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मैने नहीं सिलगाई बुखारी

वो लकड़ियाँ कहाँ हैं?
जिन्हे सकेला था बुखारी के लिए
अब के ठंड  में
देती गरमाहट तुम्हारे सानिध्य सी
बुखारी ठंडी पड़ी पर
कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
महुए के कोयले की तरह
धीरे धीरे सुलगना मंजुर है
बुखारी के लिए


आपका 
शिल्पकार

Comments :

16 टिप्पणियाँ to “मैने नहीं सिलगाई बुखारी”
dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…
on 

बहुत खूब ............ मै तो पहले बुखारी को क्छ और सम्झा था

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…
on 

बहुत खूब ............ मै तो पहले बुखारी को क्छ और सम्झा था

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…
on 
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…
on 

"संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं।" प्रकृति की निष्ठुरता के साथ साथ मानवीय संबंधों मे आ रही शीतलता का सुंदर चित्रण। आभार………

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…
on 

"संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं।" प्रकृति की निष्ठुरता के साथ साथ मानवीय संबंधों मे आ रही शीतलता का सुंदर चित्रण। आभार………

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…
on 

@ कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए

वाह! लूट लिए आज तो।

संगीता पुरी ने कहा…
on 

गजब लिखा है !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
on 

संबंधों की शीतलता के प्रति गहरी संवेदना ..बहुत अच्छी लगी रचना ..

vandana gupta ने कहा…
on 

संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं।
मुक्त हो जाना भी ठीक नहीं
महुए के कोयले की तरह
धीरे धीरे सुलगना मंजुर है
बुखारी के लिए

महुये के कोयले की तरह्……………सुन्दर बिम्ब ……………गज़ब का भाव संप्रेषण्।

arvind ने कहा…
on 

bahut badhiya.....sundar rachna.

shikha varshney ने कहा…
on 

"संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं
गहरी बात कही है .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
on 

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

वाणी गीत ने कहा…
on 

कांगड़ी और बुखारी का शानदार अनूठा प्रयोग !

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…
on 

कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए

सुन्दर ..बहुत खूब..

अनुपमा पाठक ने कहा…
on 

sundar rachna.... saarthak vimb!
regards,

M VERMA ने कहा…
on 

सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
संबंधों में इतनी शीतलता ठीक नहीं।
बेहतरीन रचना ...

 

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