भाई योगेन्द्र मौदगिल के गजल संग्रह ‘अंधी आँखे-गीले सपने” से एक गजल प्रस्तुत कर रहा हूँ।
बढ रही मंहगाई हमको आजमाने के लिए।
आदमी जिंदा है केवल तिलमिलाने के लिए।
बेकसी बढती रही गर दाने-दाने के लिए।
तन पड़ेगा झोंकना चूल्हा जलाने के लिए।
प्याज ने आँसू निकाले, देख बेसन ने कहा।
चाहिए अब तो कलेजा, हमको खाने के लिए।
इतनी ऊँची कूद मारी इस उड़द की दाल ने।
लोन अब लेना पड़ेगा दाल खाने के लिए।
सोचता हूं वो जमाना खूब था,जब हम पढ लिए।
दिन में तारे दिख गए, बच्चे पढाने के लिए।
नौकरी जब ना मिली तो उसने किडनी बेच दी।
दो निवाले भूखे बच्चों को खिलाने के लिए।
इक चटाई, एक धोती, एक छ्प्पर, एक घड़ा।
उम्र सारी काट दी इनको बचाने के लिए।
भूख ने तड़फ़ा दिया तो बेईमानी सीख ली।
शुक्रिया रब्बा तेरा ये दिन दिखाने के लिए।
तन पे है बनियान चड्डी,दोनों के, पर फ़र्क है।
इक छिपाने के लिए और इक दिखाने के लिए।
भन गया मैं भी मिनिस्टर, भोली जनता शुक्रिया।
मिल गया लाईसेंस मुझको देख खाने के लिए।
माफ़िया का क्या गजब का शौक है भैइ देख लो।
वर्दियों को पाल रक्खा दुम हिलाने के लिए।
चंद वादे, चंद नारे, चंद चमचे “मौदगिल’
पर्याप्त हैं इस देश की संसद में जाने के लिए।
बढ रही मंहगाई हमको आजमाने के लिए
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 25 दिसंबर 2010तुम्हारी गांधारी दृष्टि
ब्लॉ.ललित शर्मा, सोमवार, 15 नवंबर 2010मैं सोचता था
कविता में सिर्फ़ भाव होते हैं
जो अंतरमन से उतरते हुए
कागज पर अपना रुप लेते है
लेकिन जब कविता
तुम्हारे पास पहुंचती है तो
उसमें क्या-क्या नहीं ढूंढ लेते तुम
गांधारी आंखो से
विदुर दृष्टिकोण तुम्हारा
ढूंढ लेता है
शिल्प,बिंब, अलंकार, व्यथा
व्याकरण, छंद, समास
अतिश्योक्ति, रस और श्रंगार
वियोग,करुणा, रसखान
जो मुझे नहीं दिख पाते
वंदन है तुम्हारी गांधारी दृष्टि का
आपका
शिल्पकार
तुलने लगे कुबेर भी अनुदान के लिए
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 13 नवंबर 2010हम लड़ रहे हैं मित्र दोना पान के लिए
भाड़े में भीड़ जुटती है सम्मान के लिए
क्या नहीं होता अब पूजा के नाम पर
बिक जाते हैं फ़रिश्ते अनुष्ठान के लिए
है खेल सियासत का कुर्सी के वास्ते
तुलने लगे कुबेर भी अनुदान के लिए
अपने उसुलों के लिए बागी हुए हैं हम
छोड़े हैं सिंहासन भी स्वाभिमान के लिए
माला गले में डालने की होड़ मची है
सब दौड़ रहे हैं झूठी पहचान के लिए
संदेह से घिरी हैं सारी उपाधियाँ
जीता है कौन धर्म और ईमान के लिए
इतने गरीब हो गए नवरंग इन दिनों
दो फ़ूल जुटा न पाए बलिदान के लिए
माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग'
कोरबा (छ ग)
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 10 नवंबर 2010जिन्हे सकेला था बुखारी के लिए
अब के ठंड में
देती गरमाहट तुम्हारे सानिध्य सी
बुखारी ठंडी पड़ी पर
कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
महुए के कोयले की तरह
धीरे धीरे सुलगना मंजुर है
बुखारी के लिए
आपका
शिल्पकार
मालूम नहीं है क्या? आज नरक चौदस है --- ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 4 नवंबर 2010एक पुरानी कविता
आज सुबह-सुबह श्रीमती ने जगाया
हाथ में चाय का कप थमाया
तो मैंने पूछा- क्या टाइम हुआ है?
मुझे लगता नहीं कि अभी सबेरा हुआ है
बोली ब्रम्ह मुहूर्त का समय है,चार बजे हैं
और आप अभी तक खाट पर पडे हैं
मालूम नहीं आज नरक चौदस है
आज जो ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान करता है
वो सीधा स्वर्ग में जाता है
वहां परम पद को पता है
जो सूर्योदय के बाद स्नान करता है
वो सारे नरकों को भोगता है
चलो उठो और नहाओ
यूँ घर में आलस मत फैलाओ
मैंने कहा मेडम कृपा करके
तुम मुझे तो सोने दो
मुझे नहीं जाना स्वर्ग में
यही नर्क में ही रहने दो
मैं स्वर्ग में नहीं रह सकता हूँ
वहाँ जाकर मै उकता जाऊंगा
सारे दोस्त तो नरक में ही मिलेंगे
इसलिए स्वर्ग में क्या लेने जाऊंगा?
