कंचे,लट्टू,गुल्ली-डंडा,पुराना बक्सा खोल रहा हूँ।
खोया बचपन ढूंढ रहा हूँ,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
राजा-रानी, परियों की, कहानी खूब सुनाती थी।
खोयी ममता ढूंढ रहा हूँ,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
लड्डू-पेड़े,खाई-खजाना,मुझको खूब खिलाती थी।
तेरे आंचल की छाया में, मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ।।
करता जब धमा-चौकड़ी,मार से तुम बचाती थी।
तुम्हारी यादों में घर कर,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ।।
कभी न करुंगा उधम, कान पकड़ बोल रहा हूँ।
खोया बचपन ढूंढ रहा हूँ, मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
शिल्पकार
खोया बचपन ढूंढ रहा हूँ,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
राजा-रानी, परियों की, कहानी खूब सुनाती थी।
खोयी ममता ढूंढ रहा हूँ,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
लड्डू-पेड़े,खाई-खजाना,मुझको खूब खिलाती थी।
तेरे आंचल की छाया में, मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ।।
करता जब धमा-चौकड़ी,मार से तुम बचाती थी।
तुम्हारी यादों में घर कर,मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ।।
कभी न करुंगा उधम, कान पकड़ बोल रहा हूँ।
खोया बचपन ढूंढ रहा हूँ, मैं बचपन ढूंढ रहा हूँ॥
शिल्पकार