महुआ बीनती
वह अनमनी सी लड़की
हँसती है जब
झरते हैं फूल, महुआ के
मन करता है उसके जूड़े में
खोंस दूं कुछ फूल टेसू के
इस वसंत में
उसे पहना दूं हार
सुर्ख सेमल के फूलों का
महुए के फूल बीनती वह
अभिसारिका
जब नदी किनारे बैठ कर
पैरों से छपछपाती है जल
तो उससे बनता है तीरथगढ़
धुंआधार जैसा जल प्रपात
उसके पायल की झंकार
देती झरनों को स्वर
उड़ती है बहुरंगी तितलियाँ
सुनने पायल की झंकार
सामने बैठा पंडुक जोड़ा
चुगता है मनियारी गोटी
कनखियों से देखता मेरी ओर
उड़ रहे हैं धरसा में
शाख से जुदा पीले पात
मन करता है खोंस दूँ
टेसू के फ़ूल और दोना पान
जूड़े में इस वसंत में
वह अनमनी सी लड़की
हँसती है जब
झरते हैं फूल, महुआ के
मन करता है उसके जूड़े में
खोंस दूं कुछ फूल टेसू के
इस वसंत में
उसे पहना दूं हार
सुर्ख सेमल के फूलों का
महुए के फूल बीनती वह
अभिसारिका
जब नदी किनारे बैठ कर
पैरों से छपछपाती है जल
तो उससे बनता है तीरथगढ़
धुंआधार जैसा जल प्रपात
उसके पायल की झंकार
देती झरनों को स्वर
उड़ती है बहुरंगी तितलियाँ
सुनने पायल की झंकार
सामने बैठा पंडुक जोड़ा
चुगता है मनियारी गोटी
कनखियों से देखता मेरी ओर
उड़ रहे हैं धरसा में
शाख से जुदा पीले पात
मन करता है खोंस दूँ
टेसू के फ़ूल और दोना पान
जूड़े में इस वसंत में
वसंत का दृश्य समेटती रचना ..
बिल्कुल नेचुरल भावाभिव्यक्ति !!
मधु (चैत) मास, महुए की गंध और पलाश की लाली... नैसर्गिक काव्य प्रवाह.
मन करता है उसके जूड़े में
खोंस दूं कुछ फ़ूल टेसू के
इस वसंत में
उसे पहना दूं हार...
वाह... बहुत सुन्दर अभिलाषा... वसंत खिल उठा पायल की झंकार गूंज उठी, हवाओं में गीत लहराने लगे...शुभकामनाएं
बसंत का आगमन और महुए की खुशबु से सराबोर यह रचना ...सेमल के फूलो की सुन्दरता लिए मन को भा गई जी ......
वाह-वाह कल्पना के सागर में डूब ही गए !
lalit ji kavita likhta jaroor hun par kambakht samjh mein nahi aati mujhe.. wasie padh kar achha lag raha tha... ;)
tesu ke ful aur basant ke sunder chitran ke liye blog guru ko bahut bahut aabhar
महुवे की महक से मह-माहती कविता
अति सुन्दर. आपकी पिछली पोस्ट में टेसू के फूल दिखे थे और अपना भी मन कुछ कुछ ऐसा ही बोलने लगा.मन का क्या करें वह तो बुढा नहीं रहा.
बहुत बढ़िया रचना
अरे वाह ! बस खूबसूरत !
अरे वाह ! बस खूबसूरत !
बहुत सुंदर बसंत का चित्रण