उनके पास कई जन्मों का पुण्य संचित है
इसलिए हमारा नरक में ही रहना उचित है
फिर वहां रम्भा,मेनका, उर्वशी
जैसी अप्सराओं से तुम्हे डाह होगी
तुम्हारे होठों पर एक आह होगी
कोई लाभ नहीं होगा बाद पछताने में
इसलिए क्या बुरा है नरक आजमाने में
शूर्पनखा, ताड़का, मंथरा को देखकर
वहां मेरा मन वहां नहीं भटकेगा
आखिर आसमान का गिरा
खजूर पर ही अटकेगा ,
श्रीमती मान गई- और बोली
अगर ये बात है तो जाओ,सो जाओ
अगर नही नहाना है तो नरक में ही जाओ
जीवन में सुगंध भर लो-----फ़ूलों से हो लो तुम ।
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 29 सितंबर 2010महकाओ तन-मन सारा भावों को विमल कर लो
फूलों से हो लो तुम ........................................
वो मालिक सबका हैं ,जिस माली का हैं ये चमन
वो रहता सबमे हैं तुम ,कर लो उसी का मनन
हो जाये सुवासित जीवन ऐसा तो जतन कर लो
फूलों से हो लो तुम.......................................
शुभ कर्मों की पौध लगाओ जीवन के उपवन में
देखो प्रभु को सबमे वो रहता हैं कण-कण में
बन जाओ प्रभु के प्यारे ऐसा तो करम कर लो
फूलों से हो लो तुम......................................
मै कोन?कहाँ से आया ? कर लो इसका चिंतन
जग में रह कर के ,उस दाता से लगा लो लगन
रह कर के कीचड़ में खुद को कमल कर लो
फूलों से हो लो तुम.......................................
वो दाता सबका हैं, दुरजन हो या सूजन
वो पिता सबका हैं, धनवान हो या निरधन
ललित उसमे लगा करके जीवन को सफल कर लो
फूलों से हो लो तुम ........................................
कितना है मुस्किल घरों से निकलना--जन्माष्टमी पर विशेष
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 1 सितंबर 2010युग पुरुष योगेश्वर श्री कृष्ण का आज जन्मदिवस है, इस अवसर पर मन में आया कि कुछ गीत सा रचा जाए। आपके लिए प्रस्तुत है-जन्माष्टमी पर आनंद लें।
पनघट जाऊँ कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
पानी नहीं है,जरुरी है लाना
पनघट जाऊँ कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
कितना है मुस्किल घरों से निकलना
पानी भरी गगरी को सिर पे रखके चलना
फ़ोड़े न गगरी,बचाना ओ बचाना
पनघट जाऊँ कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
गगरी तो फ़ोड़ी,कलाई न छोड़ी
खूब जोर से खैंची और कसके मरोड़ी
छोड़ो जी कलाई, न सताना ओ सताना
पनघट जाऊँ कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
मुंह नहीं खोले,बोले उसके नयना
ऐसी मधुर छवि खोए मन का चैना
कान्हा तू मुरली बजाना ओ बजाना
पनघट जाऊँ कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
शिल्पकार
दादी-----कहानी -------(ललित शर्मा)
प्रिय तेरी याद आई
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 28 अगस्त 2010जब
मौसम ने ली अंगड़ाई
बदरी ने झड़ी लगाई
सूरज ने आँखे चुराई
तब,प्रिय तेरी याद आई।
जब
अपनो ने की बेवफ़ाई
पवन ने अगन लगाई
घनघोर अमावश छाई
तब,प्रिय तेरी याद आई
जब,
निर्धनता बनी ठिठोली
कर्कश हुई मीठी बोली
सपनो ने सहेजा डेरा
तब,प्रिय तेरी याद आई
जब
दुश्मनों ने हाथ बढाए
ठग माथे चंदन लगाए
समय ने लगाया फ़ेरा
तब, प्रिय तेरी याद आई
जब
सीने में धड़का दिल
रोशनी हुई झिलमिल
जैसे आने लगा सवेरा
तब,प्रिय तेरी याद आई
जब
शिल्पकार भूल गया
ठक-ठक का मधुर गीत
पत्थरों से आता हुआ
तब,प्रिय तेरी याद आई
शिल्पकार
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 26 अगस्त 2010दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
हाड़-तोड़ भाग-दौड़
फ़िर दिमागी दौड़ भाग
जीवन में विश्राम नहीं
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
झूठ-षड़यंत्र, जोड़-तोड़
फ़िर होती रही धोखा-धड़ी
जीवन में बस काम यही
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
मेरे आगे, कोई मेरे पीछे
बढता जाता, ऐसे कैसे चलता
क्यों होता मेरा नाम नहीं
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
शैतानी आँखे, उड़ती पाँखे
सरहद पार, हो आती हैं कैसे
क्या उसका कोई धाम नहीं
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
अविता-कविता,ढोला-मारु
प्रेम-पींगे,मदमस्त यौवन
बताओ क्या ये बदनाम नहीं
दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?
