भारत की वीरांगनाओं के पुरुषोचित कार्यों से पूरा इतिहास भरा पड़ा है. वक्त आने पर उन्होंने तलवारें भी उठाई और बड़ी बड़ी राज सत्ताओं को चुनौती दी, मुसीबतों का डट कर सामना किया उनसे लोहा लिया. कवि प्रकाश वीर "व्याकुल" वर्त्तमान समय में आधुनिकता की आंधी में बह रही हमारी संस्कृति की दुर्दशा को देखेते हुए अपनी चिंता व्यक्त करते हैं.
अरि दल बल थर्रा उठता था सुनकर जिनकी हुंकारों को
योद्धा रण छोड़ भाग जाते थे लख जिनकी तलवारों को
वो करना सीखी सहन नही द्रोही के अत्याचारों को
पतिव्रता धर्म पर अटल रही हंस कर चूमा अंगारों को
वो भी श्रृंगार बनाती थी पर कमर कटारी कसी हुयी
ईश्वर की पावन भक्ति थी जिनकी रग-रग में बसी हुयी
उनकी संताने अरे आज कितनी फैशन में फंसी हुयी
अथवा विलासिता के कीचड़ में बुरी तरह से धंसी हुयी
वो क्या से क्या हो गई आज जब उनकी ओर लखाता हूँ
मैं तब व्याकुल हो जाता हूँ.
प्रस्तुतकर्ता
शिल्पकार
इसीलिए व्याकुल महाराज आपको स्वामी ललितानंद बनाकर आश्रम भेज दिया गया है...
जय हिंद...
अच्छी कविता पढवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
उनकी संताने अरे आज कितनी फैशन में फंसी हुयी
अथवा विलासिता के कीचड़ में बुरी तरह से धंसी हुयी
वो क्या से क्या हो गई आज जब उनकी ओर लखाता हूँ
मैं तब व्याकुल हो जाता हूँ.
बहुत ही सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति है बधाई
महराज, अब व्याकुल होना छोड़ कर कुछ ऐसा काम करिये कि सब कुछ फिर से सुधर जाये!
जरा अवधिया जी की बात पर ध्यान दिया जाये.
रामराम.
प्रकाशवीर "व्याकुल" ji ki kavitaye dekhi. achchha laga ki nai kavita ke is daur me bhi kuchh log chhand-saadhanakar rahe hai aur behatar likh rahe hai. प्रकाश वीर "व्याकुल" kahaan rahate hai...?
kahi aisa to nahi ki lalit sharma hi प्रकाश वीर "व्याकुल" hain..? lalit ki kalaakaree ka bhi to zavab nahi hota, isliye....
उनकी संताने अरे आज कितनी फैशन में फंसी हुयी
अथवा विलासिता के कीचड़ में बुरी तरह से धंसी हुयी
बहुत सुंदर रचना लिखी, लेकिन हम जेसे लोग ही व्याकूल होते है ओर यह संताने जिन परिवार की है वो तो बहुत खुश होते है
धन्यवाद
व्याकुलता का कारण सही है
अच्छी रचना
कवि प्रकाशवीर व्याकुल की तो इस नाम से पुस्तक भी मेरे पास है।
बढ़िया रचना है!
बहुत सही चिन्ता है व्याकुल जी की.
सही कहा...कोई भी व्याकुल हो जायेगा..