तमाम उम्र सफ़र में रहा
नहीं मैं कभी घर में रहा
यायावरी पर क्या कहूँ
कांटो भरी डगर में रहा
तम्मना-ए-परवाज थी
पर उनकी कैद में रहा
कह न सका दिल की
पासबां कोई हद में रहा
मीठे बोल बोलते हैं वो
सिर उनकी जद में रहा
चलते चलते पहुंचा तो
सज्जादों के शहर में रहा
खूब कहिये मन की … यायावरी की, डगर-डगर, नगर -नगर की ... स्वागत है … बहुत सुन्दर रचना … शुभकामनायें
क्या बात कही
bahut khoob
nice lines .....
शिल्पकार की कलम चले, होय कवित्त प्रवाह।
लखि पठि जन मानस करे, वाह वाह अरु वाह॥
बहुत ही सुंदर रचना ……शुभकामनायें …
शिल्पकार की कलम चले, होय कवित्त प्रवाह।
लखि पठि जन मानस करे, वाह वाह अरु वाह॥
बहुत ही सुंदर रचना ……शुभकामनायें …
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति......
वाह, बहुत सुन्दर ग़ज़ल
बहुत खूब ... उम्दा शेर हैं ...
बहुत ही सुंदर रचना …
शुभकामनायें …