शिल्पकार
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ब्लॉ.ललित शर्मा, रविवार, 15 अगस्त 2010साहित्य की थारी
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 7 अगस्त 2010कवि रामेश्वर शर्मा जी का एक गीत
साहित्य की थारी
पुस्तक के पृष्ठों में सजी कविता की फ़ुलवारी है
प्यारे शब्द फ़ूलों जैसे पंक्ति क्यारी-क्यारी है।
गीत-गीतिका, कवित्त, सवैया,मुक्तक,छंद कविता
दोहा,सोरठा,चौपाई,कुंडलियाँ, काव्य सरिता
अतुकांत छणिकाओं की ये साध्य रचना प्यारी है।
पुस्तक के पृष्ठों में सजी कविता की फ़ुलवारी है
प्यारे शब्द फ़ूलों जैसे पंक्ति क्यारी-क्यारी है।
व्यथा,क्रांति,उल्लास,संवेदन,अनुसरज व अनुकरण
परिवर्तन,इतिहास,विकास,लिंग,वचन और व्याकरण
बंधी साधना की डोरी, भाषा भावना न्यारी है।
पुस्तक के पृष्ठों में सजी कविता की फ़ुलवारी है
प्यारे शब्द फ़ूलों जैसे पंक्ति क्यारी-क्यारी है।
श्लेष,यमक,पुनरुक्ति प्रकाश शब्द,अर्थ, उभयालंकार
छेका,लाटा,वृत्यानुप्राश,प्रतिकात्मक उपमालंकार
अतिश्योक्ति से अलंकृत करना लेख कविता जारी है।
पुस्तक के पृष्ठों में सजी कविता की फ़ुलवारी है
प्यारे शब्द फ़ूलों जैसे पंक्ति क्यारी-क्यारी है।
हास्य,वीर,अद्भुत,भय,क्रोध,शांत,विभत्स, करुण में
और मिलता श्रंगार बाल्यपन,वाचक व्यंजक लक्षण में
मुख्य पृष्ठ अंतिम तक पुस्तक साहित्य की थारी है।
पुस्तक के पृष्ठों में सजी कविता की फ़ुलवारी है
प्यारे शब्द फ़ूलों जैसे पंक्ति क्यारी-क्यारी है।
मचो सियासी बवाल है--संसद में सवालों की बरसात है--ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 5 अगस्त 2010सखी री,
मचो सियासी बवाल है
जनता पूछत सवाल है
मंहगाई डायन खाय जात है
हमार बाबु तो बहुतै कमात है
कांग्रेस का देखो हाल
उल्टी पड़ गयी सगरी चाल
लोकसभा में हुई बेहाल
संसद में सवालों की बरसात है
मंहगाई डायन खाय जात है
दीप कमल ने खोली पोल
बज गया देखो डमडम ढोल
मंहगाई में है किसका रोल
जिया बहुतै तड़फ़ात है
मंहगाई डायन खाय जात है
सिलेंडर के बढ गए दाम
डीजल पेट्रोल हुए बे लगाम
सब्जी का मत लो नाम
गरीब चटनी से काम चलात है
मंहगाई डायन खाए जात है।
मंहगी हो गयी है शिक्षा
बेरोजगार मांग रहे भिक्षा
कैसे हो जीने की इच्छा
किसान सल्फ़ास खाए जात है
मंहगाई डायन खाए जात है
हमार बाबु तो बहुतै कमात है
मचो सियासी बवाल है
जनता पूछत सवाल है
शिल्पकार
अतृप्ति को स्वीकार करो--एक कविता---ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा,वह मुक्त होकर
मांग रही थी तृप्ति
खुले आम मंच से
एक अतृप्त भटक रहा था
आनंद की तलाश में
तृप्त होना क्यों चाहती हो तुम
अतृप्ति ही तो जीवन है
तृप्त होकर ठहर जाना
रुक जाना
क्यों, जीवन का अंत नहीं है?
अगर पड़ाव को मंजिल नहीं बनाना है
तो अतृप्ति को स्वीकार करो।
कवि रामेश्वर शर्मा की एक कविता---अंधा
ब्लॉ.ललित शर्मा, रविवार, 11 जुलाई 2010कवि रामेश्वर शर्मा की एक कविता
अंधा
एक अंधा
एक हाथ कटोरा
एक हाथ डंडा
भूख से धंसा पेट
कहता दे दाता
करता गुहार
वहां से गुजरता
हर व्यक्ति
अनदेखा बन
चल पड़ता है
अंधों की तरह
वाह रे!
अंधे की दुनिया
अंधे की सरकार
रोज गरीबी भूखमरी
अखबारों भाषणों से
दे रहे दुहाई
बैठा सिंहासन पर
लाज द्रौपदी की
लुटवा रहा है
कृष्ण को उलझा रहा है
कि यह कथन
कितना सच होगा
उस अंधे से
यह अंधा अच्छा होगा।
देख क्रुरता फ़ूलों की हम दंग हो गये--एक गीत
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 9 जुलाई 2010कवि रामेश्वर शर्मा का एक गीत
देख क्रुरता फ़ूलों की हम दंग हो गये
जीवन है या जटिल समस्या तंग हो गये।
आदर्शों के रंग गिरगिट के रंग हो गये।
कपटी भावों में डूबे जग मुंह बोले संबंध हुये
विश्वासों के रुपक पछतावे भर के अनुबंध हुये
सच धोखे के व्यापारी के संग हो गये।
आशाओं का राग रंग तो भ्रम का खेल खिलौना है
संध्या की आशंकाओं में घिरा हुआ दोपहर बौना है
संयम नियम विवशताओं के अंग हो गये।
अपनी-अपनी लोलुपता में मधुमक्खी है लोग बने
परिभाषाओं के प्रपंच में अर्थ व्यर्थ का रोग बने
देख क्रुरता फ़ूलों की हम दंग हो गये।
रामेश्वर शर्मा
शिवनगर मार्ग बढई पारा
रायपुर (छ.ग.)
