एक सूखी टहनी पर
कुछ बुँदे स्वाति मेह की
अनायास ही टपक गई
उसने उठ कर अंगडाई ली
बंधन चरमरा उठे
जोड़ के टांके चटक गए
जनम रहा था नया वृक्ष
मै आनंदित था कि
अपनी ही शाख को
धरती के सीने में जड़ें रोपकर
पुष्पित पल्लवित होते देखूंगा
एक सिरहन सी रगों में दौड़कर
रोंगटे खड़े कर देती
जरा को यौवन की अनुभूति
कसक जाती
खीसें निपोरता हुआ यौवन
जर्जर बुढापे को देखता है
बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है
दोनों एक दुसरे के विपरीत
फ़िर भी सामंजस्य है
दोनों गुजर जाते हैं
अपनी-अपनी गति की ओर
काल को रौंदते हुए
आपका
शिल्पकार
"बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है"
शाश्वत सत्य!
जो जा के ना आये वो है जवानी
जो आ के ना जाये वो है बुढ़ापा
क्या बात है!! शानदार!
सुन्दर रचना!
पढ़कर आनन्द आया!
jewan ki kala ko waykt kerti .hui ye rachna ........bahut badhiya
जीवन के मर्म को स्पर्श करती बहुत ही सरल कविता
...bahut khoob ... kamaal-dhamaal !!!!
Bahut accha kavya ras hai...........................Fauji bhai apne ko likhte ho aap to chattisghar ki ahinsak aandolan ke support me kuch krantikari aur rachanatmak kavita aur lekh likhan to as a chhatisghari mujhko aap par jayada fakr hoga........................................................................
सरल शब्द भाव गम्भीर
खीसें निपोरता हुआ यौवन
जर्जर बुढापे को देखता है
बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है
दोनों एक दुसरे के विपरीत
फ़िर भी सामंजस्य है
दोनों गुजर जाते हैं
अपनी-अपनी गति की ओर
काल को रौंदते हुए
बेहतरीन पंक्तिया गुरूजी !
बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है
दोनों एक दुसरे के विपरीत
फ़िर भी सामंजस्य है
दोनों गुजर जाते हैं
अपनी-अपनी गति की ओर
काल को रौंदते हुए
उमदा रचना बधाई
बहुत लाजवाब जी
रामराम
"बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है "
सत्य कहा आपने । बहुत खूब ।
बसंत में काहे ई सब देखने लगे , सरकार !
अभी तो आप बुढ़ापे की बात न कीजिये !
फोटो ही आपको चिढ़ा देगा और हम सब कहेंगे कि
नकली फोटो लगाया है - :)
वाह भाई कवि।
shashwat satya ko aapne kavita
ke roop me bahut jaandaar
varnan kiya hai......
par "KAL" KO raundna ????
KAL yane samay wah to
chalta hi rahega