जब कारगिल का युद्ध चल रहा था उस समय मेरी बेटी साढ़े तीन साल की थी, टी.वी. पर समाचार देखती थी और मुझसे तरह- तरह के सवाल पूछती थी मै उसके हर सवाल का जवाब देने की कोशिश करता था. एक दिन उसने ऐसे सवाल किये जिसका जवाब मेरे पास नही था.आप भी सुनिए
श्रुति पूछती है
पापा हाथ धो लूँ?
भात खा लूँ ?
मेरा बस्ता कहाँ है?
मम्मी मैं पढूंगी
अ-अनार, ऍ-एप्पल
वह पढ़ती है
फिर वह पूछती है
पापा ये युद्ध
क्या होता है?
मैं उसे बताता हूँ
पापा ये एल.ओ.सी.
क्या होती है?
मैं उस अबोध को
बताता हूँ
पापा ये कारगिल
क्या होता है?
मैं उसे भूगोल
समझाता हूँ
फिर पूछती है
पापा शहीद
क्या होता है?
मैं समझाता हूँ
भगवान होता है.
फिर वह पूछती है
पापा आप
भगवान नही हो सकते?
सुन कर मै
सकते में आ जाता हूँ
मौन हो जाता हूँ
मेरी आँखे
डबडबा जाती हैं
वह बार-बार पूछती है
निरंतर/अनवरत
मैं निरुत्तर था
सोच रहा था
कितना कठिन है?
भगवान बनना
आपका
शिल्पकार
वाकई कठिन है या शायद उससे भी कठिन है इंसान बनना
sach kahaa aapne....kitna mushkil hai shaheed banna.........
bahut achchi lagi yeh post.... dil ko chhoo lene wali........
नन्ही सी बिटिया के आगे ही फँस गए। सच में पूरा विश्व इन नन्हों के आगे घुटने टेक दे, अगर ये पूछने पर आ जाएं तो। गुरू गोबिंद राय जो श्री गुरू गोबिंद सिंह हुए ने भी अपने पिता से कुछ ऐसा ही कहा था। पिता सीधे शहीदी पाने चले गए चांदनी चौंक दिल्ली।
सच मे ह्रिदय्स्पर्शी अhबिव्यक्ति
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,
कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान...
जय हिंद...
भगवान बनाना तो कठिन हे ही,बहुत सही