09302179153
आया यौवन का ज्वार--एक गीत
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 10 जून 2010आया यौवन का ज्वार ।
पूर्वा के आंचल से झर-झर झर-झर झर-झर झरे फ़ूहार
नदी,नहर तालाब तलैया में, आया यौवन का ज्वार ।
जंगल-जंगल मुरझाया था, दहक रही थी माटी सारी,
वर्षा रानी आकर तुमने, सरसाई आत्मा की क्यारी,
जगह-जगह लहराता पानी,नाच उठा व्याकुल संसार
लगी फ़ड़कने भुजा कृषक की,बैलों का मन डोल उठा,
भूख मिटाने मानव की मेहनत का देखो जादु बोल उठा
लगे किसान मनाने में उल्लास, उमंगों के दिन चार
हीरा-मोती बो खेतों में, जीवन जोत जगाएंगें
अपनी पर परिवार सभी की,पीड़ा दूर भगाएंगे,
ऐसे उच्च विचारों में खो,बहा रहा श्रम-श्रम की धार।
बीजें बोकर फ़ल को पाना,है कितना विस्वास भरा,
मिट्टी में सन कुंदन बनने का, क्रम ही आदर्श खरा,
जहां उठा संकल्प वहां पर,फ़िर कैसा साथी अंधियार
पूर्वा के आंचल से झर-झर झर-झर झर-झर झरे फ़ूहार
नदी,नहर तालाब तलैया में, आया यौवन का ज्वार ।
विमोचन समारोह में काव्य पाठ
मैं बादल की सहेली
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 8 जून 2010हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली
आँधियों ने आ के मेरा घर बसाया
आकाश के तारों ने उसे खूब सजाया
चली जब गंगा की ठंडी पुरवैया
धुप के आंगन में खिली बनके चमेली
चुपके आ के कान में बादल ने ये कहा
भर के लाया हूँ पानी तू धरती पे बरसा
प्यास मिटेगी सबकी फैलेगी हरियाली
धरती भी झूमेगी बनके दुल्हन नवेली
जादे के मौसम की मैं सर्द हवा हूँ
पहाडों में भी बहती रही मैं मर्द हवा हूँ
फागुनी रुत में सिंदूरी हुआ पलाश
पतझड़ आया तो फिरि मैं बनके अकेली
सदियों से मैं तो यूँ ही चलती रही हूँ
चलते-चलते मैं कभी थकती नही हूँ
बहना ही मेरा जीवन चलना ही नियति है
बंजारन की बेटी हूँ मैं तो ये चली
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली।
आपका
शिल्पकार
एक मुलाकात प्रसि्द्ध कवि ताऊ शेखावाटी जी के साथ...........!
ब्लॉ.ललित शर्मा, सोमवार, 31 मई 2010हेली! हेलो पड़याँ
खिलती कळियाँ गळियाँ सौरम, फ़ूट्याँ सरसी ए।
हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥
मत आँचल री आग अँवेरे
ढलसी जोबन देर-सबेरै
झूठी उलट सुमरणी फ़ेरै
पकतो आम डाळ एक दिन, टूटयाँ सरसी ए।
हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥
कंचन काया का कुचमादण!
क्युँ हो री है यूँ उनमादन
हठ मत पकड़ हठीली बादण
लख जतन कर एक दिन लंका लुट्याँ सरसी ए।
हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥
ढाळ जठीणै ढळसी पांणी
आकळ बाकळ मत हो स्याणी!
डाट्यो भँवर डटै कद ताणी
फ़ूल्योड़ा फ़ूलड़ा जग 'ताऊ' चूंटयाँ सरसी ए।
हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥
शब्दार्थ
हेली=हवेली=काया आत्मा का घर
हेलो=आवाज देना, जब बुलावा आएगा
छूट्याँ सरसी ए=छोड़ना ही पड़ेगा, बिना छोड़े नही बनेगा
दिल्ली यात्रा 3... मैट्रो की सैर एवं एक सुहानी शाम ब्लागर्स के साथ.......!
