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सज्जनाष्टक नामक सुदीर्घ काव्य------ललित शर्मा

गतांक से आगे--  शिवरीनारायण में भारतेंदु मंडल के तर्ज पर ठा. जगमोहन सिंग मंडल का अभ्युदय हुआ. जिसमे इस मंडल के आठ कवि  प्रमुख थे इन कवियों को लेकर ठा.जगमोहन सिंग ने सज्जनाष्टक नामक सुदीर्घ काव्य की रचना की. प्रस्तुत है सज्जनाष्टक................
श्रीमद्विजयराघवगढाधिपात्मज तथा जिला बिलासपुर मे तहसील शिवरीनारायण के तहसीलदार और मजिस्ट्रेट श्री ठाकुर जगमोहन सिंह कृत्।

सज्जनाष्टक

सत संगत मुद मुंगल मूला। सुई फ़ल सिधि सब साधन फ़ूला।

श्री गणेश नारायण शिव कंह अज श्रीरामहिं ध्याऊं।
नवो सिद्धि अरु सिद्धि बुद्धि सब जिन प्रसाद बर पाऊं॥(१)

बंदौ आदि अनन्त शयन करि शबर नारायण रामा।
बैठे अधिक मनोहर मंदिर कोटि काम छवि धामा ॥ (२)

जिनको राग भोग करि निभु दिन सुख पावत दिन रैनु। 
भोगहा श्री यदुनाथ जू सेवक राम राम रत चैनु॥(३)

है यदुनाथ नाथ यह सांचो यदुपति कला पसारी।
चतुर सुजन सज्जन सत संगत सेवत जनक दु्लारी॥ (४)

दिन-दिन दीन लीन मुइ रहतो कृषी कर्म परवीना।
रहत परोस जोस तजि मेरे है द्विज निपट कुलीना॥(५)

पै इक सन्त महन्त जेहि जगत प्रभाव बिराजै्।
राका सो चहुं सुजस सुनिर्मल छुसरत देसन साजै॥ (६)

शांत रुप बपु मनौ सुइ आजु सजीव लखाई।
गल तुलसी सोहत सुन्दर वर दरस पुनीत पन्हाई॥ (७)

करहिं कमंडलु लटकत जाके दिए एक को पीना।
मनु इंद्रिह कहं जीत ज्ञान को ग़ठरी लटका लीना॥(८)

रुप केस भेस अति सुन्दर गुन मन्दिर अभिरामा।
जटा पुंज सीसहिं के मनु सोभित छवि धामा ॥(9)

बाबा जिन तीरथ के कावा कर अनेकन बारी।
अर्जुन दास दास हनुमत के तनचरनन ब्रत धारी॥ (10)

बितवत दिवस रैन भजनन में चैन न अन्तहि पावै।
हरि को ध्यान किए बिनु ताकहं खान-पान नहि भावै॥ (11)

प्रतिदिन भोर नहात शीत नहिं गिनत करत तप भारी।
सग शरीर सुख छाड़ि प्रान कहं देत कलेशहिं भारी॥(12)

जाके दरस पुनीत किए सब कटत पाप के पुंजा।
गंगा अरु काशी प्रयाग बट गिने जात जिमि गुंजा॥(13)

तीरथ बरथ व्यर्थ सब करहीं कठिन मुक्ति के काजा।
क्यौं न जाय छिन दरस करत इन विपुल पुन्य सिर ताजा॥(14)

संगम सन्त समाज सुभग सब हरतु पाप की राशी।
नहिंन होत बिनु ज्ञान मुक्ति कोउ करै कोटि दिन काशी॥(15)

वेद पुरान न्याय सब कहहीं ज्ञान बिना नहीं होई।
मुक्ति जदपि कोटिन तीरथ करि रहे भरम सब कोई॥(16)

तीरथ ध्यान जोग जप तपहु इक तुलना करि राखै।
पै बिनु ज्ञान मिलत नहिं कबहुं सुख अनन्त श्रुति भाखै॥(17)

सो न होत बिनु सन्त संग के सत संगत फ़ल भारी।
वाल्मीकि नारद मुनीशहू भे मुनीश व्रत धारी ॥ (18)

