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फूलों का दर्द आंसुओं से नीचो कर इत्र बनता है.

कभी -कभी रंगों से खेलने का मन करता है. जब रंग-तुलिका और केनवास का मिलन होता है तो अन्दर बैठ चित्रकार जाग जाता है. और वह कुछ गढ़ने लगता है. ऐसा मेरे साथ होता है. जब तक मैं कुछ गढ़ नही लूँ तब तक मुझे आत्मिक शांति नहीं मिलती. सारा शरीर भारी-भारी लगता है.-जब कल्पना केनवास पर उतर जाती है तो अपने आप ही मुझे हल्का लगता है.एक  आत्मिक शांति का अनुभव होता है-एक चित्र आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है-कृपया आशीष देकर उत्साह बढाये.

 फूलों  का  दर्द  आंसुओं से नीचो कर इत्र बनता है.
लाखों  में  कोई  एक हमदर्द अपना मित्र बनता है.
ग़ालिब की गजल मीरा का विरह रंगों में घोलकर 
कतरा  कतरा   रंगों  से  कोई  एक चित्र बनता है.

आपका 
शिल्पकार 


Comments :

4 टिप्पणियाँ to “फूलों का दर्द आंसुओं से नीचो कर इत्र बनता है.”
पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

फूलों का दर्द आंसुओं से नीचो कर इत्र बनता है.

लाखों में कोई एक हमदर्द अपना मित्र बनता है.

ग़ालिब की गजल मीरा का विरह रंगों में घोलकर

कतरा कतरा रंगों से कोई एक चित्र बनता है.

Kya baat kahee shilpkaar sahaab !!

M VERMA ने कहा…
on 

बहुत सुन्दर
चित्रकार और शिल्पकार तथा साहित्यकार तीनो ही तो दिखाई दे रहे है.

शरद कोकास ने कहा…
on 

अब पता चला हुसैन एम एफ भारत क्यो नही आना चहते !!!

सुनीता शानू ने कहा…
on 

बहुत सुन्दर भाव हैं। आज ही पढ़ा आपको बहुत अच्छा लिखते हैं।

 

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