फागुन का मौसम है और होली अब कदम बढाते हुए दरवाजे तक पहुँच गई है. हमारे ग्रामांचल में कृष्ण और राधा के होली के फाग गए जाते हैं. गोपियों संग खेली कृष्ण की होली मशहूर है. होली के इर्द-गिर्द बैठ कर जब नगाड़ों की धुन के साथ ये फाग गाये जाते हैं वातावरण होलीमय हो जाता है. ऐसा ही एक गीत परंपरा से हमारे यहाँ गाया जाता है. आप भी आनंद लीजिये..........
मोहन खेलै होरी, मोहन खेलै होरी,
चलो वृषभान के दुलारी
काखर भिंज गै लहँगा,
काखर सारी, काखर सारी
काखर भिंज गै चुनरिया
कौन रंग मारी, कौन रंग मारी
चलो वृषभान के दुलारी
राधा के भिंज गै लहँगा,
ललिता के सारी, ललिता के सारी
चन्द्रावली के चुनरिया
मोहन रंग मारी, मोहन रंग मारी
चलो वृषभान के दुलारी
चलो वृषभान के दुलारी
काखर भिंज गै लहँगा,
काखर सारी, काखर सारी
काखर भिंज गै चुनरिया
कौन रंग मारी, कौन रंग मारी
चलो वृषभान के दुलारी
राधा के भिंज गै लहँगा,
ललिता के सारी, ललिता के सारी
चन्द्रावली के चुनरिया
मोहन रंग मारी, मोहन रंग मारी
चलो वृषभान के दुलारी
प्रस्तुतकर्ता
शिल्पकार,
वाह वाह!! गा और देते ललित भाई तो आनन्द दूना हो जाता. :)
Behad sundar prastuti....Aabhar!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
क्या बात है ललित भईया , एक से बढ़कर एक रोज ही धमाका कर रहे हैं ।
वाह ! बहुत बढ़िया.
वाह बहुत शानदार.
रामराम.
आप तो रस की गंगा बहा दिए हैं,लाजवाब.
amar lok geet hai yah. lok geet amar hi rahate hai. prem me pagaa geet ab is baar holi khelane ka man ho raha hai..
मोहन रंग मारी ,वाह मोहन के ख्याल से होली रंगीली हो जाती है
sahi kah rahe hain Udan Tashtri ji
bus gaa diye hote to such me maza doguna ho jata.
लट्ठमार होली की बधाई!
होली के रंग
महुआ के संग
बहुत सी बधाई इस लठ मार होली की जी