हिन्दी और छत्तीसगढ़ी कविताओं के माध्यम से जन-चेतना की अलख जगाने वाले लोकप्रिय संत कवि पवन दीवान (स्वामी अमृतानंद सरस्वती ) से जगत में सभी परिचित हैं। इसलिए मुझे उनके विषय में परिचय देने की आवश्यकता नहीं है। दीवान जी का "मेरा हर स्वर इसका पूजन" नामक काव्य संकलन दो दशक पहले आया था। सौभाग्य से उसकी एक प्रति मेरे संग्रह में भी है।
स्वराज करुण जी के द्वारा जानकारी मिली कि उनके दूसरे काव्य संकलन का विमोचन 1 जनवरी 2011 को जन्मदिन के अवसर पर है। इसके पश्चात छत्तीसगढी प्रख्यात गीतकार एवं लोकसुर प्रकाशन के मुखिया भाई लक्ष्मण मस्तुरिया ने फ़ोन पर आमंत्रित किया। स्वराज्य करुण जी के साथ विमोचन समारो्ह में मुझे भी शामिल होने का मौका मिला, गरिमामय वातावरण में "अम्बर का आशीष" का विमोचन माननीय कृष्णा रंजन जी के करकमलों से हुआ। कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट के लिए
यहाँ पर जाएं। दीवान जी के नवीन कविता संग्रह "अम्बर का आशीष" से एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।
शोषण की रोशनी
कब तलक कठिनाइयाँ झेलेगा आदमी
कब तलक तनहाइयाँ झेलेगा आदमी
जिन्दगी का अब कोई मतलब न रहा
कुछ दिनों में खून से खेलेगा आदमी
महलों के गले काट के कुटियों को पिन्हा दो
शोषण की रोशनी को अंधेरे में मिला दो
जिसने भी नोच-नोच के खाया है देश को
उसका कलेजा चीर के कुत्तों को खिला दो
बेटी है शहीदों की वो शोलों में खिलेगी
इस देश को आजादी किस्तों में मिलेगी
मजदूर को, गरीब को रोटी न मिलेगी
तुम ऐसे कटोगे कि बोटी न मिलेगी
आदमी होकर भी जीते नहीं हो क्या
खून को उबाल कर पीते नहीं हो क्या
फ़ट रही जो रोज-रोज दर्द की कमीज
बेटी की गर्म सांस से सीते नहीं हो क्या
कितनी तबाह हो चुकीं मजबूर बेटियाँ
इज्जत खरीदती है जेवरों की पेटियाँ
सत्ता की कुर्सियाँ तो लाशों पे खड़ी है
पेटों को तुमने कर दिया वोटों की पेटियाँ
बोलो जरा किसने इन्हे मजबूर बनाया
आदमी से आदमी को दूर बनाया
तुम्हीं आदमखोर थे इतिहास के घर में
एक गेहूँ जख्म को तंदूर बनाया
पवन दीवान
ग्राम किरवई (राजीम)
जिला रायपुर - छत्तीसगढ