जब मातृभूमि पर संकट आता है, जब कोई दुश्मन आँखे दिखाता है, तो बच्चा, बुढा, जवान, स्त्री-पुरुष सभी उसकी रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग करने को लालायित हो जाते हैं और दुश्मन को करार जवाब देने की उत्कट अभिलाषा उनके मन में उठती है. ऐसा ही एक अवसर "कारगिल" युद्ध के रूप में हमारे सामने आया था. जिसका समस्त देशवाशियों ने कसकर मुकाबला किया और लड़ाई भी जीती. उस समय एक बालक के मन में भी यही देश भक्ति का जज्बा था वो अपनी माँ से कहता है.
माँ मै भी लड़ने जाऊंगा
कारगिल के घुसपैठियों को जाकर मार भागूँगा
काँप उठेंगी पाकी फौजें ऐसी मार लगाऊंगा
माँ मै भी लड़ने जाऊंगा
भारत माँ की रक्षा खातिर अपना लहू बहाऊंगा
पहन बसंती चोला मै दुश्मन का दिल दहलाऊंगा
माँ मै भी लड़ने जाऊंगा
हर-हर महादेव का नारा वहां जोर से लगाऊंगा
करने सरहदों की रक्षा अपना शीश चढाऊंगा
माँ मै भी लड़ने जाऊंगा
करके दुश्मनों की छुट्टी वहां तिरंगा लहराऊंगा
याद आ जाये दूध छठी का ऐसा युद्ध रचाऊँगा
माँ मै भी लड़ने जाऊंगा
आपका
शिल्पकार
वाह बहुत अच्छी कविता है आपकी मूँछें देख कर ही वो डर कर भाग जायेंगे। बुरा मत मानिये मज़ाक कर रही हूँ बधाईिस रचना के लिये
ओजस्विता एवं देशभक्ति से परिपूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
याद आ जाये दूध छठी का ऐसा युद्ध रचाऊँगा।
बहुत अच्छे भाव, जानदार, हम भी यही कहते।
बच्चा छोटा है इस लिए इस गीत से उत्साह बढ़ा रहा है। कुछ बड़ा होगा तो पूछेगा, आप ने यह सब होने क्यों दिया? घर का खयाल भी नही रख सकते थे।
वाह-वाह बहुत खूब , लाजवाब कविता , साथ ही गजब के जज्बात भी दिखे ।
देशभक्ति से ओत-प्रोत सुन्दर कविता
ओजपूर्ण रचना सुन्दर
वाह यह हुयी न कोई बात !
बहुत ओजस्वी रचना.
रामराम.
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