कविता
बहुत कठिन है
समोसे खाने से नहीं आती
पहले यूँ ही आ जाती थी
टहलते टहलते कभी भी
कागज न हो चादर पर
लिख लेता चंद लाईने,
कभी तकिए के खोल पर
वो अब मुझसे रुठ गयी
देखकर भी नहीं बोलती
बोलकर भी नहीं देखती
राजा नल के आने पर
बाल्टी लेकर दौड़ता हूँ
बिजलीरानी जाने पर
पैरों से पंखा झलता हूँ
हाथों से मच्छर मारता हूँ
नींद नहीं आती मुई
इस भीषण गर्मी में
कविता कहाँ से आएगी?
शिल्पकार