नहीं देख सकती
देखकर भी नहीं बोलते
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 29 अगस्त 2009नहीं देख सकती
पॉँच रोटियां
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 25 अगस्त 2009आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
शहर उसका रंग ले गये
ब्लॉ.ललित शर्मा,आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
यौवन बुढापे का इतिहास है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ब्लॉ.ललित शर्मा, सोमवार, 24 अगस्त 2009आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
जंजीरों से बांधने वाली सभ्यता
ब्लॉ.ललित शर्मा,शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
पत्थर तोड़ना ही मेरी किस्मत में लिखा था
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 22 अगस्त 2009पत्थर ढोना ही मेरी किस्मत में लिखा था
पहाड़ तोड़ना ही मेरी किस्मत में लिखा था
पत्थरों को तराश कर उसके बुत बनाये मेने
भूखे पेट मरना ही मेरी किस्मत में लिखा था
बहुत कोडे बरसाए थे उसने मेरी पीठ पर
जख्मो का दर्द ही मेरी किस्मत में लिखा था
पहाडों को तोड़ कर उनके लिए महल बनाये हैं मैंने
दीवारों में चुना जाना मेरी किस्मत में लिखा था
शाहकार बनने पर वे कटवा देंगे मेरे दोनों हाथ
उनका येही इनाम मेरी किस्मत में लिखा था
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
मुखौटा बनकर खूंटी से लटक गया हूँ
ब्लॉ.ललित शर्मा,कौन था यह?
ब्लॉ.ललित शर्मा,आपका
शिल्पकार
शब्दार्थ
गैंती = कुदाली
लेट्र्रा-लाल कड़ी मिटटी
रांपा=फावडा
चरिहा=मिटटी उठाने की टोकनी
चुरती= बनती
लांघन=भूखी/भूखा
(फोटो गूगल से साभार)
बांटा जाएगा यौवन
ब्लॉ.ललित शर्मा,(फोटो गूगल से साभार)
गर्भपात हो गया
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 21 अगस्त 2009एक बीज से आस जगी थी,मृगतृष्णा सी प्यास जगी थी,
सारा चौपाल सूना-सूना था, जैसे गांव में आग लगी थी,
चारों तरफ़ सन्नाटा-ही सन्नाटा,जैसे कोई सन्निपात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया।
तेरे इस विशाल नीले आँचल में, पंख फैलाये उड़ता था मै,
प्रगति के नए सोपानों में, नित्य सितारे जड़ता था मै,
मुझसे क्या अपराध हो गया, मुझ पर क्यों आघात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,
पहले भी मै तडफा-तरसा था, तू कभी न समय पर बरसा था,
लिए हाथ में धान कटोरा, मै फ़िर भी बहुत - बहुत हर्षा था,
नई सुबह की आशा में था, सहसा ही वज्रपात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,
गीली मेड की इस फिसलन पर, मै बहुत दूर जा फिसला हूं,
तेरे कृपा की आस लिए मै,नित तुझको ही भजता हूँ,
डोला गगन आ गया विप्लव,जैसे कोई उल्का पात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,
असमय बरसा तो क्यों बरसा,चारों तरफ हा-हा कार हो गया,
जिस पर अभी यौवन आना था,वो जीवन से बेजार हो गया,
तेरी इस असमय वर्षा पर, रोऊँ या मै जान लुटा दूँ,
लूटा-पिटा बैठा हूँ अब मै ,जैसे कोई पक्षाघात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया।
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
मौत का इंतजार अब कौन करेगा
ब्लॉ.ललित शर्मा,मुझे अब नंगे, पाँव ही चलने दो,
जूतियों का इंतजार, अब कौन करेगा,
तपती दुपहरी को, और भी चढ़ने दो,
छतरियों का इंतजार,अब कौन करेगा।
पाँव के छालों को, और भी बढ़ने दो,
मरहम का इंतजार, अब कौन करेगा।
आँखों से आंसुओं को,और भी बह जाने दो,
पोंछने का इंतजार, अब कौन करेगा।
मुझे अब तुम जिन्दा ही जला डालो,
