कंचे,लट्टू,गुल्ली-डंडा,पुराना बक्सा खोल रहा हूँ।
खोया बचपन ढूंढ रहा हूँ,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
राजा-रानी, परियों की, कहानी खूब सुनाती थी।
खोयी ममता ढूंढ रहा हूँ,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
लड्डू-पेड़े,खाई-खजाना,मुझको खूब खिलाती थी।
तेरे आंचल की छाया में, मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ।।
करता जब धमा-चौकड़ी,मार से तुम बचाती थी।
तुम्हारी यादों में घर कर,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ।।
कभी न करुंगा उधम, कान पकड़ बोल रहा हूँ।
खोया बचपन ढूंढ रहा हूँ, मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
शिल्पकार
खोया बचपन ढूंढ रहा हूँ,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
राजा-रानी, परियों की, कहानी खूब सुनाती थी।
खोयी ममता ढूंढ रहा हूँ,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
लड्डू-पेड़े,खाई-खजाना,मुझको खूब खिलाती थी।
तेरे आंचल की छाया में, मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ।।
करता जब धमा-चौकड़ी,मार से तुम बचाती थी।
तुम्हारी यादों में घर कर,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ।।
कभी न करुंगा उधम, कान पकड़ बोल रहा हूँ।
खोया बचपन ढूंढ रहा हूँ, मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
शिल्पकार
आया है मुझे फिर याद वो जालिम, गुजरा जमाना बचपन का
माँ से सुनी बचपन की कहानी
कहती थी जो उसके4ए नानाएए
क्या होता है बचपन ऐसा
उडती फिरती तितली जैसा
हम को भी बतलाओ न
नानी जल्दी आओ ना
अब कहाँ है वो बचपन। अच्छी रचना
"क्यों याद आता हैं वो बचपन सुहाना
वो मीठी यादें वो हमारा खिल खिलाना
बात कहाँ अब उस जमाने की ,
अपनी ख़ुशी से आना,अपनी ख़ुशी से जाना "
क्या बात है ललित जी ......धन्यवाद !
मां का प्यार, दादी की परियों की कहानी, बाबा का ठिठोली करना.... क्या क्या खो जाता है बचपन के गोली, कंचों के साथ :(
bachapan ki dhoondh to pachapan se bhi aage tak jari rahti hai...bahut sunder...
आपके साथ साथ हम भी बचपन की यादो में खो गए
बेहद सुंदर
बचपन कहीं भी नहीं जाता ,बस हम सब में अंतर्मन में ही कहीं बसा होता है .......बहुत सुन्दर लिखा आपने
बचपन मुट्ठी से गिरता रेत है, लौटता कहां है
ढूंढने की जरुरत तो तब होगी ना जब खो जायेगा, सामने ही है, बस रूप बदल लेता है बचपन... अभी देखना हो तो उदय के रूप में देखिये, कल उसकी संतान में मिल जायेगा... शुभकामनायें
बहुत सुंदर...!