घनघोर
तम में
दीप जल उठे
परिंदे चहक उठे
फिर से चमन में
बहारें एक बार
फिर से लौटी हैं
जब से बहारें आई
अपने साथ
इन्द्रधनुषी
रंगीनियाँ भी लाइ
रातों को
मदहोश किया
कुछ देर वक्त को रोका
एक शुन्य आ गया जीवन में
दीप बुझ चुके थे
बहारें चली गयी थी
चमन के दिल चूर हुआ था
इस कठिन वक्त में
मैंने बहुत संघर्ष किया है
बुझे दीपों में
अपना खून जलाया
चमन को आंसुओं से सींचा
मेरी दुनिया अँधेरे में थी
उसे उजाले में खींचा
जीवन में एक शुन्य आ गया
शुन्य,
शुन्य में कितना अंतर
आपका
शिल्पकार
बहुत ही शानदार !
मैंने बहुत संघर्ष किया है
बुझे दीपों में
अपना खून जलाया
चमन को आंसुओं से सींचा
मेरी दुनिया अँधेरे में थी
उसे उजाले में खींचा
जीवन में एक शुन्य आ गया
शुन्य,
शुन्य में कितना अंतर
शून्य का अन्तर बहुत ही प्रभावशाली रहा!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
दिन के बाद रात और रात के बाद दिन तो होता ही है ललित जी! आज यदि शून्य है तो कल वह शून्य नहीं रहेगा।
ज़िन्दगी की यही रीत है...हार के बाद ही जीत है...
बहुत बढिया
दिये जलते हैं,
फूल खिलते हैं...
दुनिया में दोस्त,
बड़ी मुश्किल से मिलते हैं...
जय हिंद...
मैंने बहुत संघर्ष किया है
बुझे दीपों में
अपना खून जलाया
चमन को आंसुओं से सींचा
मेरी दुनिया अँधेरे में थी
उसे उजाले में खींचा
जीवन में एक शुन्य आ गया
शुन्य,
शुन्य में कितना अंतर
बहुत खूब, लाजबाब ख्याल ललित जी !
वैसे हलके फुल्के मजाक के तौर पर यह भी कहना चाहूंगा की उस शून्य से पहले एक लगाने की कोशिश कीजिये शून्य खुद व खुद गायब हो जाएगा !
सुन्दर अभिव्यक्ति है। शून्य मे भी बहुत श्क्ति होती है। इस शून्य मे ही तो हम भगवान को देखते हैं खुउद की पहचान और दुनिया की पहचान इसी शून्य मे होती है। तभी जीवन को जान कर आगे बढते हैं शुभकामनायें
शून्य में ही सब एककार होना है ...... अनुपम रचना .......
Dua karti hun,ki, jeevan me shoony na rahe..khizake baad baharen zaroor aayen!
na keval sundar aur soumy
balki sateek aur saargarbhit kavita....
badhai !
बहुत ही बढिया लगी ये रचना......