ठाकुर जगमोहन सिंह एक जाना पहचाना नाम है खड़ी बोली के गद्य को संवारने और गढ़ने वाले साहित्य करों में. बनारस के क्वींस कालेज में अध्ययन के दौरान वे भारतेंदु हरिश्चंद्र के सम्पर्क में आए तथा यह सम्पर्क प्रगाढ़ मैत्री में बदल गया जो की जीवन पर्यंत बनी रही.
ठाकुर जगमोहन सिंह का जन्म विजयराघवगढ़ रियासत में ठा.सरयू सिंह के राज परिवार में ४ अगस्त सन १८५७ में हुआ था. ठा. सरयू सिंह के पूर्वजों का संभंध इछ्वाकू वंश के जयपुर के जोगवत कछवाहे घराने से था. १८५७ के विप्लव में ठा. सरयू सिंह ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. फलस्वरूप अंग्रेजो ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उन्हें काले पानी की सजा सुनाई गई. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत में सजा भोगने की बजाय ठा. सरयू सिंह ने मौत को गले लगना उचित समझा.ठा.जगमोहन सिंह ऐसे ही क्रांतिकारी, मेधावी एवं स्वप्न दृष्टा सुपुत्र थे.
१८७८ में शिक्षा समाप्ति के बाद वे राघवगढ़ आ गए. दो साल पश्चात् १८८० में धमतरी (छत्तीसगढ़) में तहसील दार के रूप में नियुक्त किये गए. बाद में तबादले पर शिवरीनारायण आये. कहा जाता है कि शिवरीनारायण में शादी शुदा होते हुए भी इन्हें श्यामा नाम की स्त्री से प्रेम हो गया. शिवरीनारायण में रहते हुए इन्होने श्यामा को केंद्र में रख कर अनेक रचनाओं का सृजन किया. जिनमे हिंदी का अत्यंत भौतिक एवं दुर्लभ उपन्यास श्याम-स्वप्न प्रमुख है. इसके अतिरिक्त इह्नोने श्यामलता, श्याम सरोजिनी जैसे उत्कृष्ट रचनाओं का भी सृजन किया. इनके द्वारा लिखित अन्य रचनाओं की चर्चा अगली किश्त में करेंगे. इनके द्वारा रचित कुछ कुंडलियाँ,जिनमें शिवरीनारायण क्षेत्र की दशा का वर्णन हैं--- प्रस्तुत है.
कुंडलियाँ
इक थाना तहसील के मध्य धर एक फुटि
उत बजार सों प्रबल जल निकस्यो अट्टा टूटि
निकस्यों अट्टा टूटि फ़ुटि गिजि परीं अटारी
गिरि गेह तजि देह देहरी और दिवारी
(क)जोगी डिफ़ा सुदीप मनौ तंह जल जाना
उत पुरब सब पंथ रोकि घेरवौ त थाना ॥
पूरब केरा के निकट पश्चिम निकट खरौद
लगभग फ़ेर लुहारसी उत्तर ग्रामहिं कोद
उत्तर ग्रामहि कोद जहां टिकरी पारा है
दच्छिन हसुवा खार पार लौ जल धारा है
जंह लौ देखो नजर पसारत जल जल घेरा
कैय्यक कोसन फ़ैलि घेरि फ़िरि पूरब केरा ॥
बह्यो माड़वारीन को व्योपारी सो आज
नोन हजारन को सही चिनी असीम अनाज
चिनी असीम अनाज बसन अरु असन मिठाई
चढि छप्पर जिहि छैल सुघर लूटत बहुखाई
बची कमाइ माल पसीनागारो जुरह्यो
बइमानी को पोत आजु मनु सोतहिं रह्यो॥
धाई चलत बजार मे नाव पोत जल सोत
तनक छिनक को ह्वे रह्यो काशमीर छवि होत
आरत करत पुकार कंपत तन धन गत सोगा
काशमीर छवि होत द्वार द्वारन पै डोंगा
मठ दरवाजे पैठ लहर मंदिर बिच आई
जंह छाती लौ नीर धार सुई तीरहिं धाई॥
पुरवासी व्याकुल भए तजी प्राण की आस
त्राहि-त्राहि चहुँ मचि रह्यो छिन-छिन जल की त्रास
छिन-छिन जल की त्रास आस नहिं प्रानन केरी
काल कवल जल हाल देखि विसरी सुधि हेरी
तजि तजि निज निज गेह देहलै मठहिं निरासी
धाए भोगहा ओर कोऊ आरत पुरवासी॥
कोऊ मंदिर तकि रहे कोऊ मेरे गेह
कोऊ भोगहा यदुनाथ के शरन गए लै देह
शरन गए लै देह मरन तिन छिन मे टारयौ
भंडारो सो खोलि अन्न दैदीन उबारयों
रोवत कोउ चिल्लात आह हनि छाती सोऊ
कोऊ निज धन घर वार नास लखि बिलपति कोऊ॥
सोरठा
कियो जौन जल हाल दिन द्वै मे को लेखई।
मानहु प्रलय सुकाल आयो निज मरजाद तजि॥
प्रस्तुतकर्ता
आपका
शिल्पकार
ठाकुर जगमोहन सिंह जी से परिचय कराने का आभार...अच्छी लगी कुण्डलियाँ और सोरठा.
ठाकुर जगमोहन सिंह के संबंध में जानकारी देने के लिए धन्यवाद भाई. श्यामास्वप्न हिन्दी साहित्य की महत्त्वपूर्ण कृति है, ठाकुर जगमोहन सिंह जी की कर्मस्थली शिवरीनारायण थी तद समय में छत्तीसगढ में हिन्दी लेखन का वातावरण तैयार करने में ठाकुर जगमोहन सिंह के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.
शिवरीनारायण महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.अश्विनी केशरवानी जी नें इस संबंध में एवं भारतेन्दुकालीन छत्तीसगढ के परिवेश के संबंध में बहुत कुछ लिखा है जिसमें से कुछ आनलाईन उपलब्ध है. ऐसी जानकाररियां अधिकाधिक रूप से नेट में आनी चाहिए, इन्हें टाईप करने में हमारा समय भले लगे, इन पोस्टों में एक भी कमेंट भले ना हो, कोई हाट-फाट भले ना हो बल्कि आगामी पीढी इससे लाभान्वित होगी.
एक बार पुन: बहुत बहुत धन्यवाद भाई.
ठाकुर जगमोहनसिंह जी ले परिचय और इन कुंडलियों और सोरठों के लिये आभार आपका.
रामराम.
हिन्दी के प्रतिभावान सेवक ठाकुर जगमोहन सिंह के परिचय के लिये आपको साधुवाद!
जानकारी के लिए आभार !
ठाकुर जगमोहन सिंह के परिचय के लिये आप का दिल से धन्यवाद
ठाकुर जगमोहन सिंहजी से परिचय के लिये आप का बहुत बहुत धन्यवाद !!
...प्रभावशाली प्रस्तुति,आभार!!!!
अभी ठाकुर जगमोहन सिन्ह का मूल्यांकन होना शेष है । इसके लिये यहाँ के लेखको को आगे आना होगा ।