जब
मौसम ने ली अंगड़ाई
बदरी ने झड़ी लगाई
सूरज ने आँखे चुराई
तब,प्रिय तेरी याद आई।
जब
अपनो ने की बेवफ़ाई
पवन ने अगन लगाई
घनघोर अमावश छाई
तब,प्रिय तेरी याद आई
जब,
निर्धनता बनी ठिठोली
कर्कश हुई मीठी बोली
सपनो ने सहेजा डेरा
तब,प्रिय तेरी याद आई
जब
दुश्मनों ने हाथ बढाए
ठग माथे चंदन लगाए
समय ने लगाया फ़ेरा
तब, प्रिय तेरी याद आई
जब
सीने में धड़का दिल
रोशनी हुई झिलमिल
जैसे आने लगा सवेरा
तब,प्रिय तेरी याद आई
जब
शिल्पकार भूल गया
ठक-ठक का मधुर गीत
पत्थरों से आता हुआ
तब,प्रिय तेरी याद आई
शिल्पकार
प्रिय तेरी याद आई
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 28 अगस्त 2010
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वाह शिल्पकार के भावों को खूब उतारा है शब्दों में ।
बढ़िया अभिव्यक्ति
सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
ये तो महाराज, जब भी साँस आई - प्रिय तेरी याद आई, हो गया।
बहुत अच्छी पोस्ट लगी।
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुती ..
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
सुंदर कविता-दिल से निकली कविता
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं।
आप की बोर्ड तोड़ मेहनत करते हैं।
दुश्मनों ने हाथ बढाए
ठग माथे चंदन लगाए
समय ने लगाया फ़ेरा
तब, प्रिय तेरी याद आई
भावों को खूब उतारा है
आज आपको दिल से टिप्पणी देना का मन था
अब चलता हूँ फ़िर आउंगा।
@हरीश
ये तमाशा क्यों कर रहे हो।
तुम्हारे मित्र का हाल नहीं पता क्या?
जरा उनसे मिल लो तो पता चल जाएगा।
जरा देख लो कहीं सिगरेट केश और रुमाल तो नहीं भूल गए हो।
यानि कि हर पल याद आई ...
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
जब
अपनो ने की बेवफ़ाई
पवन ने अगन लगाई
घनघोर अमावश छाई
तब,प्रिय तेरी याद आई
वाह , ललित जी बहुत सुन्दर , ऊपर से जब कम्वख्त मौसम ऐसा हो तो इंसान तो क्या पत्थरों को भी प्रियतम की याद सताने लगती है !
कई तरह के भाव समेटे सुन्दर अभिव्यक्ति ।
सुंदर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत उम्दा रचना...
बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति।
sundar rachna
सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
होलै से भावो को स्पर्श किया
और शब्द अलंकृत हो गये।
क्या खूब शिल्प सज़ा है।
मन उद्देलित करने के लिये आभार्।
''शिल्पकार भूल गया
ठक-ठक का मधुर गीत
पत्थरों से आता हुआ''........तब तो याद आनी ही थी!
बधाई.
ऐसे शिल्पकारों के स्पर्श से ही 'पत्थर गीत गाने लगते हैं।'
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बधाई!
प्रिय "प्रेम" है। प्रेम की अनुभूति महत्वपूर्ण है चाहे वह किसी बहाने हुई हो।
आपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ....वहाँ आपका स्वागत है ..
http://charchamanch.blogspot.com/
जब,
निर्धनता बनी ठिठोली
कर्कश हुई मीठी बोली
सपनो ने सहेजा डेरा
तब,प्रिय तेरी याद आई
..बहुत सुन्दर... बहुत सार्थक
मौसम , बदरी , सूरज , अमावस
किसने तेरी याद ना दिलाई
किस- किस तरह तेरी याद ना आई ...!
सुन्दर भावाभिव्यक्ति| प्रियतम की याद जाने कब कब आयी|
आप अच्छा लिखते हैं सच गुरु मज़ा आ गया सुन्दर वाह
दुश्मनों ने हाथ बढाए
ठग माथे चंदन लगाए
समय ने लगाया फ़ेरा
तब, प्रिय तेरी याद आई
...बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुती
आपकी कविता सुनिए यहाँ -http://sanskaardhani.blogspot.com/
-धन्यवाद, अनुमति के लिए ....