कठपुतली नाचती है
उसके हर ठुमके पर
तालियाँ बजती हजार
होठो पर छाती है स्मित
थिरकते कदमों से
करती है अभिवादन
खेल ख़त्म होते ही
नट खोलता है धागे
अपने पोरों से
बेजान कठपुतलियां
फिर टंग जाती हैं
बरसों पुरानी खूंटी से
बार बार छली जाती हैं
मालूम होते हुए भी
उनके प्राण किसी
और के हाथों में हैं
जो धागे बांध नाचता है
आपका
शिल्पकार