हमने लगाना चाहा मुहब्बत का शजर
मौसम मे किसने घोला है बहुत जहर
मामला संगीन हुआ वो लाए हैं खंजर
पता नही कब दिखाए लहुलुहान मंजर
बहुत ख़ामोशी होती है तूफान के पहले
लावा पिघलता ही है फौलाद के पहले
छल करने वालों ने क्या सोचा है कभी
अंगारे सुलगते हैं कहीं, आग के पहले
देखो कोई वार पर तुरंत प्रहार करता है
कोई उचित समय का इंतजार करता है
जो खड़ा है साक्षी बनकर रणक्षेत्र में
इतिहास उसका भी सत्कार करता है
आपका
शिल्पकार
हमने लगाना चाहा मुहब्बत का शजर!!
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
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ब्लाग प्रहरी,
ललित शर्मा
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देखो कोई वार पर तुरंत प्रहार करता है
कोई उचित समय का इंतजार करता है
जो खड़ा है साक्षी बनकर रणक्षेत्र में
इतिहास उसका भी सत्कार करता है |
.
---- लेकित कुछ तटस्थताओं को अपराध भी माना गया है ,,
दिनकर --- '' जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध '' !
सुन्दर कविता ! आभार ,,,
देखो कोई वार पर तुरंत प्रहार करता है,
कोई उचित समय का इंतजार करता है,
जो खड़ा है साक्षी बनकर रणक्षेत्र में,
इतिहास उसका भी सत्कार करता है...
आ देखे ज़रा, किसमें कितना है दम,
जम के रखना कदम, मेरे साथिया...
जय हिंद...
कसी हुई सशक्त कविता
"जो खड़ा है साक्षी बनकर रणक्षेत्र में
इतिहास उसका भी सत्कार करता है"
बहुत अच्छे!
बहुत ख़ामोशी होती है तूफान के पहले
लावा पिघलता ही है फौलाद के पहले
छल करने वालों ने क्या सोचा है कभी
अंगारे सुलगते हैं कहीं, आग के पहले
बहुत बढिया गज़ल है बार बार पढने का मन करता है
वाह! बहुत खूब....... आपने तो निःशब्द कर दिया...
महाराज की जय।
हिन्दी की जय।
जो खड़ा है साक्षी बनकर रणक्षेत्र में
इतिहास उसका भी सत्कार करता है |
वाह वाह ललित भाई। बहुत सुन्दर भाव
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
Guru mice sudharva lo
http://savysachi.mypodcast.com/2010/02/Shri_Rajiv_Taneja-282601.html
@ गिरीश भाई,
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ये मुहब्बत का शजर फूले-फले और आपको ऊर्जा प्रदान करे!
achchhi-sarthak koshish hai...
उचित समय कर इन्तजार करता है या तुरंत प्रहार करता है ...इंसान वही जो वार का प्रतिकार करता हैं ...!!
बढिया है ललित बाबू।
छल करने वालों ने क्या सोचा है कभी
अंगारे सुलगते हैं कहीं, आग के पहले
बहुत सशक्त कविता....लेखन शैली ने विशेष छाप छोड़ी है..
बहुत गजब का लिखा. शुभकामनाएं.
रामराम.
लाजवाब ....लिखा आपने
इस बार थोड़ा ज्यादा ही गजब किये हैं...
bejod likhte hain aap ...!!
.... प्रभावशाली व प्रसंशनीय रचना !!!
ललित जी आप तो निःशब्द कर देते है.............आपकी कविता स्वप्नलोक से यथार्थ कि यात्रा कराती है....
देखो कोई वार पर तुरंत प्रहार करता है
कोई उचित समय का इंतजार करता है
जो खड़ा है साक्षी बनकर रणक्षेत्र में
इतिहास उसका भी सत्कार करता है
Kya baat hai!
तोर कल्पना शक्ति के
अउ शब्दकोष के कोई सानी नई ये
तेखर पाय के मोरो मन मा भाव आईस;
जो खड़ा है साक्षी बनकर रणक्षेत्र में
इतिहास उसका भी सत्कार करता है |
इन शब्दों के श्रृंगार को देख
ललित भाई का शब्द चयन
हममे उर्जा का संचार करता है