शिल्पकार. Blogger द्वारा संचालित.

चेतावनी

इस ब्लॉग के सारे लेखों पर अधिकार सुरक्षित हैं इस ब्लॉग की सामग्री की किसी भी अन्य ब्लॉग, समाचार पत्र, वेबसाईट पर प्रकाशित एवं प्रचारित करते वक्त लेखक का नाम एवं लिंक देना जरुरी हैं.
रफ़्तार
स्वागत है आपका

गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

ओ महाकाल -- अम्बर का आशीष से ----- ललित शर्मा

संत पवन दीवान जी ने अपनी एक कविता " ओ महाकाल " अपने काव्य संकलन "अम्बर का आशीष" के विमोचन के अवसर पर सुनाई थी। उन्होने कहा कि आज राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है, छोटी-छोटी एकता मिलकर बड़ी एकता बनती है। इस कविता का पॉडकास्ट सुनिए।

ओ महाकाल



ओ महाकाल तुम कब दोगे
जीने के लिले हमें दो क्षण
हम किस पृथ्वी पर बैठे हैं
पांवों में क्यों भर रहा गगन

उड़ने वाले चेहरे किसके
सूने में लटके हाथ
यह अंतहीन पथ किसका है
अंकित हैं छोड़े हुए साथ

आँखें ही आँखें हैं उपर
केवल आँखे ही आँखे हैं
कुछ मांस अस्थियाँ नहीं शेष
उतराती टूटी पांखे हैं

ये निष्फ़ल खड़ी याचनाएं
दरवाजों पर क्यों टूट रही
कांचों ने पत्थर तोड़ दिए
खिड़कियाँ हवाएं लूट रही है

चर मर करती कुर्सियाँ हाय
यह देश बैठता जाता है
जितना हर धागे को खोलो
उतना ही ऐंठता जाता है

कुछ राष्ट्र देवता को समेट कर
हर पत्थर में समा गए
अपने वंशों की पुस्तक पर
संस्करण दूसरा जमा गए

रास्ते पर पड़ा एक चेहरा
कितना निर्जन कितना उदास
वह किसका है,कुछ पता नहीं
परिचय को कोई नहीं पास

उसकी नहीं जरुरत कोई
इस पगलाई हुई भीड़ में
पत्नी बच्चे लटक रहे हैं
मंहगाई के किसी चीड़ में

किन राहों में चप्पलें फ़टी
जुड़ते-जुड़ते गल गए हाथ
आँखे हैं पर पुतलियाँ नहीं
खाई-खाई बंट गया ग्राम

वह देह नहीं है प्राण नहीं
केवल विनाश का सड़ा शेष
है कहाँ मेरे तन के नक्शे
कैसा है अपना जन्म देश

जिन्दगी जिसे तुम कहते हो
जिसको तुम कहते रहे प्यार
उस चेहरे का हो सका नहीं
कोई दर्पण एक बार

अब तक पड़ा हुआ वह चेहरा
हर आकृति को कराहता है
लेकिन उसकी जीभ नहीं है
कहता नहीं क्या चाहता है

लेकिन मुझे पता है सब कुछ
वह हम सबको श्राप रहा है
कितना बड़ा देश है उसका
वह पलकों से नाप रहा है

पड़ा रह गया वहीं चेहरा
तो चौराहा जल जाएगा
उसके रिसते हुए दर्द से
हृदय देश का गल जाएगा

रुक जाओ कुछ और देख लो
शायद कोई उसे उठा ले
विस्फ़ोटों का सुत्र काट कर
सब चेहरों का नाश बचा ले

पवन दीवान
ग्राम किरवई (राजिम)
जिला रायपुर छत्तीसगढ

Comments :

8 टिप्पणियाँ to “ओ महाकाल -- अम्बर का आशीष से ----- ललित शर्मा”
निर्मला कपिला ने कहा…
on 

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई।

कडुवासच ने कहा…
on 

... bahut sundar ... behatreen post ... jay ho !!

vandana gupta ने कहा…
on 

बेहद उम्दा प्रस्तुति।

समय चक्र ने कहा…
on 

संत पवन दीवान जी की रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार ... कभी उनका जबलपुर में सानिध्य पाने का मौका मिला हैं ...