कितना वह मजबूर था--श्रमिक दिवस पर विशेष
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 1 मई 2010आज एक मई श्रमिक दिवस है, श्रम शील हाथों को समर्पित एक पुरानी रचना पेश कर रहा हुँ। आशा है कि आपको पसंद आएगी।
आपका
शिल्पकार
देगें ईंट का जवाब उनको गोलों से-------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010हम सिपाही है दुश्मन से नही डरेंगे ।
देगें ईंट का जवाब उनको गोलों से,
हम बर्फ़ के नहीं है जो आग से डरेंगे।
जिनकी पीढियाँ करते आई युद्ध यहां,
हमेशा कफ़न बांध कर वो ही लड़ेगें ।
युद्ध का मैदान सजा छोड़ रहा अर्जुन,
सोचता था मेरे अपने ही यहाँ मरेंगे।
समझाया कृष्ण ने सुन ले मेरी पार्थ,
तुम नही लड़ोगे तो अपने आप मरेंगे।
"शिल्पकार"रण छोड़ जाएगा न कभी,
दुश्मन की छाती पर हम मुंग दलेगें।
आपका
शिल्पकार
माँ, पत्नी और बेटी------एक कविता-------->>>>>ललित शर्मा 0:-
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 25 मार्च 2010माँ-पत्नी और बेटी
पृथ्वी गोल घुमती है
अवधपुरी मा चल जाबो रे----रामनवमी विशेष---------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 24 मार्च 2010अयोध्या नगरी मे भगवान रामचंद्र जी ने जन्म लिया-छत्तीसगढ प्रदेश (दक्षिन कोसल) उनका ननिहाल है। यहां पर भगवान का जन्मदिवस धुम धाम से मनाया जाता है, लोक गीतों में भगवान की स्तुति की जाती है। प्रस्तुत है परम्परागत लोक गीत-----
जनम लिए जिंहा राम रमैइया,
सुग्घर दर्शन पाबो,चलो जाबो रे अवधपुरी मा चल जाबो
दुख के हरइया सुख के देवइया, सुनो सब नर नारी।
बड भागमानी जान जनइया, कौश्ल्या महतारी।
देवता मन हे फ़ुल गिरइया,अगास ले देख गिराबो रे
दाई माई मन हे अवइया, थारी मा कलसा धर के
गीत गो्विंद गाथे बधइया, राम के पांव ला पर के
कर आरती निछावर करही, सोहर छोहर गाबो रे
चलो जाबो रे अवधपुरी मा चल जाबो
रंग जाबो जी आज रंगइया, राम के रंग मा रंगाबो
झुमर-झुमर के ना्च नचैइया, कनिहा ला मटकाबो
उड़े गुलाल केसर मोर भैया, तारा चिखला मताबो
चलो जाबो रे अवधपुरी मा चल जाबो
सुनिए एक अद्भुत गीत --सिंदुर ला खोजे वो-----------------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 23 मार्च 2010आज नवरात्र पर फ़िर एक गीत लेकर आया हुँ भाई दुकालु राम यादव जी का। आप सुने अद्भुत गीत है आनंद अवश्य आएगा।
गीत-भाई दुकालु राम यादव जी से साभार
प्रस्तुतकर्ता
शिल्पकार
सुनिए--जस गीत "महामाया के दर्शन कर लो"--ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, सोमवार, 22 मार्च 2010नवरात्र पर्व पर आज सुनिए दुकालु राम यादव जी के द्वारा गाया गया जस गीत "महामाया के दर्शन कर लो"
दुकालु राम यादव जी से साभार
प्रस्तुतकर्ता
शिल्पकार
आपने कल पढा था---आज सुनिए--"कोयलिया कुहु कुहु बोले ना"
ब्लॉ.ललित शर्मा, रविवार, 21 मार्च 2010दुकालु राम यादव जी से साभार
आपका
शिल्पकार
नवरात्री मे माता का एक जसगीत-------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 20 मार्च 2010अभी नवरात्री मे माई के सेवा गीत गुंज रहे हैं तथा मेरी इच्छा है कि आपको सुनाए भी जाएं। इसके लिए मेरी कोशिश जारी है। सफ़लता मिलते ही सुनाने के व्यवस्था करुंगा। प्रस्तुत है माता का एक जसगीत (यश गीत)
आबे आबे ओ मोर दाई
आबे आबे ओ मोर दाई, हिरदे के गाँव मा
तोर मया के छांव मा रहितेंव तोर पांव मा
आबे आबे ओ मोर दाई, हिरदे के गाँव मा
मंदिर के घंटी घुमर, कान मा सुनाए
कान मा सुनाए ओ मोर दाई
जानो मानो अइसे लगथे
मोला तै बलाए-मोला तै बलाए ओ मोर दाई
तोर जोत मोर दाई, जग मा जगमगाए
जग मा जग मगाए ओ मोर दाई
तीन लोक चौदह भुवन, तोर जस ल गाए
तोर जस ला गाए ओ मोर दाई
कइसे मै मनाऊ माँ, लइका तोर आवंव माँ
आबे आबे ओ मोर दाई, हिरदे के गाँव मा
ब्रम्हा, बिस्णु, संकर तोला,माथ ये नवाये
माथे ये नवाये ओ मोर दाई
जग के जगदम्बा दाई, जग ल तैं जगाये
जग ल तैं जगाये ओ मोर दाई
करे तैं हियांव मा मया ला पियावं मा
आबे आबे ओ मोर दाई, हिरदे के गाँव मा
