन वीरान हुआ है
जाने जैसे सुनसान हुआ है
ये चमन, चमन कैसे रहेगा
जब माली ही शैतान हुआ है"
बहुत सुन्दर!
तुम्हारे बिन वीरान हुआ है
जाने जैसे सुनसान हुआ है
ये चमन, चमन कैसे रहेगा
जब माली ही शैतान हुआ है
फिर भी लिए आस बैठा हूँ
कोई चुपके से आज आएगा
भर कर झोली में खुशियाँ
मुझ पर खूब लुटायेगा
बहुत सुन्दर!
तुम्हारे बिन वीरान हुआ है
जाने जैसे सुनसान हुआ है
ये चमन, चमन कैसे रहेगा
जब माली ही शैतान हुआ है..
bahut hi khoobsoorat panktiyannn
sunder rachna...
फिर भी लिए आस बैठा हूँ
कोई चुपके से आज आएगा
bahut sundar "lalit bhaiya" badhai
तुम्हारे बिन वीरान हुआ है
जाने जैसे सुनसान हुआ है
ये चमन, चमन कैसे रहेगा
जब माली ही शैतान हुआ है
सुंदर पंक्तियां-बधाई
आज बहारों घेर लिया था
पुराने जख्म हरे हुए सारे
जब फ़ंस ही जाओगे तो जख्म हरे होगें ही
अब मरहम पट्टी की दरकार है-कही वहां मत फ़ंस जाना-हा हा हा-बहुत सुंदर कविता ललित भैया
sundar kavita-badhai
बहुत सुन्दर रचना है बधाई