36solutions ने कहा…
on 

संत दीवान जी को मेरा प्रणाम.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…
on 

आदरणीय संत पवन दीवान जी की रचना ओ महाकाल उन्हीं के ओजस्वी स्वर में सुनवाने के लिए
प्रिय बंधुवर ललित शर्मा जी आपके प्रति हृदय से आभार !

आप अपनी रचनाओं के साथ अन्य श्रेष्ठ रचनाएं पढ़ने के अवसर देते रहते हैं , इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं ।

~*~हार्दिक शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं !~*~
- राजेन्द्र स्वर्णकार

मदन शर्मा ने कहा…
on 

खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति -----
कुछ राष्ट्र देवता को समेट कर
हर पत्थर में समा गए
अपने वंशों की पुस्तक पर
संस्करण दूसरा जमा गए
हार्दिक शुभकामनाएं -----

Rakesh Tiwari ने कहा…
on 

बहुत बढि़या.............

 

लोकप्रिय पोस्ट

पोस्ट गणना

FeedBurner FeedCount

यहाँ भी हैं

ईंडी ब्लागर

लेबल

शिल्पकार (94) कविता (65) ललित शर्मा (56) गीत (8) होली (7) -ललित शर्मा (5) अभनपुर (5) ग़ज़ल (4) माँ (4) रामेश्वर शर्मा (4) गजल (3) गर्भपात (2) जंवारा (2) जसगीत (2) ठाकुर जगमोहन सिंह (2) पवन दीवान (2) मुखौटा (2) विश्वकर्मा (2) सुबह (2) हंसा (2) अपने (1) अभी (1) अम्बर का आशीष (1) अरुण राय (1) आँचल (1) आत्मा (1) इंतजार (1) इतिहास (1) इलाज (1) ओ महाकाल (1) कठपुतली (1) कातिल (1) कार्ड (1) काला (1) किसान (1) कुंडलियाँ (1) कुत्ता (1) कफ़न (1) खुश (1) खून (1) गिरीश पंकज (1) गुलाब (1) चंदा (1) चाँद (1) चिडिया (1) चित्र (1) चिमनियों (1) चौराहे (1) छत्तीसगढ़ (1) छाले (1) जंगल (1) जगत (1) जन्मदिन (1) डोली (1) ताऊ शेखावाटी (1) दरबानी (1) दर्द (1) दीपक (1) धरती. (1) नरक चौदस (1) नरेश (1) नागिन (1) निर्माता (1) पतझड़ (1) परदेशी (1) पराकाष्ठा (1) पानी (1) पैगाम (1) प्रणय (1) प्रहरी (1) प्रियतम (1) फाग (1) बटेऊ (1) बाबुल (1) भजन (1) भाषण (1) भूखे (1) भेडिया (1) मन (1) महल (1) महाविनाश (1) माणिक (1) मातृशक्ति (1) माया (1) मीत (1) मुक्तक (1) मृत्यु (1) योगेन्द्र मौदगिल (1) रविकुमार (1) राजस्थानी (1) रातरानी (1) रिंद (1) रोटियां (1) लूट (1) लोकशाही (1) वाणी (1) शहरी (1) शहरीपन (1) शिल्पकार 100 पोस्ट (1) सजना (1) सजनी (1) सज्जनाष्टक (1) सपना (1) सफेदपोश (1) सरगम (1) सागर (1) साजन (1) सावन (1) सोरठा (1) स्वराज करुण (1) स्वाति (1) हरियाली (1) हल (1) हवेली (1) हुक्का (1)
hit counter for blogger
www.hamarivani.com