रुप तोर कतको दाई, कोन बता पाये
कोन बता पाये ओ मोर दाई
कण कण मा बसे ओ दाई सांस मा समाये
सांस मा समाए ओ मोर दाई
बिनती ला सुनाववं माँ, भाग ला सहरावं माँ
आबे आबे ओ मोर दाई, हिरदे के गाँव मा
आपका
शिल्पकार
कुछ शब्दार्थ
आबे=आईए
मोर=मेरी
दाई=माँ माता
रहितेवं=रहता
तोर=तेरे
पांव=चरण
हिरदे=हृदय
मोला=मुझे
बलाए=बुलाया
अइसे=ऐसे
लागथे=लगता है
मया=प्रेम-स्नेह
आववं=हुँ
सुनाववं=सुनाऊँ
रन बन रन बन हो SSS-----ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 19 मार्च 2010सज्जनाष्टक नामक सुदीर्घ काव्य------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 18 मार्च 2010सज्जनाष्टक
श्री गणेश नारायण शिव कंह अज श्रीरामहिं ध्याऊं।
रुप केस भेस अति सुन्दर गुन मन्दिर अभिरामा।
जटा पुंज सीसहिं के मनु सोभित छवि धामा ॥(9)
बाबा जिन तीरथ के कावा कर अनेकन बारी।
अर्जुन दास दास हनुमत के तनचरनन ब्रत धारी॥ (10)
बितवत दिवस रैन भजनन में चैन न अन्तहि पावै।
हरि को ध्यान किए बिनु ताकहं खान-पान नहि भावै॥ (11)
प्रतिदिन भोर नहात शीत नहिं गिनत करत तप भारी।
सग शरीर सुख छाड़ि प्रान कहं देत कलेशहिं भारी॥(12)
जाके दरस पुनीत किए सब कटत पाप के पुंजा।
गंगा अरु काशी प्रयाग बट गिने जात जिमि गुंजा॥(13)
तीरथ बरथ व्यर्थ सब करहीं कठिन मुक्ति के काजा।
क्यौं न जाय छिन दरस करत इन विपुल पुन्य सिर ताजा॥(14)
संगम सन्त समाज सुभग सब हरतु पाप की राशी।
नहिंन होत बिनु ज्ञान मुक्ति कोउ करै कोटि दिन काशी॥(15)
वेद पुरान न्याय सब कहहीं ज्ञान बिना नहीं होई।
मुक्ति जदपि कोटिन तीरथ करि रहे भरम सब कोई॥(16)
तीरथ ध्यान जोग जप तपहु इक तुलना करि राखै।
पै बिनु ज्ञान मिलत नहिं कबहुं सुख अनन्त श्रुति भाखै॥(17)
सो न होत बिनु सन्त संग के सत संगत फ़ल भारी।
वाल्मीकि नारद मुनीशहू भे मुनीश व्रत धारी ॥ (18)
तेहु रहे नीच जन्महिं के पै सत संग अनूपा।
पाय भए मुनि ब्रह्म तेज मय लखहु प्रभाव सरुपा॥ (19)
सत सहस्त्र साधु समाज नित रहत आय मदमाहीं।
तिन कंह नित्त दिवस षट् रस के भोजन स्वादु सराहीं॥(20)
सदावर्त जहं बटत नेम सों कटत चैन दिन राती।
घटत न कहुँ भंडार राम को बस्तु न कछु सिराती॥(21)
चेला भए तासु गुन मेला रहत सुमठ सिर ताजा।
गौतम मनु दूजो यह सोहत गौतम दास बिराजा॥ (23)
ताको सकल कर्म कर निसि दिन ॠषिराम अनुगामी।
मानौ स्वामि धर्म को अंकुर ता मन आयौ जामी॥(24)
माखन साहु राहु दारिद कहं अहै महाजन भारी।
दीन्हो धर माखन अरु रोटी बहु बिधि तिनहिं मुरारी॥(25)
लच्छ पती सुद शरन जनन को टारत सकल कलेशा।
द्र्व्य हीन कहं है कुबेर सम रहत न दुख को लेशा॥ (26)
दुओ धाम प्रथमहिं करि निज पग कांवर आप चढाई।
सेतु बन्ध रामेसुर को लहि गंगा जल अन्हवाई ॥(27)
चार बीस शरदहुं के बीते रीते गोलक नैना।
लखि असार संसार पार कहं मुंदे दृग तजि चैना॥(28)
अपर एक पंडित गुन खानी मानी हीरारामा ।
हीरा सो अति विमल जासु जस छहरत चहुँ छवि धामा॥(29)
यह पुरान मनु भयो वाचि के दस अरु आठ पुराना।
जीरि सकल इन्द्रिन अग बैठयौ शिव सरुप अभिरामा॥ (30)
तिमि जग मोहन के परोस में मोहन रहत पुजारी।
राग भोग पुजारु पाठ करि प्रभु चरनन मन धारी॥ (31)
रमानाथ लक्ष्मी नारायण के भरोस सुख सोवै।
देत जीविका जो निसि बासर सुई ताकौ दुख खोवै॥(32)
दोहा
रहत ग्राम एहि बिधि सबै सज्जन सब गुन खान्।
महानदी सेवहिं सकल जननी सब पय पान॥ (33)
श्री जगमोहन सिंह रचि तीरथ चरित पवित्र।
सावन सुदि आठैं बहुरि मंगलवार बिचित्र्॥ (34)
संवत् बिक्रम जानिए इन्दु बेद ग्रह एक।
शबरीनारायण सुभग जहं जन बहुत विवेक्॥(35)
प्रस्तुत कर्ता
शिल्पकार
ठाकुर जगमोहन सिंह-एक अद्भुत रचनाकार------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 17 मार्च 2010कुंडलियाँ
इक थाना तहसील के मध्य धर एक फुटि
उत बजार सों प्रबल जल निकस्यो अट्टा टूटि
निकस्यों अट्टा टूटि फ़ुटि गिजि परीं अटारी
गिरि गेह तजि देह देहरी और दिवारी
(क)जोगी डिफ़ा सुदीप मनौ तंह जल जाना
उत पुरब सब पंथ रोकि घेरवौ त थाना ॥
