साजन के संदेशे अब हमें मिल गए
हजारों कंवल मन में अब खिल गये
चल पड़ेंगे अब सफ़र में सोच कर
चल पड़ेंगे अब सफ़र में सोच कर
मन के दुवारे हजारों दीप जल गए
ये कैसा मिलन का आनंद है साजन
दुनिया के सब मेले फीके रह गए
मिलन की आस लगी थी दिन रैन
मिलेंगे अब नये चमन में कह गए
साँस यूँ आई बड़ी जब जोर से
साँस यूँ आई बड़ी जब जोर से
मौत के किवाड़ सब ये खुल गये
आपका
शिल्पकार
"साजन के संदेशे अब हमें मिल गए
हजारों कंवल मन में अब खिल गये"
सावन के झूले पड़े तुम चले आओ ....
वाह सुंदर रचना !!
क्या ललित साहब , आज बहुत उदास दिख रहे हो कविता में !
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है , बधाई !!
वाह बहुत लाजवाब.
रामराम.
अच्छे भाव वाली रचना है...लिखते रहें...
नीरज
साँस यूँ आई बड़ी जब जोर से
मौत के किवाड़ सब ये खुल गये
बहुत सुन्दर.
भावपूर्ण रचना
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