मौत का इंतजार अब कौन करेगा।
आपका
शिल्पकार
देखो मेरा गांव
ब्लॉ.ललित शर्मा,हरियाली के चादर ओढे, देखो मेरा सारा गांव ,
झूम के बरसी बरखा रानी,थिरक उठे हैं पांव,
मेरे थिरक उठे हैं पांव,
खेतों में है हल चल रहे, बूढे पीपल पर हरियाली,
अल्हड बालाओं ने भी, डाली पींगे सावन वाली,
गोरैया के संग-संग मै भी, अपने पर फैलाऊ,
मेरे थिरक उठे हैं पांव,
छानी पर फूलों की बेले,बेलों पर बेले ही बेले,
नवयोवना सरिता पर भी हैं,लहरों के रेले ही रेले,
हमको है ये पर कराती, एक मांझी की नाव,
मेरे थिरक उठे हैं पांव,
भरे हैं सब ताल-तलैया,झूमी है अब धरती मैया,
मेघों ने भी डाला डेरा, छुप गए हैं अब सूरज भैया,
गाय-बैल सब घूम-ग़म कर,बैठे अपनी ठांव,
देखो मेरा सारा गांव,मेरे थिरक उठे हैं पांव।
आपका
शिल्पकार
( चित्र गूगल से साभार)
मेरा हिस्सा
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 20 अगस्त 2009सदियों का मर्ज ही मेरे हिस्से आया,
पत्थरों का कर्ज ही मेरे हिस्से आया।
कलियां चुन ली हैं, माली ने बाग से,
काँटों का जिस्म ही मेरे हिस्से आया।
राज सदियों से उनके लिए ही रहा,
काम दरबानी का ही मेरे हिस्से आया।
कौन सुनता है रिन्दों की महफिल में,
फ़कत खाली जाम ही मेरे हिस्से आया।
बहुत किस्से सुने थे इंसाफ के तुम्हारे ,
मौत का फ़रमान ही मेरे हिस्से आया।
आपका
शिल्पकार
कार्ड ही कार्ड वाह वाह सरकार
ब्लॉ.ललित शर्मा,कोई तो बचाओ मेरे बेटे को....(लक्ष्मन जांगिड सीकर राजस्थान)
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 19 अगस्त 2009राजस्थान के सीकर जिले के श्यामपुर गांव मेंअपनी छोटी सी दुकान लगा कर जैसे-तैसे गुजर बसर करने वाले लक्ष्मन जांगिड के पुत्र करणजांगिड को घर के सामने सडक पार करते हुए एक तेजी से आती हुई बोलेरो गाड़ी ने टक्कर मार दी। इस टक्कर से करण बुरी तरह जख्मी हो गया, उसके दोनों पैर बुरी तरह कुचल गए। सीकर के अस्पताल से इसे एस एम् एस जयपुर भेज दिया गया। जहाँ वो वर्ड २ ऍफ़ में भरती है, इस परिवार ने आर्थिक तंगहाली के बावजूद अपने बच्चे को बचाने में अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी। लेकिन दवाएं काफी महंगी होने के कारणअब वे इस इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ हैं.पुत्र के साथ घटी इस दुर्घटना ने इन्हे तोड़ कर रख दिया। इनके पास कोई जमीं जायदाद भी नही है। पास-पड़ोसियों से भी कर्जा लेकर इलाज में लगा दिया। अब यह परिवार एक-एक पैसे को मोहताज हो गया है।
(लार्ड विश्वकर्मा इंटरनेशनल टाईम्स पाक्षिक १५ जुलाई टोंक राजस्थान से प्रकाशित)
यह समस्या सिर्फ़ एक कर्ण जांगिड-लक्ष्मन जांगिड के परिवार की नही है। राजस्थान का यह जांगिड समाज वैदिक काल से ही तकनिकी एवं निर्माण का कार्य ही करते आया है। यह समाज तकनिकी की दृष्टी से उन्नत समाज है । जहाँ कंही भी निर्माण होता है उसमे इनकी भागीदारी अवश्य होती है। इनके पास कृषी की जमीने नही होती थी क्योंकि ये तो निर्माण कर्मी तकनिकी वर्ग था, जहाँ भी कम मिला,अपने ओजारों की पेटी उठाई और काम करने चल दिए, इस तरह ये निर्माण की आवश्यकता पर पलायन करते थे। गांव में इनके पास रहने की ही जमीन होती थी। जो राजा महाराजा या जमींदार उपलब्ध कराते थे। मूलत: यह जाती कुशल कारीगर जाती है। ओउद्योगीकरण के कारण कालांतर में निर्माण से सम्बंधित कार्य मशीने करने लगी। इनके हाथ से रोजगार जाते रहा। तत्कालिन सरकारों ने भी इस वर्ग के व्यावसायिक पुनर्वास के लिए कोई ध्यान नही दिया। जिसके कारण यह कुशल कारीगर समाज बिना किसी सरकारी सहायता या कार्यक्रमों के अपने दुर्भाग्य से सिर्फ़ निर्माण के देवता "भगवन विश्वकर्मा" के सहारे ही लड़ रहा है। इस समाज ने इस संसार को तकनिकी रूप से समृद्ध किया है। इंजनियरिंग कालेजों से पहले इनकी वर्कशॉप ही कोलेज हुआ करती थी। जहाँ तकनिकी का गियान मिलता था।
