रात के तीन बजकर 29 मिनट हुए हैं, चैट पर टन्न की आवाज आती है। बसंत पंचमी की शुभकामनाएं लिखा दिखाई देता है। ध्यान से देखता हूँ तो अरुण राय जी हैं। जिनकी कविताएं मुझे बहुत पसंद आती है। समय-बेसमय उनके ब्लॉग पर जाता हूँ और बिना आहट के चला आता हूँ। मुझे कविता लिखे लगभग एक बरस होने को आ गया। कहीं से एक झटका लगा और कविता का प्रवाह रुक गया। बरस भर में 10 पंक्तियाँ भी कविता, गीत, गजल कह न सका। लेकिन आज कवि को देख कर कवि मन जाग उठा। एक कविता उतर आई। प्रस्तुत है आपके लिए, शायद आपको पसंद आ जाए।
बसंत तू कब आया
लगा था उधेड़ बुन में
एक आहट तो दी होती
मैं भी संवर जाता
मदनोत्सव के लिए
तेरा आना सहज है
लेकिन जाना पीड़ादायक
कामदेव रति के बिछोह के बाद
तू चला जाता है अपनी राह
अधुरा मदनोत्सव छोड़कर
पलाश की लालिमा
बाट जोहती है
बरस भर
तेरे आने की
कामदेव भस्म होकर भी
जीवन पा गया
लेकिन मैं जलता रहता हूँ
सुलगता रहता हूँ
सिगड़ी सा
पतझड़ की गर्म हवाओं में
तेरी प्रतीक्षा करते हुए
आपका
शिल्पकार