जग में गुरु समान नही दानी
गुरु पिता, गुरु माता ज्ञानी ,गुरु समान नहीं दानी
सदगुरु राह दिखाई तुमने, जगती का कल्याण किया
अनगढ़ पत्थर को तो तुमने, अपने हाथ संवार दिया
तू ही महान,तू ही ज्ञानी,गुरु समान नहीं दानी जग में
जब जब राह पथिक भटका, अपने हाथ सहार दिया
मेरी राहों के काँटों को तुमने, अपने आप बुहार दिया
किरपा का नही सानी, गुरु समान नहीं दानी जग में
जिस पर तेरी करुणा व्यापी, उसको तुमने संवार दिया
प्रेम प्रकाश आलोकित करके, जीने को संसार दिया
तेरी महिमा सब ने मानी, गुरु समान नही दानी जग में
मूढ़ मति का मर्दन करके, ज्ञान के विटप लगाये
उर अन्धकार मिटा करके,तुमने प्रज्ञा दीप जलाये
तेरी करुणा सबने मानी, गुरु समान नहीं दानी जग में
"ललित" श्री चरणों में तेरे, नित श्रद्धा सुमन चढ़ाये
तेरी करुणा के सागर में, नित गहरा गोता खाए
पाया प्रेम का मोती जग में,गुरु समान नहीं दानी जग में
आपका
शिल्पकार
गुरु समान नहीं दानी जग में
सही कहा है गुरू की महिमा का बखान जितना किया जाये कम ही है.
ललित" श्री चरणों में तेरे, नित श्रद्धा सुमन चढ़ाये
तेरी करुणा के सागर में, नित गहरा गोता खाए
पाया प्रेम का मोती जग में,गुरु समान नहीं दानी जग में
बहुत खूब मगर आज इस व्यावसायीकरण के जमाने में कहाँ गुरु को इतना सम्मान मिलता है ?
सहमत हूं , गुरू की महिमा अपरम्पार
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः॥
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो बताय॥
आपसे सहमत हूँ। गुरु चरणों में नमन।
बहुत सुंदर जी धन्यवाद
आपने सही कहा...गुरू की महिमा को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता
"गुरु समान नहीं दानी जग में"
बिल्कुल सही कहा है . गुरु के समान दानी कोई नही हो सकता !
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