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फागुन में जरा सा तुम महक जाओ !! (ललित शर्मा)

फागुनी मौसम हो गया है....प्रकृति ने अपनी मनोरम छटा बिखेर दी है....... कल शाम को खेतों की तरफ गया था तो देखा कि वातावरण में भीनी-भीनी खुशबु है जो मद मस्त कर दे रही है....... डूबते हुए सूरज की छटा निराली है. ऐसे उनका याद आ जाना गजब ढा गया........कभी इन खेतों में बेर.....अरहर.......तिवरा-लाखड़ी के लालच में आया करते थे......अब सिर्फ यादें ही शेष है........सूरज डूबता जा रहा है.....लालिमा बढ़ते जा रही है.......और उनकी याद गहराते जा रही है........अनायास ही कह उठता हूँ..............नया  मौसम  आया  है  जरा  सा तुम संवर जाओ(इसके साथ ही डूबते हुए सूरज के कुछ चित्र मैंने खींचे थे उनका भी आनंद लीजिये) 

फागुन में जरा सा  तुम  महक  जाओ
नया  मौसम  आया  है  जरा  सा तुम संवर जाओ
जरा सा हम बदल जाएँ, जरा सा तुम बदल जाओ

जमी  ने भी ओढ़  ली  है  एक  नयी  चुनर  वासंती 
गुजारिश है के फागुन में जरा सा  तुम  महक  जाओ

नए  चंदा- सितारों से सजाओ मांग तुम अपनी
परिंदों  के तरन्नुम में जरा सा तुम चहक जाओ

तुम्हारे  पैर  की  पायल  नया  एक  राग  गाती  है
जरा सा हम मचल जाएँ जरा सा तुम थिरक जाओ

"ललित" के मय के प्याले में तुम भी डूब लो साकी
जरा सा हम बहक जाएँ जरा सा तुम बहक जाओ 
 
पलाश के पेड़ों के पीछे छुपने की कोशिश करता सुरज

 
आखिर क्षितिज से मिलन होना ही था


आपका 
शिल्पकार,

Comments :

14 टिप्पणियाँ to “फागुन में जरा सा तुम महक जाओ !! (ललित शर्मा)”
ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

जमी ने भी ओढ़ ली है एक नयी चुनर वासंती
गुजारिश है के फागुन में जरा सा तुम महक जाओ

नए चंदा- सितारों से सजाओ मांग तुम अपनी
परिंदों के तरन्नुम में जरा सा तुम चहक जाओ

वाह बहुत लाजवाब रचना.

रामराम.

Udan Tashtari ने कहा…
on 

तुम्हारे पैर की पायल नया एक राग गाती है
जरा सा हम मचल जाएँ जरा सा तुम थिरक जाओ


-बहुत उम्दा...वाह!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…
on 

"ललित" के मय के प्याले में तुम भी डूब लो साकी
जरा सा हम बहक जाएँ जरा सा तुम बहक जाओ ..
पूरी रचना में महक है भाई जी.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
on 

बढ़िया रस छलकाया है!

दुःख की बदली छँटी, सूरज उगा विश्वास का,
जल रहा दीपक दिलों मे स्नेह ले उल्लास का,
ज्वर चढ़ा, पारा बढ़ा है प्यार के संसार पर।
दे रहा मधुमास दस्तक है हृदय के द्वार पर।।

राजीव तनेजा ने कहा…
on 

बहुत ही उम्दा रचना

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

बहुत बडिया लगी फाल्गुनी रचना शुभकामनायें

कडुवासच ने कहा…
on 

"ललित" के मय के प्याले में तुम भी डूब लो साकी
जरा सा हम बहक जाएँ जरा सा तुम बहक जाओ
.....बहुत खूब ... बहुत बहुत बधाई !!!

रानीविशाल ने कहा…
on 

Behad umda peshkash!!
Aabhar

vandana gupta ने कहा…
on 

जितनी लुभावनी रचना है उतने ही सुन्दर चित्र हैं ……………गज़ब की प्रस्तुति।

Padm Singh ने कहा…
on 

फागुन की फागुनमय रचना .....
बहुत सुंदर ..... बधाई
http://padmsingh.wordpress.com

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…
on 

बहुत ही उम्दा रचना,,,,,,,

राज भाटिय़ा ने कहा…
on 

बहुत सुंदर फ़ागुनी कविता... लेकिन एक बात समझ मै नही आती लोगो ने खेतो से पेड को काट दिये??

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

@ भाटि्या जी--अब खेतों में पेड कहां सब कट गए।
जंगल के आस-पास के खेतों मे हैं कुछ। मकान बनेंगे तो लकड़ी की जरुरत पड़ेगी ना।

Parul kanani ने कहा…
on 

bahut badhiya

 

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