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लाल -गुलाल -अबीर के छाये हए हैं रंग-----चित्र होली के----------ललित शर्मा

ल होली का हुआ धमाल-हम तो सुबह से ही तैयार हो कर अपने दालान में बैठ चुके थे.........हमारे यहाँ परंपरा है कि लोग अपने से बड़े (पद, प्रतिष्ठा, उम्र और अजीज मित्र ) को पताशों के बने हुए मीठे हार पहनाते हैं........ बहुत ही अच्छी परंपरा है कि होली में कडुवाहट भूल कर मिठास जीवन में बनी रहे.........सुबह से ही मित्रगण और गांव के सहयोगी आने प्राम्भ हो चुके थे. ............ . गुलाल रंग और मालाएं लेकर ........फिर होली का कार्यक्रम शुरू हो चूका था...........जो दिन भर चलता रहा...........इस अवधि में तो फोन भी उठाना मुस्किल हो जाता है.......पुरे भारत से होली की शुभकामनाओं के सन्देश आ रहे थे.............हमारे नए पुराने मित्रों के ..........हमने उन्हें शाम को जवाब दिया...........और हमारी फौजी होली आखिर शाम को ही मनी..........कुछ पटियाला और कुछ जालन्धर पेग बने और फिर चलती रही महफ़िल.........होलीयारे मित्रों के साथ.......... .होली में यह कुछ दस्तूर भी हो गया है.........बिना दवा- दारू के स्वागत होता ही नहीं है..........
हमारे यहाँ होली पंचमी तक मनाई जाती है जिसे रंग पंचमी भी कहा जाता है.......लेकिन आज ऐसी स्थिति है कि जैसे फागुन के बाद सचमुच पतझड़ आ ही गया हो........धुप चमकीली हो चुकी है.........वातावरण में गरम हवाएं चल रही हैं...........होली के जाते ही पेड़ों के पत्ते पीले पड़ गए हैं............ अब इस पर फिर कभी लिखेंगे हमारी होली में आप भी शामिल होईये  कुछ चित्रों के साथ..................

  कुछ चित्र होली के मित्रों के साथ

 चंद्रिका और युवराज कुमार

 
तुलेन्द्र तिवारी जी और अनुज साहु जी

 
फ़ौजी जैन साहब और अजय शर्मा

 
होली चलेगी रंग पंचमी तक

 
नरेश कुमार बचपन का मित्र 

 
अब हमने खेली होली श्रीमती जी के संग
लाल -गुलाल -अबीर के छाये हए हैं रंग  




आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें 


Comments :

14 टिप्पणियाँ to “लाल -गुलाल -अबीर के छाये हए हैं रंग-----चित्र होली के----------ललित शर्मा”
Unknown ने कहा…
on 

"हमारे यहाँ परंपरा है कि लोग अपने से बड़े (पद, प्रतिष्ठा, उम्र और अजीज मित्र ) को पताशों के बने हुए मीठे हार पहनाते हैं........ "

ललित जी, आप सौभाग्यशाली हैं कि आपके यहाँ बताशों वाली माला याने कि शक्करमाला की परम्परा अभी भी जारी है! रायपुर में तो इस पुरानी परम्परा का लोप हो चुका है। रंग पंचमी को भी यहाँ भुला दिया गया है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

बढ़िया चित्रण होली का ललित जी !

Arvind Mishra ने कहा…
on 

वह यह तो लाजवाब हो ली है

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…
on 

bahut hi sundar chitran
kiya hai holi ka
aur bhaiya saabit kar diya
aapne ki aap unke ho liye hain
aur mahraajin aapki ho lee hain.
Jeevan yun hi khelta khata muskuraata chalta rahe
shubhkaamnaaon sahit

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

बहुत जोरदार वर्णन किया जी आपने तो आपके अनुभवों का. होली की रामराम.

रामराम.

कडुवासच ने कहा…
on 

हमर शिल्पकार भाई ला होली के राम-राम ...जय जोहार ....सबो झन ला रंग-गुलाल !!!!

महेन्द्र मिश्र ने कहा…
on 

बड़ी झकास होली रही आपकी फोटो देखकर लग रहा है ... बढ़ी आपको और भाभीजी को ...

राज भाटिय़ा ने कहा…
on 

ललित जी बहुत सुंदर परंपरा है, सभी चित्र (एक को छॊड कर) बहुत सूंदर लगे ओर जो चित्र छोडा है वो सब से अन्तिम वाला जो बहुत बहुत सुंदर लगा, ओर इस चित्र से लगता कि आप की होली बहुत सुंदर मनी

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
on 

आपके छायांकन का जवाब नही है!
बहुत सुन्दर!

शरद कोकास ने कहा…
on 

अरे वा यह तो सजीव विवरण हो गया .. मज़ा आ लेकिन .बिना दवा- दारू के स्वागत .... यह दवा कौनसी है भैया ?

Yashwant Mehta "Yash" ने कहा…
on 

bahut sundar chitra aur bahut sundar holi.........dava daru ke bina holi........kaise ho sakti hei

Mithilesh dubey ने कहा…
on 

ललित भईया आपने तो मोह लिया इन सुन्दर चित्रो से ।

kshama ने कहा…
on 

Derse aayi hun blogpe lekin chitr dekh maza aa gaya!

पंकज ने कहा…
on 

सचित्र विवरण देख अंदाज लगाना मुश्किल नहीं कि कितना आनंद उत्सव रहा होगा.

 

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