दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
हाड़-तोड़ भाग-दौड़
फ़िर दिमागी दौड़ भाग
जीवन में विश्राम नहीं
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
झूठ-षड़यंत्र, जोड़-तोड़
फ़िर होती रही धोखा-धड़ी
जीवन में बस काम यही
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
मेरे आगे, कोई मेरे पीछे
बढता जाता, ऐसे कैसे चलता
क्यों होता मेरा नाम नहीं
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
शैतानी आँखे, उड़ती पाँखे
सरहद पार, हो आती हैं कैसे
क्या उसका कोई धाम नहीं
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
अविता-कविता,ढोला-मारु
प्रेम-पींगे,मदमस्त यौवन
बताओ क्या ये बदनाम नहीं
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
शिल्पकार
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 26 अगस्त 2010
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झूठ-षड़यंत्र, जोड़-तोड़
फ़िर होती रही धोखा-धड़ी
जीवन में बस काम यही
दिल को छू गयी बहुत बहुत बधाई
जिंदगी की सच दिखाती रचना .. दौडने की शुरूआत तो जरूर दो रोटियों से हुई है .. पर आज किसी के भी लालच का अंत नहीं !!
झूठ-षड़यंत्र, जोड़-तोड़
फ़िर होती रही धोखा-धड़ी
जीवन में बस काम यही
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
... शर्मा जी बहुत दिनों बात आपकी इतनी खूबसूरत और सशक्त रचना पढ़ने को मिली,,, सचमुच मेरी नज़र मे तो कालजयी रचना है ... मेरा राम राम स्वीकार करें
जीवन भर दो रोटी के पीछे ही तो भागता रहता है इंसान ...यथार्थ को कहती रचना
जिधर देखो उधर पापी पेट का सवाल है
चलो हो जाती है येन केन प्रकारेण उदर पूर्ति
फिर भी शानो शौकत की ज़िन्दगी बिताने को बेताब
"तेरी कमीज़ मेरी कमीज़ से इतनी सफ़ेद क्यूं'
की उधेड़-बुन में लगा मानव, भिड़ा है करने में २+२=५,
तो कहीं मचा रहा बवाल है.
रचना बेहद मार्मिक .... बहुत बहुत बधाई
ब्लॉग जगत के शिखर पर पहुँचने को
केवल नौ सीढ़ी बची है भाई
इसकी भी देते हैं तहे दिल से
आपको बहुत बहुत बधाई
You are right , Lalit ji Sab roti ke bahaane hee hota hai !
पर पाई पेट इतना भी नही दौडाता, तॄष्णा बैरन पागल बना देती है.
रामराम
सच बात .....दो रोटियां कितना दौडाती ..
जन्म से मृत्यु तक दौडता है आदमी,
दो रोटी एक लंगोटी दो गज कच्ची ज़मीन,
के खातिर जिंदगी में धन जोडता है आदमी,
और जोडते जोडते ही दम तोडता है आदमी ॥
कहीं सुना था।
आपकी रचना ने याद दिला दी। आभार।
यहां भी पधारिये:
http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/08/blog-post_26.html
सचमुच दोस्त
दो रोटियां काफी दौड़ाती है
कई तरह के करतब दिखाती है रोटियां
जब तक आप महंगाई से गले न - मिल लें, तब तक दौड़ाती ही रहेंगी और जिनके पास हैं दो सौ करोड़ रोटियां, वे भी तो दौड़ रहे हैं - वे रोटियों के नहीं, रोटी बनाने वाले की तलाश में दौड़ रहे हैं।
वाह !!! क्या कविता है
दो रोटियाँ.............वाकई बहुत दौडाती हैं । पर क्या सिर्प रोटियाँ ?
दो रोटियां...कितना दौड़ाती हैं...?
मंगलवार 31 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
bahut badiya lalitji