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एक कविता -अपनी-अपनी गति की ओर "ललित शर्मा"

एक सूखी टहनी पर
कुछ बुँदे स्वाति मेह की
अनायास ही टपक गई
उसने उठ कर अंगडाई ली
 बंधन चरमरा उठे 
जोड़ के टांके चटक गए
जनम रहा था नया वृक्ष
मै आनंदित था कि
अपनी ही शाख को
धरती के सीने में जड़ें रोपकर
पुष्पित पल्लवित होते देखूंगा
एक सिरहन सी रगों में दौड़कर
रोंगटे खड़े कर देती
जरा को यौवन की अनुभूति
कसक जाती
खीसें निपोरता हुआ यौवन
जर्जर बुढापे को देखता है
बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है
दोनों एक दुसरे के विपरीत
फ़िर भी सामंजस्य है
दोनों गुजर जाते हैं
अपनी-अपनी गति की ओर
काल को रौंदते हुए

आपका 
शिल्पकार

Comments :

16 टिप्पणियाँ to “एक कविता -अपनी-अपनी गति की ओर "ललित शर्मा"”
Unknown ने कहा…
on 

"बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है"


शाश्वत सत्य!

जो जा के ना आये वो है जवानी
जो आ के ना जाये वो है बुढ़ापा

Udan Tashtari ने कहा…
on 

क्या बात है!! शानदार!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
on 

सुन्दर रचना!
पढ़कर आनन्द आया!

Dev ने कहा…
on 

jewan ki kala ko waykt kerti .hui ye rachna ........bahut badhiya

Unknown ने कहा…
on 

जीवन के मर्म को स्पर्श करती बहुत ही सरल कविता

कडुवासच ने कहा…
on 
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कडुवासच ने कहा…
on 

...bahut khoob ... kamaal-dhamaal !!!!

drsatyajitsahu.blogspot.in ने कहा…
on 

Bahut accha kavya ras hai...........................Fauji bhai apne ko likhte ho aap to chattisghar ki ahinsak aandolan ke support me kuch krantikari aur rachanatmak kavita aur lekh likhan to as a chhatisghari mujhko aap par jayada fakr hoga........................................................................

Yashwant Mehta "Yash" ने कहा…
on 

सरल शब्द भाव गम्भीर

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

खीसें निपोरता हुआ यौवन
जर्जर बुढापे को देखता है
बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है
दोनों एक दुसरे के विपरीत

फ़िर भी सामंजस्य है
दोनों गुजर जाते हैं
अपनी-अपनी गति की ओर
काल को रौंदते हुए

बेहतरीन पंक्तिया गुरूजी !

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है
दोनों एक दुसरे के विपरीत
फ़िर भी सामंजस्य है
दोनों गुजर जाते हैं
अपनी-अपनी गति की ओर
काल को रौंदते हुए
उमदा रचना बधाई

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

बहुत लाजवाब जी

रामराम

dipayan ने कहा…
on 

"बुढापा यौवन का भविष्य है
यौवन बुढापे का इतिहास है "

सत्य कहा आपने । बहुत खूब ।

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…
on 

बसंत में काहे ई सब देखने लगे , सरकार !
अभी तो आप बुढ़ापे की बात न कीजिये !
फोटो ही आपको चिढ़ा देगा और हम सब कहेंगे कि
नकली फोटो लगाया है - :)

शरद कोकास ने कहा…
on 

वाह भाई कवि।

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…
on 

shashwat satya ko aapne kavita
ke roop me bahut jaandaar
varnan kiya hai......
par "KAL" KO raundna ????
KAL yane samay wah to
chalta hi rahega

 

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