वो लकड़ियाँ कहाँ हैं?
जिन्हे सकेला था बुखारी के लिए
अब के ठंड में
देती गरमाहट तुम्हारे सानिध्य सी
बुखारी ठंडी पड़ी पर
कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
महुए के कोयले की तरह
धीरे धीरे सुलगना मंजुर है
बुखारी के लिए
आपका
शिल्पकार
जिन्हे सकेला था बुखारी के लिए
अब के ठंड में
देती गरमाहट तुम्हारे सानिध्य सी
बुखारी ठंडी पड़ी पर
कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
महुए के कोयले की तरह
धीरे धीरे सुलगना मंजुर है
बुखारी के लिए
आपका
शिल्पकार
बहुत खूब ............ मै तो पहले बुखारी को क्छ और सम्झा था
बहुत खूब ............ मै तो पहले बुखारी को क्छ और सम्झा था
"संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं।" प्रकृति की निष्ठुरता के साथ साथ मानवीय संबंधों मे आ रही शीतलता का सुंदर चित्रण। आभार………
"संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं।" प्रकृति की निष्ठुरता के साथ साथ मानवीय संबंधों मे आ रही शीतलता का सुंदर चित्रण। आभार………
@ कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
वाह! लूट लिए आज तो।
गजब लिखा है !!
संबंधों की शीतलता के प्रति गहरी संवेदना ..बहुत अच्छी लगी रचना ..
संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं।
मुक्त हो जाना भी ठीक नहीं
महुए के कोयले की तरह
धीरे धीरे सुलगना मंजुर है
बुखारी के लिए
महुये के कोयले की तरह्……………सुन्दर बिम्ब ……………गज़ब का भाव संप्रेषण्।
bahut badhiya.....sundar rachna.
"संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं
गहरी बात कही है .
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
कांगड़ी और बुखारी का शानदार अनूठा प्रयोग !
कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
सुन्दर ..बहुत खूब..
sundar rachna.... saarthak vimb!
regards,
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं।
बेहतरीन रचना ...