पूरब केरा के निकट पश्चिम निकट खरौद
लगभग फ़ेर लुहारसी उत्तर ग्रामहिं कोद
उत्तर ग्रामहि कोद जहां टिकरी पारा है
दच्छिन हसुवा खार पार लौ जल धारा है
जंह लौ देखो नजर पसारत जल जल घेरा
कैय्यक कोसन फ़ैलि घेरि फ़िरि पूरब केरा ॥
बह्यो माड़वारीन को व्योपारी सो आज
नोन हजारन को सही चिनी असीम अनाज
चिनी असीम अनाज बसन अरु असन मिठाई
चढि छप्पर जिहि छैल सुघर लूटत बहुखाई
बची कमाइ माल पसीनागारो जुरह्यो
बइमानी को पोत आजु मनु सोतहिं रह्यो॥
धाई चलत बजार मे नाव पोत जल सोत
तनक छिनक को ह्वे रह्यो काशमीर छवि होत
आरत करत पुकार कंपत तन धन गत सोगा
काशमीर छवि होत द्वार द्वारन पै डोंगा
मठ दरवाजे पैठ लहर मंदिर बिच आई
जंह छाती लौ नीर धार सुई तीरहिं धाई॥
पुरवासी व्याकुल भए तजी प्राण की आस
त्राहि-त्राहि चहुँ मचि रह्यो छिन-छिन जल की त्रास
छिन-छिन जल की त्रास आस नहिं प्रानन केरी
काल कवल जल हाल देखि विसरी सुधि हेरी
तजि तजि निज निज गेह देहलै मठहिं निरासी
धाए भोगहा ओर कोऊ आरत पुरवासी॥
कोऊ मंदिर तकि रहे कोऊ मेरे गेह
कोऊ भोगहा यदुनाथ के शरन गए लै देह
शरन गए लै देह मरन तिन छिन मे टारयौ
भंडारो सो खोलि अन्न दैदीन उबारयों
रोवत कोउ चिल्लात आह हनि छाती सोऊ
कोऊ निज धन घर वार नास लखि बिलपति कोऊ॥
सोरठा
कियो जौन जल हाल दिन द्वै मे को लेखई।
मानहु प्रलय सुकाल आयो निज मरजाद तजि॥
प्रस्तुतकर्ता
आपका
शिल्पकार
उल्लासोपरांत पतझड़ का मौसम आपके लिए---------स्वागत कीजिए इसका भी........ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, सोमवार, 15 मार्च 2010पतझड़ आया
पतझड़ का मौसम
लाल -गुलाल -अबीर के छाये हए हैं रंग-----चित्र होली के----------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 2 मार्च 2010हमारे यहाँ होली पंचमी तक मनाई जाती है जिसे रंग पंचमी भी कहा जाता है.......लेकिन आज ऐसी स्थिति है कि जैसे फागुन के बाद सचमुच पतझड़ आ ही गया हो........धुप चमकीली हो चुकी है.........वातावरण में गरम हवाएं चल रही हैं...........होली के जाते ही पेड़ों के पत्ते पीले पड़ गए हैं............ अब इस पर फिर कभी लिखेंगे हमारी होली में आप भी शामिल होईये कुछ चित्रों के साथ..................
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें
तभी समझना यार आ गयी है मस्तानी होली ---होली पर विशेष धमाका------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, रविवार, 28 फ़रवरी 2010जब चौपाल में बजे नगाड़े और हँसे हमजोली
जब कोयलिया ने भी अपनी तान सुरीली खोली
तभी समझना यार आ गयी है मस्तानी होली
आँख आँख जब सजे इशारे और बुलावा आये
आँगन आंगन बिखर चांदनी अपना रंग दिखाए
झर झर झर झर मधु रस टपके और अमृत घोली
तभी समझना यार आ गयी है मस्तानी होली
जब खिड़की से वह लटकाए ऊपर चढ़ने डोरी
तुलसीदास की रत्ना जैसी लगती है तब गोरी
देख खुला दरवाजा चोरों की भी नियत डोली
तभी समझना यार आ गयी है मस्तानी होली
जब ऋतुराज ने रंगों वाली बड़ी पिटारी खोली
भांग चढ़ा कर जब वो बोले मीठी मीठी बोली
सारा दिन मदमस्त रहे जब सूझे नई ठिठोली
तभी समझना यार आ गयी है मस्तानी होली
आपका
शिल्पकार
रंग रंगीले रसिया के छल से भीगी नव-चोली -------------हो्ली है------ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 27 फ़रवरी 2010खेल रही है होली..खेल रही है होली गोरी खेल रही है होली..
कंचनकाया कनक-कामिनी, वह गाँव की छोरी
चन्द्रमुखी चंदा चकोर चंचल अल्हड-सी गोरी.
ठुमक ठुमक कर ठिठक-ठिठक कर करती मस्त ठिठोली.
सजना सम्मुख सजकर सजनी
खेल रही है होली..खेल रही है होली गोरी खेल रही है होली..
सन-सन सनक सनन सन यौवन-घट को भी छलकाती
रंग रंगीले रसिया के छल से भीगी नव-चोली
खेल रही है होली..खेल रही है होली गोरी खेल रही है होली..
पीताम्बर ने प्रीत-पय की भर करके पिचकारी
मद-मदन मतंग मीत के तन पर ऐसी मारी
उर उमंग उतंग क्षितिज पर लग गई जैसे गोली
सजना सम्मुख सजकर सजनी
खेल रही है होली..खेल रही है होली गोरी खेल रही है होली..
