कवि रामेश्वर शर्मा का एक गीत
देख क्रुरता फ़ूलों की हम दंग हो गये
जीवन है या जटिल समस्या तंग हो गये।
आदर्शों के रंग गिरगिट के रंग हो गये।
कपटी भावों में डूबे जग मुंह बोले संबंध हुये
विश्वासों के रुपक पछतावे भर के अनुबंध हुये
सच धोखे के व्यापारी के संग हो गये।
आशाओं का राग रंग तो भ्रम का खेल खिलौना है
संध्या की आशंकाओं में घिरा हुआ दोपहर बौना है
संयम नियम विवशताओं के अंग हो गये।
अपनी-अपनी लोलुपता में मधुमक्खी है लोग बने
परिभाषाओं के प्रपंच में अर्थ व्यर्थ का रोग बने
देख क्रुरता फ़ूलों की हम दंग हो गये।
रामेश्वर शर्मा
शिवनगर मार्ग बढई पारा
रायपुर (छ.ग.)
09302179153
देख क्रुरता फ़ूलों की हम दंग हो गये--एक गीत
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
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ललित शर्मा
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ललित जी छा गये जी आप
अपनी-अपनी लोलुपता में मधुमक्खी है लोग बने
परिभाषाओं के प्रपंच में अर्थ व्यर्थ का रोग बने
देख क्रुरता फ़ूलों की हम दंग हो गये।
बहुत बढ़िया ..
chupee krurta kafee khatarnaak hotee hai
bahut badiya
बहुत बढिया रामेश्वर जी बहुत बढिया।
सुन्दर रचना है ..
समय के सच को कहती !
आभार !
aaj ke samay ka sach , behtar byaan kiya hai ..
बहुत खुब जी, धन्यवाद
sundar geet..sachmuch, kabhi-kabhi fool bhi kroor ho jate hai....
अपनी-अपनी लोलुपता में मधुमक्खी है लोग बने ..परिभाषाओं के प्रपंच में अर्थ व्यर्थ का रोग बने
....बहुत अच्छी रचना
अपनी-अपनी लोलुपता में मधुमक्खी है लोग बने ..परिभाषाओं के प्रपंच में अर्थ व्यर्थ का रोग बने
....बहुत अच्छी रचना
कपटी भावों में डूबे जग मुंह बोले संबंध हुये
विश्वासों के रुपक पछतावे भर के अनुबंध हुये
सच धोखे के व्यापारी के संग हो गये।
क्रूर सत्य ...मगर फिर भी अपने आत्मसंतोष के लिए सत्य की राह ना छूटे , कोई आस ना टूटे ...!
बेहतर गीत...