मैं सोचता था
कविता में सिर्फ़ भाव होते हैं
जो अंतरमन से उतरते हुए
कागज पर अपना रुप लेते है
लेकिन जब कविता
तुम्हारे पास पहुंचती है तो
उसमें क्या-क्या नहीं ढूंढ लेते तुम
गांधारी आंखो से
विदुर दृष्टिकोण तुम्हारा
ढूंढ लेता है
शिल्प,बिंब, अलंकार, व्यथा
व्याकरण, छंद, समास
अतिश्योक्ति, रस और श्रंगार
वियोग,करुणा, रसखान
जो मुझे नहीं दिख पाते
वंदन है तुम्हारी गांधारी दृष्टि का
आपका
शिल्पकार
तुम्हारी गांधारी दृष्टि
ब्लॉ.ललित शर्मा, सोमवार, 15 नवंबर 2010तुलने लगे कुबेर भी अनुदान के लिए
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 13 नवंबर 2010हम लड़ रहे हैं मित्र दोना पान के लिए
भाड़े में भीड़ जुटती है सम्मान के लिए
क्या नहीं होता अब पूजा के नाम पर
बिक जाते हैं फ़रिश्ते अनुष्ठान के लिए
है खेल सियासत का कुर्सी के वास्ते
तुलने लगे कुबेर भी अनुदान के लिए
अपने उसुलों के लिए बागी हुए हैं हम
छोड़े हैं सिंहासन भी स्वाभिमान के लिए
माला गले में डालने की होड़ मची है
सब दौड़ रहे हैं झूठी पहचान के लिए
संदेह से घिरी हैं सारी उपाधियाँ
जीता है कौन धर्म और ईमान के लिए
इतने गरीब हो गए नवरंग इन दिनों
दो फ़ूल जुटा न पाए बलिदान के लिए
माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग'
कोरबा (छ ग)
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 10 नवंबर 2010जिन्हे सकेला था बुखारी के लिए
अब के ठंड में
देती गरमाहट तुम्हारे सानिध्य सी
बुखारी ठंडी पड़ी पर
कांगड़ी में सुलग रहे है
कुछ कोयले
पिछले कई सालों से
जिसकी गरमी का
अहसास है मुझे अब तक
जब से तुमने आने का वादा किया
मैने नहीं सिलगाई बुखारी
सिर्फ़ कांगड़ी को सीने से
लगाए रखा
दिल को गर्माहट देने
और बचाने के लिए
महुए के कोयले की तरह
धीरे धीरे सुलगना मंजुर है
बुखारी के लिए
आपका
शिल्पकार
मालूम नहीं है क्या? आज नरक चौदस है --- ललित शर्मा
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 4 नवंबर 2010एक पुरानी कविता
आज सुबह-सुबह श्रीमती ने जगाया
हाथ में चाय का कप थमाया
तो मैंने पूछा- क्या टाइम हुआ है?
मुझे लगता नहीं कि अभी सबेरा हुआ है
बोली ब्रम्ह मुहूर्त का समय है,चार बजे हैं
और आप अभी तक खाट पर पडे हैं
मालूम नहीं आज नरक चौदस है
आज जो ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान करता है
वो सीधा स्वर्ग में जाता है
वहां परम पद को पता है
जो सूर्योदय के बाद स्नान करता है
वो सारे नरकों को भोगता है
चलो उठो और नहाओ
यूँ घर में आलस मत फैलाओ
मैंने कहा मेडम कृपा करके
तुम मुझे तो सोने दो
मुझे नहीं जाना स्वर्ग में
यही नर्क में ही रहने दो
मैं स्वर्ग में नहीं रह सकता हूँ
वहाँ जाकर मै उकता जाऊंगा
सारे दोस्त तो नरक में ही मिलेंगे
इसलिए स्वर्ग में क्या लेने जाऊंगा?
उनके पास कई जन्मों का पुण्य संचित है
इसलिए हमारा नरक में ही रहना उचित है
फिर वहां रम्भा,मेनका, उर्वशी
जैसी अप्सराओं से तुम्हे डाह होगी
तुम्हारे होठों पर एक आह होगी
कोई लाभ नहीं होगा बाद पछताने में
इसलिए क्या बुरा है नरक आजमाने में
शूर्पनखा, ताड़का, मंथरा को देखकर
वहां मेरा मन वहां नहीं भटकेगा
आखिर आसमान का गिरा
खजूर पर ही अटकेगा ,
श्रीमती मान गई- और बोली
अगर ये बात है तो जाओ,सो जाओ
अगर नही नहाना है तो नरक में ही जाओ