आज इस समुदाय में शिक्षा का भी बहुत आभाव है,जिसके कारण विकास के उजास की किरने अभी तक नही पहुँच पाई हैं। इसका एक मुख्या कारण गरीबी भी है। क्योंकि काम में हेल्पर रख कर उसे मजदूरी देने की बजाय अपने ८-१० साल के बच्चे को ही काम में लगा लेते हैं। पढ़ लिख कर क्या करेगा? ये काम तो करना है। जल्दी सीख लेगा तो बाप बेटे दोनों की कमाई से परिवार की स्थिति सुधरेगी। ये सोच उसके मानस में उपजने लगती है। कम उम्र में ही रंदा ख्निचने के कारण बच्चे का मन भी पढ़ाई में नही लग पाता। आज जिस पञ्च शिल्पी समाज ने सारी दुनिया को सभ्यता के चरम सीमा तक पहुंचाया ,जिसने आकाश की ऊंचाई नापने के साधनों से लेकर समुन्दर की तलहटी तक को खंगालने के साधन दिए वह ही आज अपने अस्तित्व को बचाने की गुहार लगा रहा है। चाँद की धरती पर पहला कदम रखने वाला भी परम्परागत शिल्पी वर्ग से नील आर्म्स कारपेंटर था।
ये कैसी विडम्बना है। इसी लिए मैं कहता हूँ।
{ रोज़ी-रोज़गार पर अगर आंच आए , तो टकराना जरुरी है।
अगर वो समाज जिन्दा है, तो उसे नजर आना भी जरुरी है।}
आपका
शिल्पकार
पाँव के छाले
ब्लॉ.ललित शर्मा,सूखे निवाले ही, रहे मेरी खातिर।
फ़ूलों की सेज पे, सोते हैं रहनुमा
टाट के बिछौने ही, रहे मेरी खातिर।
ज्म्मुहुरियत के दावे, उनने खूब किए
पर फटे पैजामे ही, रहे मेरी खातिर।
भूखे पेट ही, खुश रहने की सोची,
नश्तर बनाते ही, रहे मेरी खातिर।
बच्चों ने मांगे,जन्मदिन के तोहफे,
वादों के सहारे ही, रहे मेरी खातिर।
फ़ूलों भरी राह होगी, किसी के लिए
कांटों भरे रास्ते ही, रहे मेरी खातिर।
शिल्पकार कहिन
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 18 अगस्त 2009कुछ बरस पहले एक कवि की कविता सुनी थी, उनका नाम मुझे
याद नही है, ये कविता आप तक पंहुचा रहा हूँ ।
छींक उनको भी आती है ,
छींक हमको भी आती है ,
उनकी और हमारी छींक मै बड़ा अन्तर है,
हमारी छींक साधारण है , उनकी छींक मै जादू मंतर है,
हमारी छींक छोटे नाक की है, उनकी छींक बड़े धाक की है,
हमारी छींक हवा मै यूँ ही खप जाती है , उनकी छींक आखबारों मै छप जाती है,
हमारे साथ भी ये होता आ रहा है, इस संसार को बसाने वाले रचाने वाले निर्माण कर्मी समुदाय की पूछ परख करने वाला कोई भी नही है, मेने अख़बारों मै पढा की इंटरनेट पर अपनी बात कहने की एक नई विधा आई है, जिसे ब्लॉग कहते हैं। तो मेने भी सोचा की इस सुविधा का लाभ उठाया जाय और अपनी बात लोगों तक पहुंचाई जाय। मेरे ब्लॉग लिखने से पहले मेने किसी का ब्लॉग नही पढा था, गांव मै रहने के कारन कोई ऐसा भी नही था जो मुझे इसके बरी मै जानकारी देता , एक दिन इंटरनेट पर ये कारनामा मेने कर ही डाला "शिल्पकार के मुख से" नामक ब्लॉग बना ही डाला तथा जो मेरे मन मै आया लिख डाला, कुछ दिनों के बाद पुन: ब्लॉग खोलने पर ८ टिप्पणियाँ नजर आई, उन्हें मेने उत्सुकता के साथ पढ़ा, बड़ा अच्छा लगा, लोगों ने मेरा उत्साह वर्धन किया, एक सज्जन सिर्फ़ नारायण- नारायण कह कर चले गए, मुझे थोडी कोफ्त हुई, उन्हें अच्छी या बुरी कोई भी टिप्पणी करनी चाहिए थी, एक भाई ने लिखा "जब हम सच्ची बात कहते हैं तो जमाने को अखर जाती है"। अरे भाई जब सदियों से उपेक्षित प्रताडित समाज का कोई आदमी जब अपने हक के लिए खड़ा होता है तो सामन्तवादी विचार धाराओं के लोगों को कहाँ सहन होगा?
