होली बीत गई अब पतझड़ आ गया है........वातवरण में गर्माहट है.........पेड़ों के पत्ते पीले पड़ रहे हैं........ वृक्ष अपना क्या कल्प कर रहे हैं इस मौसम में पूरण पत्ते छोड़ कर नए धारण कर रहे हैं जैसे कोई अपनी क्या चमकाने कपडे बदल रहा हों....... पलाश के पेड़ों पर तो लाली गजब की छाई है......... एक दिन उसे भी दिखाऊंगा......... चित्रों के माध्यम से........ होली के उल्लास के बाद अब कहीं जाकर खुमार उतरा है........ लेकिन मन कुछ अनमना सा है मौसम का असर है.......... पतझड़ का मौसम होता ऐसा ही है.......... जब रौनके देखी तो पतझड़ भी देखना है दुनिया का कटु सत्य है......... प्रकृति के साथ मनुष्य जुड़ा हुआ है........... लेकिन प्रकृति से यह भी सीख लेनी चाहिए की किसी भी तरह का उल्लास दो घडी का है और आप यदि विवेकी है तो इसका रचनात्मक उपयोग कर सकते हैं............ नहीं तो फिर पतझड़ सामने ही है........... टूट कर पत्तों की तरह बिखर जाना है..........आइये पतझड़ पर एक कविता प्रस्तुत है....... आपका आशीर्वाद चाहूँगा......................
पतझड़ आया
पतझड़ का मौसम
वृक्ष पर एक भी पत्ता नहीं
यह मौसम पहले भी आता था
अब फिर लौटा
कोयल की कूक
बुलबुल के नगमे खो गए हैं
दूर गहराईयों में
उदास डाल पे बैठी है कोयल
तेज पवन के झोंकों से
पत्तों के खड़कने की सदा आती है.
वृक्ष केंचुली बदल रहा है
यौवन की आस में
सूखे पत्ते तड़फ रहे हैं प्यास में
यही नियति हैं
कल आंधी तुफानो में
पत्तों ने दिया था भरपूर साथ
लेकिन आज सर हिला दिया
सारे सर चढ़े पत्ते गिर पड़े भरभरा कर
पत्ते कहते हैं
पहले भी हमने संकट काल में
विपदाओं से डट कर मुकाबला किया
लेकिन वृक्ष ने ही साथ छोड़ दिया
अबकी बार हमारे पांव उखड़ गए
आँधियों से मुकाबले में
हम छलके हुए पारे की तरह बिखर गए
यह तो नियति का खेल है
कुछ देर यौवन का उन्माद देखना है
फिर टूट कर समाहित हो जाना है
इसी दुनिया की धुल में
गुम हो जाना है बिना किसी नाम के
बेनाम हो कर/ मनुष्य की तरह
आपका
शिल्पकार,
पतझड़ के मौसम का बढ़िया काव्यमय वर्णन ...सुंदर प्रस्तुति...धन्यवाद
उम्दा चित्रण ललित भाई..बहुत बढ़िया!
बहुत सुंदर चित्रण किया आपने.
रामराम.
पतझड भी तो कोई संदेश देती ही है .. सुंदर रचना के लिए आपको बधाई !!
yahi to srishti ka chakra hai ........har baar mausam badalta hai jis tarah jeevan mein bhi subah shaam aati hain usi tarah.
आप यदि विवेकी है तो इसका रचनात्मक उपयोग कर सकते हैं...
lalitji aapne to saarthak upyog kar liya..bahut khoob!
बहुत बढ़िया!
बहुत सुंदर रचना,्धन्यवाद
पतझड़ न हो तो शायद बसंत भी फीका लगे.
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत अच्छी कविता।
पतझड़ को कविता का विषय बनाया आपने और उस ओअर भी जान डाल दी………………बहुत ही अच्छ लिखा है…………………।सुन्दर