एक अरसे से शिल्पकार ने कुछ काव्य रचा नहीं, पहले रोज एक पोस्ट आ ही जाती थी नित नेम से। शायद काव्य का सोता सूख गया। अब काव्य उमड़ता-घुमड़ता नहीं। पता नहीं क्यो अनायास हीं एक जीता जागता ब्लॉग मृतप्राय हो गया, जबकि यह मेरा पहला ब्लॉग है। शिल्पकार ब्लॉग जगत की गलियों भटकता रहा। कहते हैं न खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है ऐसा ही कुछ हुआ है। फ़ेसबुक की चार लाईनों ने एक गजल तैयार करने की लालसा जगा दी। बहुत सारे ब्लॉगर साथी फ़ेसबुक पर लगे हुए हैं, धड़ाधड़ महाराज की तरह वहीं पोस्ट हो रहा है। एक गजल नुमा प्रस्तुत कर रहा हूँ, ईटर-मीटर का तो पता नहीं। गुणी जन कृपा करेगें, उम्मीद है कि हफ़्ते में एकाध बार तो इस ब्लॉग पर काव्यमय पोस्ट लग जाएगी।
जीते जी कुछ करो तो बात बने। कोई महफ़िल सजाओ तो बात बने।। तुम्हारी महफ़िल में आना चाहते हैं। कोई नगमा सुनाओ तो बात बने॥ कतरा समंदर भी असर रखता है। प्यास मन की बुझाओ तो बात बने॥ गर्म हवाओं से झुलसा है मन मेरा। हवा प्यार की बहाओ तो बात बने।। मचलता रहा यह दिल तुम्हारे लिए। आकर सीने से लगाओ तो बात बने॥ तनहा खड़ा जिन्दगी के चौराहे पर । बस साथ मेरा निभाओ तो बात बने॥ |
आपका शिल्पकार
ईटर-मीटर का पता तो अपन भी नहीं रखते हैं..पर जो कुछ रचा गया है,आगे भी रचते रहें तो कुछ बात बने!!!...
बात तो अच्छी बन गई है.
उमडही घला, घुमडही घला,
बरसही घला, सुलगही घला,
कविता झरही पारिजात कस
मन बिरवा ला बने कस हला
फेर सुग्घर 'गजलनुमा' त बने हवे...
जय जोहार...
jai ho.........
ye post balle balle
बहुत कठिन हैं जिन्दगी का सफ़र थोड़ी देर साथ चलो
कांटो -भरी हैं ये राहगुजर थोड़ी देर साथ चलो ..
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता हैं ----
इक शब की मुलाक़ात हैं थोड़ी देर साथ चलो
किसे हैं कल की खबर थोड़ी देर साथ चलो
अभी तो जल रहे हैं चिराग रहो में ---
बहुत दूर हैं सहर थोड़ी देर साथ चलो ..
..इसी तरह लिखते रहे ....हम साथ हैं ..लिखने में और पढने में ...
बहुत खूबसूरत रचना...
हमको नदियों की ये तरह लगती है
इसे सागर सा बनाओ तो कोई बात बने...
शुभकामनाये....
ओये होये ललित जी ………ऐसी ऐसी लिखेंगे तो बात तो जरूर बन कर रहेगी…………और यहाँ तो बात बन ही गयी है देखिये तो सही क्या खूब गज़ल लिखी है…………अगर इसे कहते हैं काव्य उमडता घुमडता नही तो जब उमडेगा तो क्या होगा?
लो जी हमने भी अपनी दो पंक्तियाँ जोड़ दी है इस में ....
ठहर गयी आसमाँ की नदिया तारो सहित
उनमे आये कोई उफान ,तो बात बने ||anu
sunder rachna ...
सिर की खेती सूख सकती है पर काव्य का सोता नहीं और यह कविता उसका प्रमाण है :)
बात बनती नज़र आ रही है .अच्छी रचना .आभार.
कतरा समंदर भी असर रखता है।
sahi kahe aap......
बिना इटर मीटर के ही बात सीधे बन जाती है ... बहुत खूबसूरत रचना
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 08 -12 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... अजब पागल सी लडकी है .
बहुत बढ़िया सर!
सादर
बेहतरीन प्रस्तुति।
अरे वाह ! यह बात तो बहुत ही खूबसूरत बन गयी ललित जी ! आगे भी ऐसे ही बनती रहेगी ऐसी आशा है ! बहुत सुन्दर गज़ल रच डाली है ! क्या कहने !
बहुत सुंदर---तो बात बने.
अभी जाती हूँ आपकी शिकायत करने.एक तो घर मे टिकना नही,बंजारे बने हुए है पूरे .उस पर कभी मायावती जी के साथ फोटो खिंचवाकर ब्लॉग पर लगा रहे हो कभी गजले लिख रहे हो.आप तो ऐसे न थे ललिईईईईईईईईत भैया!
मचलता रहा यह दिल तुम्हारे लिए।
आकर सीने से लगाओ तो बात बने॥
तनहा खड़ा जिन्दगी के चौराहे पर ।
बस साथ मेरा निभाओ तो बात बने॥' भाभीईईईईईईई ! आपको बुला रहे हैं सुनो तो.