पत्तियाँ पीली हुई पीपल के झाड़ की
बरफ़ पिघलने लगी दोस्तों पहाड़ की
छुट्टा छोड़ दिया किस ने सूरज को
जैसे सांकल खुल गई हो सांड़ की
सुबह से ही लहकने लगी है गरमी
सटक गई बेचारे कूलर जुगाड़ की
कट गए सब पेड़ हरियाली है गायब
दशा खराब हुई अब गांव गुवाड़ की
त्राहि त्राहि मची पारा भी चढ गया
बस जरुरत है यारों पहली फ़ुहार की
पेड़ों और हरियाली का हमारे जीवन से गहरा रिश्ता है इस बात को जानने और समझने के बाद भी हरियाली से लगातर छेड़छाड़ की जा रही है। नतीजा आने वाले दिनों में हम सबको भोगना होगा। सार्थक सन्देश देती ग़ज़ल
सख्त जरूरत है पहली फुहार की। गरमी की जबरदस्त गज़ल। सूरज को छुट्टा सांड कहना एकदम जोरदार।
बढ़िया रचना
एकदम नई बिंब-योजना ,सामान्य जीवन को उसी की शब्दावली में बड़े विशिष्ट और प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का कमाल.प्रयोगवाद को पीछे छोड़ती चित्रात्मक उक्तियाँ: क्या कौशल है -अद्भुत !
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सुन्दर सामयिक गज़ल
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