गज गामिनी संग गजरा के गुंजित सारा गाँव
डगर-डगर पर डग-मग डग-मग करते उसके पांव
सहज- सरस सुर के संग सजना खाये भंग की गोली
सजना सम्मुख सजकर सजनी
खेल रही है होली..खेल रही है होली गोरी खेल रही है होली..
चंदू घर के अन्दर ही नगाड़े पीटने लग गया है.! होली है-भाई होली है "ललित शर्मा "
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010धीरे बहो नदिया धीरे बहो, धीरे बहो
धीरे बहो नदिया धीरे बहो
राधा जी उतरैं पार
नदिया धीरे बहो
काहेन के तोरे नाव-नउलिया काहेन के पतवार
कौन है तोरे नाव खिवैया कौने उतरै पार
नदिया धीरे बहो
अगर-चंदन के नाव-नउलिया सोनेन के पतवार
कृष्णचन्द्र हैं नाव खिवैया राधा उतरै पार
नदिया धीरे बहो
आपका
शिल्पकार
मोहन खेलै होरी------होली का रंग-चढ़ गई भंग..........ललित शर्मा ........
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010चलो वृषभान के दुलारी
काखर भिंज गै लहँगा,
काखर सारी, काखर सारी
काखर भिंज गै चुनरिया
कौन रंग मारी, कौन रंग मारी
चलो वृषभान के दुलारी
राधा के भिंज गै लहँगा,
ललिता के सारी, ललिता के सारी
चन्द्रावली के चुनरिया
मोहन रंग मारी, मोहन रंग मारी
चलो वृषभान के दुलारी
फागुन में जरा सा तुम महक जाओ !! (ललित शर्मा)
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 24 फ़रवरी 2010
जरा सा हम बदल जाएँ, जरा सा तुम बदल जाओ
जमी ने भी ओढ़ ली है एक नयी चुनर वासंती
गुजारिश है के फागुन में जरा सा तुम महक जाओ
नए चंदा- सितारों से सजाओ मांग तुम अपनी
काहे को सताय,बाली उमर लरकैया--होली की तरंग (ललित शर्मा)
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010बारा बरस के उमरिया
राधा-ललिता आय, राधा-ललिता आय
चन्द्रावली और विशाखा
जल भरने को जाय, जल भरने को जाय
बाली उमर लरकैया
काखर फोरे गगरिया
काखर चूमे गाल, काखर चूमे गाल
काखर फाड़े चुनरिया
यशोदा जी के लाल, यशोदा जी के लाल
बाली उमर लरकैया
राधा के फोरे गगरिया
ललिता के चूमे गाल, ललिता के चूमे गाल
चन्द्रावली के चुनरिया
यशोदा जी के लाल, यशोदा जी के लाल
बाली उमर लरकैया
हो्ली आई रे! होली आई रे! आईए होली का स्वागत करें!!!
ब्लॉ.ललित शर्मा, रविवार, 21 फ़रवरी 2010
गणपति को मनाय, गणपति को मनाय प्रथम चरण गणपति को मनाय
गणपति को मनाय प्रथम चरण गणपति को मनाय
एक दंत गज मुख लम्बोदर
सेन्दुर तिलक बरनि ना जाय
गणपति को मनाय प्रथम चरण गणपति को मनाय
माँगत हौं बर दुइ कर जोरे
देहु सिद्धि कछु बुधि अधिकाय
गणपति को मनाय प्रथम चरण गणपति को मनाय
गणपति को मनाव प्रथम चरण गणपति को मनाव
गणपति को मनाय, गणपति को मनाव प्रथम चरण गणपति को मनाव
गणपति को मनाव प्रथम चरण गणपति को मनाव
काखर पूत भये गणपति
काखर हनुमान, काखर हनुमान
काखर पूत भये भैरो
काखर भये राम, काखर भये राम
गणपति को मनाव प्रथम चरण गणपति को मनाव
गौरी के पूत भये गणपति
अंजनि के हनुमान, अंजनि के हनुमान
काली के पूत भये भैरो
कौशल्या के राम, कौशल्या के भये राम
गणपति को मनाव प्रथम चरण गणपति को मनाव
गज़ब कहर बरपा है महुए के मद का भाई........ जोगीरा सर र र र र र र हो..... जोगी जी (ललित शर्मा)
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 20 फ़रवरी 2010भंग का रंग........जोगी जी.... जरा....बच के.....!!!
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010ब्लाग जगत है तैयार-बह रही फ़ागुनी बयार (बिरहा फ़ाग)
ब्लॉ.ललित शर्मा, सोमवार, 8 फ़रवरी 2010एक प्रार्थना है !!!!!(ललित शर्मा)
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010हमने लगाना चाहा मुहब्बत का शजर!!
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010हमने लगाना चाहा मुहब्बत का शजर
मौसम मे किसने घोला है बहुत जहर
मामला संगीन हुआ वो लाए हैं खंजर
पता नही कब दिखाए लहुलुहान मंजर
बहुत ख़ामोशी होती है तूफान के पहले
लावा पिघलता ही है फौलाद के पहले
छल करने वालों ने क्या सोचा है कभी
अंगारे सुलगते हैं कहीं, आग के पहले
देखो कोई वार पर तुरंत प्रहार करता है
कोई उचित समय का इंतजार करता है
जो खड़ा है साक्षी बनकर रणक्षेत्र में
इतिहास उसका भी सत्कार करता है
आपका
शिल्पकार