मै अनपढ
मिला तुमसे तो
सीख गया पढना
चेहरे के भाव
जो सपाट लगते थे
स्वयं कह देते हैं
बिना कहे ही
और मैं पढ लेता हूँ
तुम्हारे अंतरमन की
साक्षर हो गया हूँ
तुम्हारी एक मुस्कान
छा जाती है नभ बनकर
खामोशी तुम्हारी
मेघों में भरा हुआ वर्षा जल
गर्भ धारण कर रखा हो उसने
हिरण्यमयी गर्भ
वर्षा उपरांत
उजास फ़ैलाने के लिए
मै पढना सीख गया हूँ
वाह बहुत ही सुंदर भाव संयोजन के साथ सार्थक प्रस्तुति ....
बिना कहे ही
और मैं पढ लेता हूँ
तुम्हारे अंतरमन की
साक्षर हो गया हूँ...
लाज़वाब रचना ...प्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा...
अब मेरा कुछ भी ना रहा
तू मैं और मैं तू हो गया हूँ...
bahut hi khubsurat rachna hai..sanketik bhaw is rachna ke mahatwpurn paksha hai..badhai ho
चेहरे के भाव
जो सपाट लगते थे
स्वयं कह देते हैं
बिना कहे ही
और मैं पढ लेता हूँ
तुम्हारे अंतरमन की.
बहुत सुंदर......
बड़ सुग्घर कविता हवे ललित भईया....
सादर बधइ.
ढाई आखर...
""और मैं पढ लेता हूँ
तुम्हारे अंतरमन की
साक्षर हो गया हूँ
तुम्हारी एक मुस्कान
छा जाती है नभ बनकर
खामोशी तुम्हारी
मेघों में भरा हुआ वर्षा जल"
बहुत सुंदर !
""और मैं पढ लेता हूँ
तुम्हारे अंतरमन की
साक्षर हो गया हूँ
तुम्हारी एक मुस्कान
छा जाती है नभ बनकर
खामोशी तुम्हारी
मेघों में भरा हुआ वर्षा जल"
बहुत सुंदर !
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार साक्षरता दिवस 08/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
वाह, कमाल की रचना
बहुत ही बढ़िया
सादर