हे! शिल्पकार,
तेरी पीड़ा मेरी पीड़ा है,
मुझको व्याकुल करता तेरा करुण क्रंदन,
भीषण झंझावातों में कर सृजन निरंतर,
पाषाणों को भी दे रहा सांसों का स्पन्दन,
तेरा करता हूँ अभिनन्दन,
तेरी पीड़ा मेरी पीड़ा है।
तेरे कठिन परिश्रम से इस धरती पर,
कंकर-कंकर, लोहा, सोना, चांदी हो जाता,
अगर तेरा पशीना न गिरता इस भूमि पर,
यह सोंदर्य अनूप कहाँ से आता,
तुम ही कहो!
क्या किसान बिना हल नाखूनों से,
धरती का सीना चीर फसल उगा सकता है
क्या बिना हथियारों के कोई शासक,
दुश्मनों से अपना राज्य बचा सकता है?
क्या! तेरे बिना राम जी के तीर हठीले,
रावण का हृदय वेध सकते थे ?
क्या! अर्जुन के तरकश के तीर नुकीले,
कर्ण का मस्तक छेड़ सकते थे ?
क्या! बिना सुदर्शन चक्र के कृष्ण,
रन में पांचजन्य बजा सकता था ?
क्या! बिना गदा के भीम बहादुर,
लड़ने का साहस दिखा सकता था ?
बिना भाले के कैसे लड़ता राणा प्रताप,
वीर शिवा की तलवारों को शान कौन चढाता ?
अगर न होता चंदर बरदाई तो,
पृथ्वी राज शब्दभेदी निशाना कैसे लगाता ?
महल, दुमहले और आविष्कार भी,
तुने अपने हाथों किए अनूप हैं।
तेरे खून पसीने और लाशों पर ,
शताब्दियों राज करते रहे भूप हैं।
इस माटी का कण-कण जानता है,
आज तेरी इस खामोश कुर्बानी को,
तेरे श्रम से ही रक्षित मान भारत का
तेरे श्रम ने पावन बनाया है गंगा के पानी को,
तेरी भट्टी की विकराल ज्वाला ने ,
फौलादों को भी पिघला डाला है।
पहाड़ फोड़ कर तुने चट्टानों में ,
पथ नवीन बना डाला है।
तुने प्राण भरे हैं पाषाणों में,
मैं अक्षरों में नवजीवन पाता हूँ।
तेरी पीड़ा मेरी पीड़ा है इसलिए,
तेरा दर्द बाँटने चला आता हूँ।
जब तेरे घर में चूल्हा जलता है।
तभी पेट भर मैं भी खाता हूँ।
जब खो जाता हूँ पीड़ा की गहराई में,
तो भूखे पेट ही सो जाता हूँ।
तेरे पीड़ा मेरे पीड़ा है,
इस लिए तुझमे अपनापन पाता हूँ।
तुझे मजदूरी करते नही देख सकता,
इस लिए तेरादर्द सुनने चला आता हूँ।
हे शिल्पकार,
तेरी पीड़ा मेरी पीड़ा है।
आपका
शिल्पकार
हे शिल्पकार,
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 23 जून 2009
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we are starting "Shilpkar Times" in hindi from the first week of August, 09. Your articles are invited.
Lalit Kumar (Shilpkar)
कल 28/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सादर बधाईयां...
वाह .. बहुत सुन्दर भावों को समेटा है ..
बहुत खूब ....