हम लड़ रहे हैं मित्र दोना पान के लिए
भाड़े में भीड़ जुटती है सम्मान के लिए
क्या नहीं होता अब पूजा के नाम पर
बिक जाते हैं फ़रिश्ते अनुष्ठान के लिए
है खेल सियासत का कुर्सी के वास्ते
तुलने लगे कुबेर भी अनुदान के लिए
अपने उसुलों के लिए बागी हुए हैं हम
छोड़े हैं सिंहासन भी स्वाभिमान के लिए
माला गले में डालने की होड़ मची है
सब दौड़ रहे हैं झूठी पहचान के लिए
संदेह से घिरी हैं सारी उपाधियाँ
जीता है कौन धर्म और ईमान के लिए
इतने गरीब हो गए नवरंग इन दिनों
दो फ़ूल जुटा न पाए बलिदान के लिए
माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग'
कोरबा (छ ग)
तुलने लगे कुबेर भी अनुदान के लिए
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 13 नवंबर 2010
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हम लड़ रहे हैं मित्र दोना पान के लिए
भाड़े में भीड़ जुटती है सम्मान के लिए
क्या नहीं होता अब पूजा के नाम पर
बिक जाते हैं फ़रिश्ते अनुष्ठान के लिए
गज़ब माणिक जी को बधाइयां भेजिये हमारी
माला गले में डालने की होड़ मची है
सब दौड़ रहे हैं झूठी पहचान के लिए
बहुत बढ़िया ... बधाई प्रस्तुति के लिए आनंद आ गया ... वाह
संदेह से घिरी हैं सारी उपाधियाँ
जीता है कौन धर्म और ईमान के लिए
इतने गरीब हो गए नवरंग इन दिनों
दो फ़ूल जुटा न पाए बलिदान के लिए
बहुत बढ़िया गज़ल माणिक जी की ...
माला गले में डालने की होड़ मची है
सब दौड़ रहे हैं झूठी पहचान के लिए
बिलकुल सही ...
इतने गरीब हो गए नवरंग इन दिनों
दो फ़ूल जुटा न पाए बलिदान के लिए
वाह ! बेहद उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए बहुत धन्यवाद .
वाह वाह
क्या नहीं होता अब पूजा के नाम पर
बिक जाते हैं फ़रिश्ते अनुष्ठान के लिए
है खेल सियासत का कुर्सी के वास्ते
तुलने लगे कुबेर भी अनुदान के लिए
बिलकुल सीधी बात कह दी सुंदर सटीक शब्दावली में.
उम्दा गज़ल.
वाह भाई । माणिक को बधाई ।
बहुत बढ़िया कृति . शुभकामना .
क्या नहीं होता अब पूजा के नाम पर
बिक जाते हैं फ़रिश्ते अनुष्ठान के लिए..
सुंदर सटीक शब्दावली!
बेहद उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए बहुत धन्यवाद .