लेकिन अब भारत के १४ करोड़ परम्परागत शिल्पकारों को भी अपने हक के लिए खड़ा होना ही पड़ेगा। आजादी के ६० सालों मै हमे क्या मिला, पुरे भारत मै विस्वकर्मा वंशियों के इतने बड़े समाज मै इस समाज का एक भी आदमी दिल्ली की बड़ी पंचायत मै हमारी बात कहने को नही है, हमारी प्रताड़ना सुनने वाला कोई नही है, जबकि ये समाज हमेसा से एक योगी की तरह निर्माण की अपनी साधना मै लगा रहा है। अनवरत समाज के लिए अपना खून और पसीना बहते रहा है, इसने कभी सर्दी - गर्मी- बरसात -आग- शोलों की चिंता नही की। क्योंकि इसके शरीर मै छेनी हथौडेकी धवनी से ही रक्त का संचार होता है, मैंने भी ये काम किया है। लेकिन अब इस समाज को जगाना ही होगा, ओउद्योगिक कर्ण के कारन इस समाज खानदानी पेशा ख़तम हो गया है। अब इसके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गयी है। परम्परागत रूप से काम करने वाले सभी समाजों का येही हॉल है।
छत्तीसगढ़ मै एक समुदाय है जो सदियों से बुनकारी का काम करते आ रहा था। "पनिका समाज" जिसे लोग यहाँ पर "मानिकपुरी समाज" के नाम से भी जानते हैं। मुझे लग-भग ४०० परिवारों से मिलने का सौभाग्य मिला। आज ये लोग बहुत ही गरीबी मै जीवन बसर कर रहे हैं। किसी के घर मै भी कपड़ा बनने का कम नही होता। क्योंकि मशीनों के बने कपड़े बाजार मै हैं तो इनके हाथ से बने कपड़े कौन खरीदेगा? आज भारत के सभी कुशल कारीगरों की येही दशा है, जिस तरह सभी समाजों कोमिलाकर इस देश का निर्माण हुवा है, उसी तरह हमारा भी इसमे योगदान है। परम्परागत शिल्पकार वर्ग के लोगों को मुलभुत संविधान प्रदत्त सुविधाएं भी नही मिल पाई हैं। २४ जुलाई को जी छत्तीसगढ़ पर कोरिया जिला की नाथारेली पंचायत के बैजनाथ विश्वकर्मा का समाचार दिखाया गया था। जिसमे बताया की वह ११ सदस्यों के परिवार के साथ एक १० गुना १०फुट की झोपडी मै निवास करता है। तथा पत्थर के सिल बनाने का काम करता है। उसके बच्चे स्कूल नही जाते उसके साथ काम मै हाथ बताते है। सरकारी योजनायें इस परिवार से कोसो दूर है। ये शिल्पकार समुदाय पुरे भारत मै भीषण गरीबी मै जीवन बसर कर रहा हे। अभी मुझे जानकारी मिली थी की महाराष्ट्र मै एक पंचाल युवक को दबंगो ने मार डाला। इसके बाद भी कोई "नारायण-