हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली
आँधियों ने आ के मेरा घर बसाया
आकाश के तारों ने उसे खूब सजाया
चली जब गंगा की ठंडी पुरवैया
धुप के आंगन में खिली बनके चमेली
चुपके आ के कान में बादल ने ये कहा
भर के लाया हूँ पानी तू धरती पे बरसा
प्यास मिटेगी सबकी फैलेगी हरियाली
धरती भी झूमेगी बनके दुल्हन नवेली
जादे के मौसम की मैं सर्द हवा हूँ
पहाडों में भी बहती रही मैं मर्द हवा हूँ
फागुनी रुत में सिंदूरी हुआ पलाश
पतझड़ आया तो फिरि मैं बनके अकेली
सदियों से मैं तो यूँ ही चलती रही हूँ
चलते-चलते मैं कभी थकती नही हूँ
बहना ही मेरा जीवन चलना ही नियति है
बंजारन की बेटी हूँ मैं तो ये चली
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली।
आपका
शिल्पकार
मैं बादल की सहेली
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 8 जून 2010
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शिल्पकार कविता
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जय राम जी की। यहां तो आग की लपट को बढा रही है ये हवा। कब आयेगी बरसात। बस इसे इसके दोस्त बादल के साथ देखने की इच्छा है।
...बेहतरीन रचना!!!
मौसम के अनुसार अच्छी रचना...
हम्म लगता है भारत में जोरदार बारिश हो रही है ..सभी कवि मन जाग उठे हैं ..
सुन्दर रचना
शिखाजी ने ठीक ही कहा है... पिछले एक दो दिनों से कुछ कविता लिखने का ही मन कर रहा था.... कुत्ते चित्रों से निकलकर काट खाने के लिए दौड़ लगाने लगे थे।
आपने तो बढि़या लिखा है।
बहुत सुंदर रचना...
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली।
बहुत सुंदर लिखा है !!
sundar..ati sundar...matalab ab pani barasane vala hai.
बहुत बढिया
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली।
दिल्ली में इस समय मौसम तो ऐसा ही बना हुआ है
सुन्दर रचना
वाह !!!!!!!क्या हवा है तभी मैं कहूँ की दिल्ली में मौसम सुहाना कैसे हो गया आभार
वाह वाह ………बहुत हि सुन्दर प्रस्तुति।
gazab ki kavita hai bhai aur mousam ke anuroop toh ye kamaal hai....
badehaai !
pasand***************