आपका
शिल्पकार,
(फोटो गूगल से साभार)
जाग मुसाफिर नाव लगी हैं तुझे जाना हैं उस पार
हंसा चल रे अपने देश
ऊँची उडान भर नील गगन की रहे न कुछ भी शेष
हंसा चल रे अपने देश
यहाँ नहीं हैं कोई अपना सारा जग बीराना
सारे हैं सब झूठे नाते नहीं हैं कोई ठिकाना
बहरुपीयों की नगरी में धर ले असली भेष
हंसा चल रे अपने देश
कैसे उडेगा कागा मन का भिष्ठा में बैठा हैं
करके अपनी मोती चमड़ी कीचड़ में लेटा हैं
उसकी पाती आके अब तो मेटे सारे क्लेश
हंसा चल रे अपने देश
सुना ठाठ पड़ा रहा जाये हंसा छोड़ चले जब काया
सारा ठाठ दारा रहा जाये ऐसी हैं सब उसकी माया
जहाज का पंछी मूड के आये रखे न किसी का द्वेष
हंसा चल रे अपने देश
ऊँची उडान भर नील गगन की रहे न कुछ भी शेष
हंसा चल रे अपने देश
आपका
शिल्पकार
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छ जाती हूँ मैं बनके पहेली
आँधियों ने आके मेरा घर बसाया
आकाश के तारों ने उसे खूब सजाया
चली जब गंगा की ठंडी पुरवैया
धुप के आंगन में खिली बनके चमेली
चुपके आके कान में बादल ने ये कहा
भर के लाया हूँ पानी तू धरती पे बरसा
प्यास मिटेगी सबकी फैलेगी हरियाली
धरती भी झूमेगी बनके दुल्हन नवेली
जादे के मौसम की मैं सर्द हवा हूँ
पहाडों में भी बहती रही मैं सर्द हवा हूँ
फागुनी रुत में सिंदूरी हुआ पलाश
पतझड़ आया तो फिरि मैं बनके अकेली
सदियों से मैं तो यूँ ही चलती रही हूँ
चलते-चलते मैं कभी थकती नही हूँ
बहना ही मेरा जीवन चलना ही नियति है
बंजारन की बेटी हूँ मैं तो ये चली
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली।
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
सुबह तुम्हारे संदेश ने जगा डाला
मेरे अरमानों को खूब हिला डाला
मेने तो तुम्हे सिर्फ़ कुछ फूलभेजे
तुमने तो पूरा गुलदस्ता बना डाला
दुनिया में क्या-क्या नही सहा है हमने
सबकी नफरत का मोल दिया है हमने
लोगों ने जितने भी पत्थर फेंके थे मुझ पर
उतना हिस्से का प्यार तोल दिया है हमने
न गीत लिखा न गजल लिख सका
सिर्फ़ तुम्हारी यादों में ही डूब गया था
तुम हो गई हो मेरी आंखों से ओझल
जब हाथों से आँचल तेरा छुट गया था
मुसाफिर हूँ मैं चार दिन चलने आया हूँ
नित सूरज सा हर शाम ढलने आया हूँ
दो दिन ढल गए तुम्हे ढूंढने में ही
दो दिन प्यार की छाँव में पलने आया हूँ
खनकती हंसीं तेरी जलतरंग सी बजती थी
आंचल की सुनहरी किरणों से सुबह सजती थी
उस सुबह को बरसों से जैसे तरस ही गये हम
जो दिल पर हाथों की मेहँदी सी रचती थी
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
जब से तुम मेरे मीत हो गए
मेरी सरगम के संगीत हो गए
बजते रहते हैं मेरे कानों में नित
तुम्हारे बोल जैसे गीत हो गए
सितारा टूटता है जमीं को पाने के लिए
जमीं तरसती है उसे बसाने के लिए
जान देकर ही सितारा जमीं पर आता है
प्रियतम की बाँहों में मर जाने के लिए
आरजू लिए फिरते रहे उनको पाने की
हवा का रुख देखते रहे ज़माने की
सारी तमन्नाएँ धरी की धरी रह गयी
जब घडी आ ही गयी जनाजा उठाने की
पलकों के किनारों से आंसू झरते हैं
इनकी छाँव में प्यार के सपने पलते हैं
तुम लड़ जाना भीषण तूफानों से भी
जहाँ चाह हो वहीँ रास्ते भी निकलते हैं
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
रवि कुमार की सृजनशीलता को अर्पित
तुमने देखा चौराहे पर जो सर-ऐ-आम हुआ
मेरे शहर का एक शख्श आज नीलाम हुआ
तारामती के आंसू और हरिश्चंद्र की मजबूरी का
गैरतमंद खरीददारों में ऊँचे से उंचा दाम हुआ
रोटी के बदले में बड़ी बोली तन की लगी थी
अमीर-ऐ-शहर ने ख़रीदा उसका बड़ा नाम हुआ
आंसू भी बिक गए आज कौडियों के दाम
मेरे तन के पैरहन का भी आज नीलम हुआ
सुबह से शाम तक नंगा खड़ा रहा चौराहे पर मै
किसी ने ना पूछा की तेरा क्या दाम हुआ
भीष्म की प्रतिज्ञा ,युधिष्ठिर का सत्य वचन भी
सब कुछ बिक गया कैसा भयानक काम हुआ
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
मास्टर जी ने सवाल लगाया के बतावे सुरेश
भैंस में तै पाड़ी घटाई झोट्टा रह गया शेष
बता तू अकल बड़ी के भैंस
जाडा भोत पड़े था भाई खूब लगाई रेस
पहले तो कम्बल ओड्या उस पे डाला खेस
बता तू अकल बड़ी के भैंस
कुत्ते के पिल्लै पकड़े उसके मुंडे केश
बिना उस्तरे नाइ मुंडा ताऊ पे चल्या केश
बता तू अकल बड़ी के भैंस
बिना चक्के की गाड्डी चाली रेल उडी परदेश
गार्ड बेचारा खड़ा रह गया देखे बाट नरेश
बता तू अकल बड़ी के भैंस
एक पेड़ पे चालीस चिडिया तभी घटना घटी विशेष
शिकारी की एक गोली चाली बच गई कितनी शेष
बता तू अकल बड़ी के भैंस
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
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