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इंडी ब्लागर

 

मेरे थिरक उठे हैं पांव..............



हरियाली  के चादर ओढे, देखो मेरा  सारा गांव ,
झूमके बरसी बरखा रानी,मेरे थिरक उठे हैं पांव,
मेरे  थिरक  उठे हैं पांव..............................


खेतों में है हल चल रहे, बूढे पीपल पर हरियाली,
अल्हड  बालाओं  ने भी,  डाली पींगे सावन वाली,
गोरैया  के  संग-संग  मै  भी,  अपने  पर फैलाऊ,
मेरे थिरक उठे हैं पांव.................................


छानी  पर  फूलों  की  बेले, बेलों पर  बेले ही बेले,
नवयोवना सरिता पर भी हैं,लहरों के रेले ही रेले,
हमको  है  ये  पार कराती, एक  मांझी  की नाव,
मेरे थिरक उठे हैं पांव..............................


भरे  हैं  सब ताल-तलैया,झूमी है अब धरती मैया,
मेघों ने भी डाला डेरा, छुप गए हैं अब सूरज भैया,
गाय-बैल  सब  घूम-घाम  कर, बैठे   अपनी  ठांव,
मेरे  थिरक  उठे  हैं  पांव................................






आपका
शिल्पकार

( चित्र गूगल से साभार)

Comments :

4 टिप्पणियाँ to “मेरे थिरक उठे हैं पांव..............”
सदा ने कहा…
on 

बहुत ही अच्‍छी एवं सुन्‍दर रचना, आभार ।

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…
on 

गांव की मोहक तस्वीर खिंची है आपने
सुन्दर कविता ....

Unknown ने कहा…
on 

is anupam geet ka haardik abhinandan !

Meenu Khare ने कहा…
on 

बड़ी अच्छी गेय कविता, मीटर भी परफ़ेक्ट लगा. बधाई.

 

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