काल के कपाल पर नित प्रहार करेंगे,
हम सिपाही है दुश्मन से नही डरेंगे ।
देगें ईंट का जवाब उनको गोलों से,
हम बर्फ़ के नहीं है जो आग से डरेंगे।
जिनकी पीढियाँ करते आई युद्ध यहां,
हमेशा कफ़न बांध कर वो ही लड़ेगें ।
युद्ध का मैदान सजा छोड़ रहा अर्जुन,
सोचता था मेरे अपने ही यहाँ मरेंगे।
समझाया कृष्ण ने सुन ले मेरी पार्थ,
तुम नही लड़ोगे तो अपने आप मरेंगे।
"शिल्पकार"रण छोड़ जाएगा न कभी,
दुश्मन की छाती पर हम मुंग दलेगें।
आपका
शिल्पकार
देगें ईंट का जवाब उनको गोलों से-------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
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ललित शर्मा,
शिल्पकार
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...मारो मारो ...!!!
...पकडो उसको भाग न पाये ...!!!
... कौन है ये जो अकड रहा है ...!!!
... बेमतलब का भिड रहा है ..!!!
...दे दो एक पटकनी उसको ...!!!
थोड़ी सा बचा लेना गुरू, दाल के भाव आसमाँ छू रहें हैं\ शायद इसलिए दाम बढ़ गए।
बिलकुल सहमत / सत्य और न्याय के तरफ जो देखेगा बुरी नजर से ,उसे कर देंगे पस्त हम अपनी एकजुटता की ताकत से /
"दुश्मन की छाती पर हम मून्ग दलेन्गे" घर के लोग ही दुश्मन बने हैं ! बढिया।
समझाया कृष्ण ने सुन ले मेरी पार्थ,
तुम नही लड़ोगे तो अपने आप मरेंगे।
जो अपने आप मरेंगे उन्हें मारना ही क्या!!
सुन्दर रचना
aaj to khatarnaak mood hai bhai....
kunwar ji,
"शिल्पकार"रण छोड़ जाएगा न कभी,
दुश्मन की छाती पर हम मुंग दलेगें।
-------- '' nar aap hee hai shatru apnaa , aap hee hai mitra bhee ! ''
....... sundar kavita ! aabhaar !
अपने ब्लाग पर लैंड माईंस लगा रखी हैं
इससे कहते हैं धांसू कविता.......एक बार गा के सुना दो तो दुश्मन की हवा निकल जाये
ज्ञानदतक नपुंसकों को क्या मालूम कि उनक ेचहेते पिछ्ले कितने दिनों से उड़नतश्तरी पर आक्रमण जारी रखे हुए थे?बात यही थी कि उड़नतश्तरई से हिन्दी सेवा की अपील होती थी और मानसिक हलचल पर अंग्रेजी के बिगडाऊ शब्द लिखे जाते थे जो गंगा किनारे वाले छोरे को अपने हीरे लगते थे।इसके अलावा किसी महिला ब्लोगर द्वारा उडनतश्तरी को 'सो क्यूट' कहा जाना इतना नागवार गुजरा कि खुन्नस उतर ही नहीं रही।कोई भी मर्द का बच्चा जाकर पिछले तीन महीने की पोस्ट और इधर उधर की गई कमेट देख ले।फिर तरप्फदारी करे गंगा किनारे जा करगर नहीं हिम्मत है तीन महीने की खबर लेने की तो जा कर जननी की गोद में आराम करे।
बहुत सटीक रचना!!
कूप कृष्ण says right
बहुत बढ़िया..
देगें ईंट का जवाब उनको गोलों से,
हम बर्फ़ के नहीं है जो आग से डरेंगे।
जोश दिलाती रचना..
saath me ye gana bhi gao
TUJHE BLOGAR KINNE BANAYA BHOOTNI KE.....
सामयिक संदर्भों पर जले में नमक डालने वाली कविता. वैचारिक प्रतिबद्धता सिद्ध करने वाली कविता, दोनों पक्षों की ओर से गाई जा सकने वाली कोरस कविता.
दिल की बात छीन ली बाबा अब यही करेंगे,,....
मज़ा आ गया