तमाम उम्र सफ़र में रहा
नहीं मैं कभी घर में रहा
यायावरी पर क्या कहूँ
कांटो भरी डगर में रहा
तम्मना-ए-परवाज थी
पर उनकी कैद में रहा
कह न सका दिल की
पासबां कोई हद में रहा
मीठे बोल बोलते हैं वो
सिर उनकी जद में रहा
चलते चलते पहुंचा तो
सज्जादों के शहर में रहा