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शकुन्तला तरार की एक कविता "जंगली सौंदर्य"

शकुन्तला तरार  की एक कविता "जंगली सौंदर्य"

जंगली सौंदर्य

बैलाडिला लौह अयस्क प्रोजेक्ट
ऊँचा नाम ऊँचा काम
नये-नये लोग
अचानक बस्तर आना
जंगली सौंदर्य
उफ!
परिणति
अनब्याही मां
नाबालिग मां
घरेलू काम के एवज में
लुटी हुई अस्मत
दैहिक शोषण की शिकार बालाएं
चंद टुकड़े रुपयों के
लुटी हुई अस्मत के बदले, ठगी हुई मानसिकता
पुनः परिणति
दैहिक शोषकों से जबरिया ब्याह
अधिकारियों द्वारा स्थानांतरण, तलाक  अथवा पलायन
क्या बचा?
गोद में बच्चे और तिरस्कार, उपेक्षा
परदेशियों द्वारा ठगी का शिकार
और
आज भी जारी है
बदस्तूर
अधिकारियों के
व्यापारियों के
कुत्सित भावनाओं की
कुत्सित निगाहों की
घृणित मानसिकता की
और वही भोलापन
अल्हड़पन
और
निर्द्वन्द्व हंसी ।

Comments :

15 टिप्पणियाँ to “शकुन्तला तरार की एक कविता "जंगली सौंदर्य"”
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
on 

बहुत मार्मिक प्रस्तुति

vandana gupta ने कहा…
on 

उफ़ बेहद मार्मिक चित्रण किया है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…
on 

अच्छी सूरत भी क्या बुरी शै है
जिसने डाली नज़र बुरी नज़र डाली॥

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
on 

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है

नयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -

Unknown ने कहा…
on 

बहुत ही उम्दा रचना !

मो. कमरूद्दीन शेख ( QAMAR JAUNPURI ) ने कहा…
on 

dil aur samaj ko jhakjhorati sundar rachanadil aur samaj ko jhakjhorati sundar rachana

सदा ने कहा…
on 

प्रत्‍येक शब्‍द मन को व्‍यथित कर गया ।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…
on 

बहुत मार्मिक रचना है।


सादर

POOJA... ने कहा…
on 

nihshabd...
majooriyon ko khareedna kitna asaan ho gaya hai...

virendra sharma ने कहा…
on 

सम्मान के योग्य आदरणीया शकुन्तला तरार की मजूरिनों की व्यथा को उकेरती भाव जगत में रोपती कविता "जंगली सौन्दर्य .
साल गिरह मुबारक यौमे आज़ादी की ।
http://veerubhai1947.blogspot.com/

रविवार, १४ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....

वर्तमान पोस्ट आपकी कितनी प्रासंगिक और मौजू है इस पर्व पर इसे शब्दों में नहीं ज़ज्बातों से बांचना ,बूझना होगा ,गरीबी जो करादे सो कम .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Sunday, August 14, 2011
चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
on 

समसामयिक विमर्श करती कविता के लिए शकुन्तला तरार जी को हार्दिक बधाई...

Kailash Sharma ने कहा…
on 

बहुत सटीक और मार्मिक प्रस्तुति..

शरद कोकास ने कहा…
on 

शकुंतला जी की कविता यहाँ देखकर अच्छा लगा ।

Ankit pandey ने कहा…
on 

बहुत खूब..सुन्दर रचना, प्रभावशाली पंक्तियाँ।

Amrita Tanmay ने कहा…
on 

सटीक और मार्मिक

 

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