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बसंत तू कब आया ?

रात के तीन बजकर 29 मिनट हुए हैं, चैट पर टन्न की आवाज आती है। बसंत पंचमी की शुभकामनाएं लिखा दिखाई देता है। ध्यान से देखता हूँ तो अरुण राय जी हैं। जिनकी कविताएं मुझे बहुत पसंद आती है। समय-बेसमय उनके ब्लॉग पर जाता हूँ और बिना आहट के चला आता हूँ। मुझे कविता लिखे लगभग एक बरस होने को आ गया। कहीं से एक झटका लगा और कविता का प्रवाह रुक गया। बरस भर में 10 पंक्तियाँ भी कविता, गीत, गजल कह न सका। लेकिन आज कवि को देख कर कवि मन जाग उठा। एक कविता उतर  आई। प्रस्तुत है आपके लिए, शायद आपको पसंद आ जाए।

पता ही न चला
बसंत तू कब आया
लगा था उधेड़ बुन में
एक आहट तो दी होती
मैं भी संवर जाता
मदनोत्सव के लिए
तेरा आना सहज है
लेकिन जाना पीड़ादायक
कामदेव रति के बिछोह के बाद
तू चला जाता है अपनी राह
अधुरा मदनोत्सव छोड़कर
पलाश की लालिमा 
बाट जोहती है
बरस भर
तेरे आने की
कामदेव भस्म होकर भी
जीवन पा गया
लेकिन मैं जलता रहता हूँ
सुलगता रहता हूँ 
सिगड़ी सा
पतझड़ की गर्म हवाओं में
तेरी प्रतीक्षा करते हुए 

आपका 
शिल्पकार

Comments :

17 टिप्पणियाँ to “बसंत तू कब आया ?”
dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…
on 

बसंतोत्सव पर आप भी बसंत में डुबे रहे .

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

बसंतोत्सव की बहुत बहुत बधाई।

vandana gupta ने कहा…
on 

सुन्दर अभिव्यक्ति।बसंत पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएं.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…
on 

ललित भाई बहुत सुन्दर कविता है.. वसंत के ब्रह्म मुहूर्त में लिखी गई कविता वाकई आनंद दे रही है.. नए से भाव हैं कविता के ... कविता की आरंभिक पंक्तियाँ सुरक्षित रहेंगी मेरे चैट बॉक्स में... धरोहर की तरह..

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

अति सुंदर रचना, बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

रामराम.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

"रात के तीन बजकर 29 मिनट हुए हैं, चैट पर टन्न की आवाज आती है। बसंत पंचमी की शुभकामनाएं लिखा दिखाई देता है।"

तो क्या आप भी ड्राई-डे....... ? :)

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…
on 

और कहीं आया हो अथवा नहीं, पर ब्‍लॉग जगत में तो आ ही गया है। हार्दिक बधाई।

---------
ब्‍लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।

Dr Varsha Singh ने कहा…
on 

पलाश की लालिमा
बाट जोहती है
बरस भर
तेरे आने की....

हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति .

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…
on 

पलाश की लालिमा
बाट जोहती है
बरस भर
तेरे आने की.... बहुत सुंदर रचना....
बसंतोत्सव की बहुत बहुत बधाई

शरद कोकास ने कहा…
on 

आपका यह कवि बसंत के जाने के बाद भी न जाये यह दुआ ।

मदन शर्मा ने कहा…
on 

बहुत सुंदर रचना...बहुत बहुत बधाई।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…
on 

बहुत सुन्दर.

शिवम् मिश्रा ने कहा…
on 

"तेरा आना सहज है...
लेकिन जाना पीड़ादायक"

जाना अक्सर ही पीड़ा देता है ... फिर भी जो आता है उसको जाना तो होता ही है !

Er. सत्यम शिवम ने कहा…
on 

कामदेव भस्म होकर भी
जीवन पा गया
लेकिन मैं जलता रहता हूँ
सुलगता रहता हूँ
सिगड़ी सा
पतझड़ की गर्म हवाओं में
तेरी प्रतीक्षा करते हुए

दादा प्रकृति प्रणय की अनोखी चुभन है इस रचना में...लाजवाब।

अशोक कुमार मिश्र ने कहा…
on 

बहुत खूब सर ..........

Asha Joglekar ने कहा…
on 

आपके अंदर के सोते कवि को जगा तो गया वसंत अब काहे कि शिकायत । पगडी वाली फोटो में जंच रहे हैं ।

kavita verma ने कहा…
on 

likhane ke liye prerna lena to bas ek bahana hai...bahut sunder likha hai aapne...

 

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