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इंडी ब्लागर

 

अपना दर्द आंसुओं में निचोती रही कविता

कई  बरसों  से किताबो में सोई रही कविता
अपना दर्द आंसुओं में निचोती  रही कविता
आंसू   लहू  से  कागज  पर  नित  झरते रहे
दर्द  को  दिल  में  ही  संजोती  रही  कविता

 तुम्हारे  आंसू  की  हर  एक  बूंद  सरिता  है
तुम्हारा   कहा   हर   शब्द   मेरी   गीता  है
सोचता   हूँ   तुम्हे  गीतों  में  ढालूँगा  कभी
तुम्हारी  साँस का  हर स्वर मेरी कविता है

सावन का  आज पहला दिन  पहली बरसात हुयी 
तन-भीगा, मन भीगा मेह  वर्षा  की शुरुवात हुयी
फिर  भी  ना  छलका  तुम्हारे   स्नेह   का सागर 
सारी  धरती  भीग गयी यूँ झमाझम बरसात हुयी 


आपका
शिल्पकार

Comments :

4 टिप्पणियाँ to “अपना दर्द आंसुओं में निचोती रही कविता”
पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

तुम्हारे आंसू की हर एक बूंद सरिता है

तुम्हारा कहा हर शब्द मेरी गीता है

सोचता हूँ तुम्हे गीतों में ढालूँगा कभी

तुम्हारी साँस का हर स्वर मेरी कविता है



वाह, क्या बात है बहुत सुन्दर ललित जी !

सदा ने कहा…
on 

तुम्हारे आंसू की हर एक बूंद सरिता है
तुम्हारा कहा हर शब्द मेरी गीता है

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…
on 

फिर भी ना छलका तुम्हारे स्नेह का सागर

सारी धरती भीग गयी यूँ झमाझम बरसात हुयी
बेहद दुखद स्थिति है। हमारे यहाँ तो अकाल पड़ा ही है आपके यहाँ भी पड़ गया? धैर्य रखिए, स्‍नेह का सागर छलकेगा जरूर। सशक्‍त रचना के लिए बधाई।

अजय कुमार ने कहा…
on 

ललितजी सुन्दर रचना के लिए बधाई

 

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