होली का माहौल बन रहा है. रंग-अबीर-गुलाल और गारी-ठिठोली भी चलेगी जम कर भंग भी घुटेगी और ठंडाई के साथ छनेगी-चढ़ेगी. ऐसे हालत में कभी कभी लोग अपने घर का ही रास्ता भूल जाते हैं या बुरा ना मानो होली है कह के थोड़ी "मौज लेने" के चक्कर में रहते हैं. अगर कहीं फँस गए तो "बुरा ना मानो" के अमोघ मन्त्र का प्रयोग करके बच जायेंगे. अगर कोई बुरा मान गया तो फिर...............जोगी.....रा.......फँस गया...............
जब भंग सर चढ़ जाये, होते उल्टे काम
श्याम लाल के घर में, घुसे होलिया राम
घुसे होलिया राम, जमके लाठियां खाई
सर भी फुट गया, और टांगे भी तुडवाई
कहे "ललित" सुनो, तब नानी याद आये
कंधों पे पंहुचे घर,जब भंग सर चढ़ जाये
आपका
शिल्पकार
के जोगीरा सर र र र र !! :)
सादर
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
शेर सिंह जी ज़रा संभल के...बीस दिन पहले ही होली के सरूर में आ गए...होली वाले दिन तक आपका क्या हाल होगा वही सोच-सोच कर घबरा रहा हूं...
जय हिंद...
हा हा जोगीरा सर र र र र र।
ललित जी फागण चढ़ग्यो ला ग है :)
बुरा ना मानो होली है कह के थोड़ी "मौज लेने" के चक्कर में रहते हैं.
@ लगता है मौज लेने वाले कोई मौका चूकना नहीं चाहते |
ये ब्लोगिंग का नशा भी ऐसा है कि छुट्टी में भी चैन नहीं है।
आप तो अवकाश पर थे, न?
हा हा!!.जोगी जी.... जरा....बच के.....!!!
ई कैसी छुट्टी है भाई कि बीच में टपक पड़े!! :) नहीं न छुटती है ये बिमारी!!
आहा फिर लौट आये ..लागी नाही छूटे रामा ....फागुन फिर कब आये या ना भी आये
होली है भई होली है!!
ललित जी तो अवकाश पर गये थे
फ़ाग की मदमस्त करने वाली हवा में रंग कर आ गये सरकार
ललित जी कौन से कोने से छुपकर कर रहें है ब्लोगिंग???
गलत मत समझना ललित जी, मेरा आशय था कि छुट्टी में जाने के पहले पोस्टों को शेड्यूल्ड करना नहीं भूले थे! हा हा
तो भैया ....भांग न खायो ......बहुत अच्छी रचना
होली है
बाबा जी की होली है
चढ़ा ली सबने गोली है
बहुत बढ़िया!!
भांग के नशे से ज्यादा तेज है जी यह ब्लोगिंग का नशा....
अभी तो शिवरात्रि का आनन्द है। होली तो अभी दूर है।
बहुत बढिया शुरुआत.
रामराम.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 13.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/