मुझे मालुम है
चुपके से तुम्हे
आना है एक दिन
तोडना है तुम्हे
मेरे मधुर स्वप्न को
भग्न करना है तुम्हे
मेरे बांधे हुए
मंसूबों को
मुझे मालूम है
तुम तो आओगी ही
पाषाण ह्रदय
हाँ! तुम हो
पाषाण ह्रदय
निर्दयी, कठोर
क्या तू ये नहीं कर सकती
कि तू आती ही नहीं
अगर तुझे आना ही है
तो सिर्फ इतना कर देना
जो जहाँ से जाने से पहले
मैं कर लूँ अपने मन कि
दुनिया से नाता
तोड़ने से पहले
मैं कर लूँ अपने मन की
मैं आरजू पूरी कर लूँ अपनी
फिर तेरा स्वागत है
एक बार आने का
समय बता दे.
आपका
शिल्पकार
वाह ! बहुत खूब !!
"पाषाण ह्रदय
हाँ! तुम हो
पाषाण ह्रदय
निर्दयी, कठोर"
तुम्हारी उपेक्षा के बाद भी ...
तुम्हारे साथ की अपेक्षा ...
कभी तुम्हें भूलने के लिए ...
तो कभी तुम्हें याद करने के लिए ...
पीना ...
और केवल घुट घुट कर ...
जीना ...
सिर्फ यही दीवानापन ...
बन गया है मेरा जीवन ...
कि तू आती ही नहीं
अगर तुझे आना ही है
तो सिर्फ इतना कर देना
जो जहाँ से जाने से पहले
मैं कर लूँ अपने मन कि
दुनिया से नाता
तोड़ने से पहले
मैं कर लूँ अपने मन की
बहुत खूब ललित जी, दिल की गहराइयों से निकले भाव है !
"पाषाण ह्रदय
हाँ! तुम हो
पाषाण ह्रदय
निर्दयी, कठोर"
वाह एक तरफा फैसला? बहुत अच्छी रचना है शुभकामनायें
बहुत ही साहसिक सोच है आपकी।
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अदभुत है मानव शरीर।
गोमुख नहीं रहेगा, तो गंगा कहाँ बचेगी ?
अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई !
तुम तो आओगी ही
पाषाण ह्रदय
हाँ! तुम हो
पाषाण ह्रदय
निर्दयी, कठोर
बहुत् सुंदर कविता भावो से भरपुर.
धन्यवाद
पाषाण ह्रदय कठोर ...कोई प्रेयसी तो नहीं रही होगी ...
एक बार आने का समय बता दे ...
शायद यह आह्वान मृत्यु से किया जा रहा है ....!!
वाणी गीत जी आपने बिलकुल सही पकड़ा, ये आह्वान मृत्यु के लिए ही है। आभार