तेहु रहे नीच जन्महिं के पै सत संग अनूपा।
पाय भए मुनि ब्रह्म तेज मय लखहु प्रभाव सरुपा॥ (19)

सत सहस्त्र साधु समाज नित रहत आय मदमाहीं।
तिन कंह नित्त दिवस षट् रस के भोजन स्वादु सराहीं॥(20)

सदावर्त जहं बटत नेम सों कटत चैन दिन राती।
घटत न कहुँ भंडार राम को बस्तु न कछु सिराती॥(21)

चेला भए तासु गुन मेला रहत सुमठ सिर ताजा।
गौतम मनु दूजो यह सोहत गौतम दास बिराजा॥ (23)

ताको सकल कर्म कर निसि दिन ॠषिराम अनुगामी।
मानौ स्वामि धर्म को अंकुर ता मन आयौ जामी॥(24)
 

माखन साहु राहु दारिद कहं अहै महाजन भारी।
दीन्हो धर माखन अरु रोटी बहु बिधि तिनहिं मुरारी॥(25)

लच्छ पती सुद शरन जनन को टारत सकल कलेशा।
द्र्व्य हीन कहं है कुबेर सम रहत न दुख को लेशा॥ (26)

दुओ धाम प्रथमहिं करि निज पग कांवर आप चढाई।
सेतु बन्ध रामेसुर को लहि गंगा जल अन्हवाई ॥(27)

चार बीस शरदहुं के बीते रीते गोलक नैना।
लखि असार संसार पार कहं मुंदे दृग तजि चैना॥(28)

अपर एक पंडित गुन खानी मानी हीरारामा
हीरा सो अति विमल जासु जस छहरत चहुँ छवि धामा॥(29)

यह पुरान मनु भयो वाचि के दस अरु आठ पुराना।
जीरि सकल इन्द्रिन अग बैठयौ शिव सरुप अभिरामा॥ (30)

तिमि जग मोहन के परोस में मोहन रहत पुजारी।
राग भोग पुजारु पाठ करि प्रभु चरनन मन धारी॥ (31)

रमानाथ लक्ष्मी नारायण के भरोस सुख सोवै।
देत जीविका जो निसि बासर सुई ताकौ दुख खोवै॥(32)

दोहा

रहत ग्राम एहि बिधि सबै सज्जन सब गुन खान्।
महानदी सेवहिं सकल जननी सब पय पान॥ (33)

श्री जगमोहन सिंह रचि तीरथ चरित पवित्र।
सावन सुदि आठैं बहुरि मंगलवार बिचित्र्॥ (34)

संवत् बिक्रम जानिए इन्दु बेद ग्रह एक।
शबरीनारायण सुभग जहं जन बहुत विवेक्॥(35)


प्रस्तुत कर्ता
शिल्पकार

Comments :

8 टिप्पणियाँ to “सज्जनाष्टक नामक सुदीर्घ काव्य------ललित शर्मा”
Unknown ने कहा…
on 

"चतुर सुजन सज्जन सत संगत सेवत जनक दु्लारी"

वाह! अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

बहुत बेहतरीन.

रामराम.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…
on 

अच्छी रचना है बहुत सी जानकारियाँ अपने में समेटे हुए।
इंदु बेद ग्रह एक का अर्थ 1491 को हो नहीं सकता, क्या यह संम्वत 1941 को इंगित करता है?

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

@ दिनेश राय द्विवेदी जी,
संवत 1941 सही है उस समय इनकी आयु
लगभग 27-28 वर्ष रही होगी।

राज भाटिय़ा ने कहा…
on 

बहुत सुंदर दोहे, क्यो कि पढते पढते थक गये, अगर इन्हे कर्मश देते तो ओए भी अच्छा होता, ओर साथ मै अर्थ भी देते तो सोने पर सुहागा होता.
धन्यवाद

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…
on 

"JAY MA DURGE"
sankalan bahut sundar dohon ka
ham pareshaan the hamare is yantrke n chalne saath hi ghar me broad band kharab hone ke kaaran
phiri praarambh karte hain apni yatra is jagat me.......

Unknown ने कहा…
on 

jai ho.........

zabardast !

दीपक 'मशाल' ने कहा…
on 

jane kyon is tarah ki rachnayen bahut bhati hain mujhe.. shukriya Lalit ji.

 

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